आज हम आपको बताएंगे कि वोट बैंक बनना महिलाओं के लिए सही है या गलत! पुरुष और महिलाएं एक ही घर में रहते हैं, लेकिन चुनाव विश्लेषक और राजनेता हमें यह विश्वास दिलाते हैं कि वे आपस में बातचीत नहीं करते और शायद अलग-अलग एकांत में रहते हैं। शायद यही कारण है कि हम ‘महिला वोट बैंक’ के बारे में सुनते हैं, लेकिन कभी ‘पुरुष वोट बैंक’ के बारे में नहीं सुनते। अगर महिलाएं वोट बैंक बना सकती हैं, तो पुरुषों के पास अपना वोट बैंक क्यों नहीं होना चाहिए? शायद सोच यह है कि पुरुषों को महिलाओं की तुलना में मनाना कठिन है क्योंकि नौकरी उनकी इच्छा सूची में सबसे ऊपर है। इसके विपरीत, महिलाओं को एक वोट बैंक की शक्ल देकर उनका संरक्षण करना आसान है क्योंकि इसके लिए केवल साड़ी, साइकिल, कुकर आदि जैसे छिटपुट उपहार ही काफी हैं। यूं कहिए कि डॉक्टर को बुलाने की कोई जरूरत नहीं है, एस्पिरिन ही काफी है। लेकिन क्या यह अपमानजनक और बिल्कुल खोखला नहीं है? पुरुष और महिला मतदाताओं की संख्या में लगभग बराबर वृद्धि हुई है। महिलाएं मुश्किल से 1 करोड़ से भी कम की संख्या में पुरुषों के मुकाबले ज्यादा हैं। लोकनीति-सीएसडीएस सर्वेक्षण के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनावों में 36 प्रतिशत महिलाओं ने भाजपा को वोट दिया जबकि 3 प्रतिशत ज्यादा पुरुषों ने बीजेपी का साथ दिया। इससे स्पष्ट पता चलता है कि क्या पुरुष और क्या महिला, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों के बीच लोकप्रिय हैं, फिर भी यह धारणा बनी हुई है कि उनकी जीत का कारण महिला मतदाता हैं।
सर्वे के आंकड़ों से यह भी पता चला कि पुरुषों की तरह ही सभी वर्गों की महिलाओं ने भी पूरे देश में भाजपा को चुना। हालांकि, कुछ विचित्र तथ्य भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, 2023 के मध्य प्रदेश चुनाव में कांग्रेस के मतदाताओं में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या अधिक थी, जबकि भाजपा के मामले में स्थिति उलटी थी। ऐसा शिवराज सिंह चौहान की ‘लाडली बहना योजना’ के बावजूद है। महिलाओं को खुश करना पुरुषों जितना ही आसान या मुश्किल है, यह बात इंडिया टुडे के सर्वेक्षण से पुष्ट होती है, जिसमें दिखाया गया है कि एनडीए की सबसे बेशकीमती उपलब्धियों में एक यह है कि पुरुष और महिला, दोनों में संतुष्टि का स्तर समान है। हालांकि, भले ही श्रम बल में उनका प्रतिनिधित्व कम है, लेकिन पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं बेरोजगारी को लेकर चिंतित हैं। वैस उम्मीद थी कि इसका उल्टा होगा।
इसी सर्वेक्षण में कहा गया है कि 2019 में 44% पुरुषों और 46% महिलाओं ने भाजपा को वोट दिया। सर्वे कहता है कि 57% महिलाएं भाजपा से पूरी तरह संतुष्ट थीं जबकि पुरुषों के लिए यह आंकड़ा 55% था। बड़े पैमाने पर किए जाने वाले सर्वेक्षणों में त्रुटि के मार्जिन के रूप में केवल 2% का अंतर माना जाता है। इस बात को लेकर विवाद यह है कि महिलाओं की तुलना में अधिक पुरुषों ने महिला आरक्षण विधेयक का स्वागत किया। बिहार में नीतीश की वोट बैंक पॉलिसीज कारगर रहीं क्योंकि महिलाओं ने जेडीयू को भारी वोट दिया, लेकिन यह भी स्वीकार किया जाना चाहिए कि उनके शराबबंदी के फैसले का पुरुषों ने भी समर्थन किया होगा। अगर उनमें से ज्यादातर शराबी होते तो पुरुष एक नकारात्मक वोट बैंक बना सकते थे और नीतीश के खिलाफ वोट कर सकते थे। बेशक, जब तक कि उन पर शराब का नशा इतना चढ़ा हो कि वोट देने ही नहीं जा सके।
स्थानीय निकायों में 50% महिलाओं के प्रतिनिधित्व जैसी अन्य योजनाओं को गलत तरीके से सामाजिक न्याय के बजाय वोट बैंक के रूप में देखा जाता है। अगर भाजपा से लेकर कांग्रेस तक ‘वोटर’ की धारणा अभी भी आकर्षक है तो ऐसा इसलिए है क्योंकि महिलाओं को वंचित माना जाता है। यही कारण है कि महिलाओं को वोट बैंक के रूप में ही देखा जाता है। यह संदेश कतई सराहनीय नहीं है। वोट बैंक बनने वाले कभी सम्मानित नहीं होते क्योंकि उन्हें छोटे-मोटे लुभावने वादों से ही जीत लिया जाता है। यह बताता है कि आत्मसम्मान वाले नागरिक बनाने के मुकाबले वोट बैंक की राजनीति आसान क्यों है। आत्मसम्मान को ऊपर रखने वाला नागरिक बनाना एक कठिन काम है क्योंकि इसके लिए व्यवस्थागत बदलाव की आवश्यकता होती है। इसलिए आश्चर्य की बात नहीं है कि इस रास्ते पर कोई राजनीतिक दल कम ही कदम बढ़ाता है। इसके विपरीत, वोट बैंक का रास्ता पार्क में टहलने जैसा है।
फिर भी 2024 के लोकसभा चुनावों में केवल 10% उम्मीदवार महिलाएं हैं। हालांकि, सामान्य श्रेणी के रूप में ‘महिलाओं’ का वोट बैंक के रूप में संचालन बड़ी समस्या है। सर्वेक्षणों से पता चलता है कि बिहार, यूपी और राजस्थान जैसे गरीब राज्यों में महिलाओं को दिल्ली, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे अमीर राज्यों की तुलना में वोट बैंक की राजनीति में अधिक आसानी से शामिल किया जाता है।भविष्य में राजनेताओं को महिलाओं के वोट हासिल करने के लिए अपनी रणनीति बदलनी होगी और वोट बैंक की राजनीति से दूर रहना होगा। एक बहुचर्चित चुनाव विशेषज्ञ के अनुसार, जेन जेड महिलाएं शिक्षा और नौकरियों पर अधिक ध्यान केंद्रित करती हैं जबकि बुजुर्ग महिलाएं ऐसा नहीं करतीं। कॉरपोरेट बोर्डरूम भी अब केवल गहरे रंग के सूट और टाई वाले नहीं रह गए हैं, न ही कंपनी के प्रमुख एक समान रूप से पुरुष हैं। जल्द ही पुरुष एक नए वोट बैंक के रूप में उभर सकते हैं!