वर्तमान में भारत का चीन के साथ तनाव बढ़ता ही जा रहा है! भारत अपनी समुद्री ताकत को और मजबूत करने के लिए तैयार है। इसके लिए वो अगले छह महीनों में अपनी तीसरी परमाणु शक्ति संपन्न बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी (SSBN) को नौसेना में शामिल करेगा। यह कदम चीन के साथ जारी सैन्य तनाव के बीच उठाया जा रहा है। इससे पहले गुरुवार को विशाखापत्तनम में दूसरी SSBN, आईएनएस अरिघात को स्ट्रेटजिक फोर्स कमांड में औपचारिक रूप से शामिल कर लिया गया। तीसरी SSBN, अगले साल की शुरुआत में INS अरिधमन के रूप में कमीशन हो जाएगा। अभी ये परमाणु पनडुब्बी अलग-अलग ट्रायल्स से गुजर रही है। आईएनएस अरिधमन, INS अरिहंत और INS अरिघात से बड़ी है। यही वजह है कि ये अधिक लंबी दूरी की न्यूक्लियर मिसाइलों को ले जाने में सक्षम है। भारतीय नौसेना की क्षमता को बढ़ाने के लिए एक दिन पहले आईएनएस अरिघात को स्ट्रेटजिक फोर्स कमांड में शामिल कर लिया गया। ये भारत की दूसरी परमाणु शक्ति संपन्न बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी है। इसका वजन 6,000 टन है। महत्वपूर्ण बात यह है कि आईएनएस अरिघात K-4 मिसाइलों को भी ले जाने में सक्षम है, जिनकी मारक क्षमता 3,000 किलोमीटर से अधिक है। पहले से सर्विस में शामिल आईएनएस अरिहंत में केवल 750 किलोमीटर रेंज वाली के-15 मिसाइलें ही हैं। आईएनएस अरिघात को विशाखापत्तनम में एक सीक्रेट लोकेशन पर कमीशन किया गया। इस अवसर पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, CDS जनरल अनिल चौहान, नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार और DRDO प्रमुख समीर कामत उपस्थित थे।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस मौके पर कहा कि आईएनएस अरिघात के आने से भारत के न्यूक्लियर ट्रायड को और मजबूत करेगा। इसमें 90,000 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से निर्मित चार पनडुब्बियां शामिल हैं। हालांकि, ये संख्या अमेरिका, चीन और रूस जैसे देशों के SSBN के आकार से आधे से भी कम हैं।परमाणु निवारण को बढ़ाएगा, क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन और शांति स्थापित करने में मदद करेगा और देश की सुरक्षा में निर्णायक भूमिका निभाएगा। इस मौके पर राजनाथ सिंह ने 1998 में पोखरण-II परीक्षण को याद किया। उस समय भारत को परमाणु हथियार संपन्न देशों के बराबर लाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ‘राजनीतिक इच्छाशक्ति” का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आज के भू-राजनीतिक परिदृश्य में हमारे लिए रक्षा सहित हर क्षेत्र में तेजी से विकास करना आवश्यक है। आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ हमें एक मजबूत सेना की भी जरूरत है। हमारी सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए मिशन मोड में काम कर रही कि हमारे जवानों के पास भारतीय धरती पर बने अच्छी गुणवत्ता वाले हथियार और प्लेटफॉर्म हों।
आईएनएस अरिघात में कई ऐसी स्वदेशी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है जो इसे अपने पूर्ववर्ती आईएनएस अरिहंत की तुलना में काफी एडवांस्ड बनाते हैं। आईएनएस अरिहंत 2018 में पूरी तरह से कमीशन हुआ था। एक अधिकारी ने बताया कि ये दोनों मिलकर समंदर में संभावित दुश्मनों को रोकने और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने की भारत की क्षमता को बढ़ाएंगे। आईएनएस अरिघात का आकार और बनावट भले ही आईएनएस अरिहंत जैसा हो, लेकिन यह बहुत अधिक सक्षम वर्जन है जिसमें बहुत सारे आंतरिक इंजीनियरिंग अपग्रेड्स हैं।
तीसरा SSBN, जिसे अगले साल की शुरुआत में INS अरिधमन के रूप में कमीशन किया जाएगा, पहले के दो SSBN, INS अरिहंत और INS अरिघात से थोड़ा बड़ा है। यह अधिक लंबी दूरी की परमाणु मिसाइलें ले जाने में सक्षम है। सूत्रों ने बताया कि आईएनएस अरिघात कुछ K-4 मिसाइलों को ले जाने में भी सक्षम है, जिनकी मारक क्षमता 3,000 किलोमीटर से अधिक है, जबकि उसके पहले के संस्करण INS अरिहंत केवल 750 किलोमीटर रेंज की K-15 मिसाइलों से लैस है।
INS अरिधमन और निर्माणाधीन चौथा SSBN और भी अधिक शक्तिशाली होंगे। 7,000 टन वजन और 125 मीटर लंबाई के साथ, वे बड़ी संख्या में K-4 मिसाइलें ले जाने में सक्षम होंगे। 1990 के दशक में शुरू किए गए एडवांस्ड टेक्नोलॉजी वेसल प्रोजेक्ट के तहत इन परमाणु शक्ति संपन्न पनडुब्बी का निर्माण कार्य चल रहा। बता दें कि आईएनएस अरिघात K-4 मिसाइलों को भी ले जाने में सक्षम है, जिनकी मारक क्षमता 3,000 किलोमीटर से अधिक है। पहले से सर्विस में शामिल आईएनएस अरिहंत में केवल 750 किलोमीटर रेंज वाली के-15 मिसाइलें ही हैं। आईएनएस अरिघात को विशाखापत्तनम में एक सीक्रेट लोकेशन पर कमीशन किया गया। इसमें 90,000 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से निर्मित चार पनडुब्बियां शामिल हैं। हालांकि, ये संख्या अमेरिका, चीन और रूस जैसे देशों के SSBN के आकार से आधे से भी कम हैं।