वर्तमान में इजरायल अमेरिका की अनसुनी करता हुआ नजर आ रहा है! इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव से पूरी दुनिया में चिंता का माहौल है। इस तनाव का असर तेल और खाद की कीमतों से लेकर, समुद्री व्यापार और अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव तक पर पड़ सकता है। यह तनाव अचानक नहीं बढ़ा, पिछले साल 7 अक्टूबर को हमास के हमले के बाद से ही बढ़ रहा है। इस हमले के बाद से ही इजरायल, गाजा में हवाई और जमीनी कार्रवाई कर रहा है। इस संघर्ष की शुरुआत पिछले साल 7 अक्टूबर को हमास के हमले से हुई थी। इस कार्रवाई में अब तक 40,000 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और लगभग 20 लाख लोग बेघर हो गए हैं। स्थिति ऐसी हो गई है कि अब गाजा के लोगों को खाने-पीने की चीजों की कमी का सामना करना पड़ रहा है और यहां की स्वास्थ्य सेवाएं भी चरमरा गई हैं। अमेरिका, मिस्र और कतर जैसे देशों ने युद्धविराम के लिए बहुत कोशिश की है, लेकिन अभी तक कोई खास नतीजा नहीं निकला है। इसकी एक वजह यह भी है कि इजरायल हमास को पूरी तरह से खत्म करना चाहता है, जबकि हमास ‘स्थायी’ युद्धविराम की मांग पर अड़ा हुआ है।
पिछले साल 7 अक्टूबर से ही 100 से ज्यादा इजरायली नागरिक हमास के कब्जे में हैं और यह साफ नहीं है कि उनमें से कितने लोग अभी भी जीवित हैं। दुनिया भर के कई देशों में इजरायल के खिलाफ गुस्सा बढ़ता जा रहा है और उसकी कार्रवाइयों की आलोचना हो रही है। हाल ही में इजरायल ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव को देश में आने से रोक दिया। हालांकि कई यूरोपीय देशों, खासकर अमेरिका में इजरायल को समर्थन मिल रहा है लेकिन अमेरिका में रहने वाले अरब और मुस्लिम आबादी के एक बड़े हिस्से और डेमोक्रेटिक पार्टी के कुछ नेता इसका विरोध कर रहे हैं।
इजरायल और लेबनान की सीमा पर भी तनाव बढ़ गया है। पिछले एक साल से हिजबुल्लाह की ओर से लगातार हो रहे हमलों के जवाब में इजरायल ने हवाई हमले तेज कर दिए हैं और जमीनी कार्रवाई भी शुरू कर दी है। इन हमलों से उत्तरी इजरायल में रहने वाले 70,000 लोग बेघर हो गए हैं। इस कार्रवाई में हिजबुल्लाह नेता नसरल्लाह और उसके कई बड़े सैन्य कमांडर मारे गए हैं। 2006 में भी इजरायल ने ऐसी ही एक मुहिम चलाई थी, लेकिन तब वह हिजबुल्लाह नेतृत्व को नुकसान नहीं पहुंचा पाया था।
हिजबुल्लाह के खिलाफ कार्रवाई के दौरान इजरायल ने सीरिया के रास्ते ईरान से होने वाली सप्लाई को भी निशाना बनाया। इसके अलावा इजरायल ने सीरिया और लेबनान में ईरानी अधिकारियों को भी निशाना बनाया जो हिजबुल्लाह को मदद पहुंचा रहे थे। ईरान में बहुत से लोगों का मानना है कि जुलाई में तेहरान में हमास नेता इस्माइल हानिया की हत्या उनकी संप्रभुता का उल्लंघन है। 1 अक्टूबर को, ईरान ने 180 बैलिस्टिक मिसाइलों से हमला किया, जो पहले के हमलों से कहीं ज्यादा बड़ा था। इनमें से कई मिसाइलें अपने लक्ष्य तक पहुंचने में कामयाब रहीं।
इजरायल का मानना है कि अपने पड़ोसियों को काबू में रखने के लिए ताकत दिखाना ही एकमात्र उपाय है, इसलिए माना जा रहा है कि इस बार वह ईरान को जवाब जरूर देगा। अमेरिका समेत इजरायल के सभी सहयोगी चाहते हैं कि यह संघर्ष जल्द से जल्द खत्म हो। अमेरिका का ध्यान इस समय रूस-यूक्रेन युद्ध पर है। अमेरिका अब तक यूक्रेन को लगभग 100 अरब डॉलर की सहायता दे चुका है। राष्ट्रपति बाइडेन ने 2020 के अपने राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान विदेशों में अमेरिकी सेना की सक्रियता को कम करने की बात कही थी। अगस्त 2021 में अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी को इसी रणनीति के तहत देखा गया था। हालांकि, अमेरिका में इजरायल को पूरा समर्थन देने की अपील करने वालों की भी कमी नहीं है।
कई लोगों का कहना है कि नेतन्याहू अमेरिका की युद्धविराम की सिफारिशों को इसलिए नजरअंदाज कर पा रहे हैं क्योंकि वह अमेरिकी राष्ट्रपति की राजनीतिक मजबूरियों को अच्छी तरह से समझते हैं। रूस और चीन जैसे अमेरिकी प्रतिद्वंद्वी इस स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश करेंगे। 2006 में भी इजरायल ने ऐसी ही एक मुहिम चलाई थी, लेकिन तब वह हिजबुल्लाह नेतृत्व को नुकसान नहीं पहुंचा पाया था।वहीं भारत खाड़ी देशों में रहने वाले 90 लाख भारतीयों की सुरक्षा को लेकर भी चिंतित होगा। अगर अमेरिका ईरान पर और प्रतिबंध लगाता है तो भारत के लिए कई तरह की नीतिगत चुनौतियां भी खड़ी हो सकती हैं।