Saturday, March 15, 2025
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क्या भूत आना है एक बीमारी? जानिए मास हिस्टीरिया के बारे में!

हमारा भारत ग्रामीण क्षेत्रीय कह लाता है, यहां पर यदि कोई बीमारी हो जाए तो उसे किसी न किसी अंधविश्वास से जोड़ दिया जाता है! जब भी ऐसी कोई घटना होती है तो कुछ लोग इन बातों पर तुरंत यकीन कर लेते हैं और कुछ बिलकुल यकीन नहीं करते। एक्सपर्ट भी मानते हैं कि जो लोग ऐसी बातों पर विश्वास करते हैं या जिनके व्यक्तित्व में यह बात होती है कि वे जल्दी ही दूसरों के सुझाव मान लेते हैं (highly suggestible individuals), ऐसे लोगों पर इसका असर ज्यादा होता है। उनकी संस्कृति और धार्मिक विश्वास भी इसकी वजह होते हैं। इस बारे में इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड अलाइड साइंसेज पूर्व डायरेक्टर डॉ. निमेष जी. देसाई बताते हैं कि हिप्नोसिस भी ऐसे ही लोगों पर ज्यादा असर करता है क्योंकि वे मान लेते हैं कि ऐसा हो सकता है। जहां तक हिस्टीरिया की बात है तो उन लोगों में शारीरिक तौर पर कुछ लक्षण उभरने लगते हैं। मशहूर मनोविश्लेषक सिगमंड फ्रायड ने कहा था, ‘ऐसे लोगों में मानसिक दुविधा या अंतरद्वंद्व होता है जो शारीरिक लक्षण या बर्ताव के रूप में सामने आ जाता है।’ उनका दौरा या बेहोशी, मिर्गी के दौरे बिलकुल अलग होता है। उनको देखकर दूसरे लोगों में भी जब वही लक्षण उभरने लगते हैं तो मास हिस्टीरिया कहा जाता है।

सीनियर सायकायट्रिस्ट कहते हैं कि इन लोगों में कुछ ऐसे लक्षण दिखते हैं, जैसे- शरीर का अकड़ जाना, बालों को खोलकर झूमना, दांत भींच लेना, फर्श या दीवार पर सिर पटकना, हाथ-पैर कांपना, आवाज बदलकर बोलना, इधर-उधर गिरना, बेहोशी का दौरा, बहुत गुस्सा होना। उत्तराखंड के बागेश्वर में स्कूल की लड़कियों के साथ हुई घटना इसी तरह की थी। विडियों में कई बच्चों को एकसाथ स्कूल में रोते-गिरते, चीखते चिल्लाते और सिर पटकते हुए देखा जा सकता है।

देशभर में यह अफवाह बहुत तेजी से फैली कि गणेश की मूर्तियां दूध पी रही हैं। देश के हर हिस्से के शहरों में बने मंदिरों में दोपहर तक लंबी लाइनें लग गई थीं और लोग गणेश प्रतिमा को दूध पिलाने पहुंचने लगे। लोग मूर्तियों पर दूध बहा रहे थे।

देश की राजधानी दिल्ली में ‘मंकी मैन’ या ‘बंदर मानव’ के दिखने की अफवाह फैली। लोगों ने शाम को घर से निकलना बंद कर दिया। कई लोगों ने दावा किया कि उन पर मंकी मैन ने हमला भी किया। डरकर भागने की वजह से छत से कई लोग गिरे। कुछ लोगों ने अपने शरीर पर बने नाखून के निशान भी दिखाए।

अचानक देश के कई हिस्सों में महिलाओं की चोटी काटे जाने की घटनाएं सामने आईं। खुद को इसका शिकार बताने वाली महिलाओं का कहना था कि रात को कोई गला दबा रहा था, वे बेहोश हो गई थीं और जब होश आया तो चोटी कटी हुई मिली। तब ‘चोटी कटवा’ से बचने के लिए लोगों ने घरों के बाहर हल्दी और मेहंदी के छापे लगाने भी शुरू कर दिए थे।

पहाड़ी इलाकों से अक्सर ऐसी खबरें आती हैं कि स्कूल के बच्चों पर किसी देवता या देवी का असर हो गया है। इसमें बड़ी तादाद लड़कियों की होती है। फिर झाड़-फूंक या तंत्र-मंत्र की मदद ली जाती है। इसी तरह शहरों या गांव में माता की चौकी लगाई जाती है तो वहां कोई महिला अचानक झूमने लगती है, कहा जाता है कि उन पर देवी आ गई हैं। इसके बाद कुछ महिलाएं उसकी नकल करती हैं। इसके पीछे क्या कारण हैं? यह पूछने पर मेंटल हेल्थ फर्स्ट एड प्रोवाइडर पूजा प्रियंवदा कहती हैं, ‘पहाड़ों पर अक्सर ऐसे मामले पाए जाते हैं। मास हिस्टीरिया में ग्रुप थिंकिंग काम करती है। जैसे भेड़ों का समूह किसी एक को फॉलो करने लगता है। कुछ सामाजिक डर भी होते हैं। कुछ लोग इसलिए दूसरों की नकल करने लगते हैं कि फलां पर माता आने से उसे बहुत तवज्जो मिलती है। अगर घर में किसी महिला की बात नहीं सुनी जाती या कुछ कहने का मौका नहीं मिलता तो वह किसी पुरुष का रोल प्ले करने लगती है या ताकतवर देवी का। उसे पता है कि इस वक्त यह बात कहूंगी तो लोग सुनेंगे और उसकी बात मानेंगे। इसे कन्वर्जन डिसॉर्डर कहते हैं। उस वक्त दिमाग की तर्क शक्ति काम नहीं करती।’ वह आगे कहती हैं कि उस घटना में उत्तराखंड की लड़कियां बिना सोचे समझे एक दूसरे की नकल कर रही थीं। यह भी नहीं सोचा कि अगर मैं गिर गई तो चोट लग जाएगी। लेकिन महिलाएं ही ऐसा ज्यादा करती हैं या उन पर ही इसका असर ज्यादा होता है यह नहीं कहा जा सकता।’

अधिकतर मामलों में इसके पीछे हमारा धार्मिक विश्वास होता है और इस तरह के लोग हर धर्म में होते हैं। कहीं लोग खुद को पीटने लगते हैं, कहीं माता आती हैं, कहीं मंदिरों में लोग खुद को जमीन पर गिराते हैं, झूमते हैं। दरगाहों में भी ऐसा करते हुए देखे जा सकते हैं। पूजा कहती हैं, ‘इसका छोटा रूप खेल के स्टेडियम भी दिखता है किसी बात पर एक आदमी ताली बजाता है तो पूरा स्टेडियम ताली बजाने लगता है। यह कुदरती तौर पर होता है। अगर कोई वेव बना रहा है तो हम भी उसमें शामिल हो जाते हैं। इससे किसी का नुकसान नहीं होता। इसी तरह दूसरे बड़े मामलों में मास हिस्टीरिया उन लोगों में ही दिखता है जिनके परिवार में उन बातों को मान्यता मिली हुई हो।’ वहीं, सत्यकांत त्रिवेदी बताते हैं कि अगर हमारे तनाव का कोई निपटारा न हो। पारिवारिक तनाव हो जैसे पति-पत्नी में न बनती हो, परिवार में कोई बात न सुनता हो। मन में उथल-पुथल रहती हो तो मन की कराहट शरीर में दिखने लगती है। ऐसे में मन को टटोलने की जरूरत होती है। फिल्म ‘भूलभुलैया’ में मंजुलिका का मामला ऐसा ही था। इसी तरह पहले जिसे तवज्जो नहीं मिलती, अचानक उसका महत्व बढ़ जाता है। लोग उसकी देखरेख करने लगते हैं, बाबा, तांत्रिक या डॉक्टर के पास भी ले जाने लगते हैं। हालांकि उनके अंदर यह सब अवचेतन मन के स्तर पर होता है। जब अवचेतन मन को लगता है कि अटेंशन मिल रही है तो ये चीजें बार-बार होने लगती हैं।’

कई बार एग्जाम के दिनों में कुछ बच्चों का हाथ काम नहीं करता। वे शिकायत करते हैं कि शायद लकवा हो गया है। डॉक्टर को दिखाने पर पता चलता है कि कोई परेशानी नहीं है। दरअसल यह तनाव होता है जो बच्चों में इस रूप में भी सामने आ जाता है। कई बार छद्म मिर्गी के दौरे आने लगते हैं। कुछ बच्चे अंतर्मुखी स्वभाव के होते हैं। उनमें भी ऐसे लक्षण देखे जा सकते हैं। काउंसलिंग करके परेशानी खत्म की जा सकती है। शिक्षा और विज्ञान को साथ लेकर बात समझाई जाए तो परेशानी दूर हो सकती है।’ वहीं, पूजा बताती हैं, ‘इसका कोई ऑफिशल इलाज नहीं है। किसी को मानसिक बीमारी हो तो वह ठीक तब होगा, जब वह ठीक होना चाहे। कई बार लोग खुद ही इलाज नहीं चाहते। एक केस में महिला ने उन्हें बताया कि उसे तवज्जो मिलती है तो अच्छा लगता है। इसलिए ऐसे मामले में लोग कम सहयोग करते हैं।’ लेकिन क्या इसे बीमारी कहेंगे या दवा लेने की जरूरत होगी? इस सवाल के जवाब में डॉ. निमेष जी देसाई कहते हैं, ‘ऐसे मामलों में सब लोगों पर मानसिक बीमारी का ठप्पा नहीं लगाना चाहिए। इसे खत्म करने के लिए मीडिया और प्रशासन को मिलकर काम करना चाहिए। जागरूकता फैलाकर मास हिस्टीरिया और पैनिक को फैलने से रोका जा सकता है। यह लंबे समय तक नहीं रहता।’

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