यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या नसरुल्लाह की मौत तीसरे विश्व युद्ध की घंटी है या नहीं! इजरायल के लेबनान में भीषण हवाई हमले में हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह की हत्या ने क्षेत्र में तनाव को काफी बढ़ा दिया है। हमले के बाद इजरायल और लेबनानी गुट हिजबुल्लाह के बीच पूर्ण युद्ध का अंदेशा बढ़ गया है। इजरायल और हिजबुल्लाह के बीच संघर्ष छिड़ा तो ईरान और अमेरिका भी इससे बाहर नहीं रहेंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि अब चीजें किस तरफ जाएंगी। खासतौर से हिजबुल्लाह, ईरान और इजरायल का अगला कदम क्या होगा। रिपोर्ट के मुताबिक, हालिया घटनाक्रम में सबसे ज्यादा नुकसान हिजबुल्लाह ने उठाया है। ऐसे में सवाल है कि एक के बाद एक झटके झेल रहा ये गुट अब क्या करेगा। हिजबुल्लाह के ज्यादातर कमांडरों की हत्या कर दी गई है और उसके कम्युनिकेशन सिस्टम पेजर और वॉकी-टॉकी को भी तहस-नहस कर दिया गया है। ऐसे में हिजबुल्लाह के सामने फिर से उठ खड़े होने और इजरायल को जवाब देने की चुनौती है।
अमेरिका स्थित मध्य पूर्व सुरक्षा विश्लेषक मोहम्मद अल-बाशा का मानना है कि हसन नसरल्लाह की मौत हिजबुल्लाह के लिए बड़ा नुकसान है। इससे ये गुट अस्थिरता का शिकार होगा और इसकी राजनीतिक और सैन्य रणनीतियों में भी बदलाव आएगा। हालांकि ये ऐसी उम्मीद करना गलत है कि ये कि गुट अचानक से अपनी हार मान लेगा। एक्सपर्ट का मानना है कि हिजबुल्लाह लड़ाई जारी रखेगा ना कि इजराइल की शर्तों पर किसी समझौता को मान लेगा। हिजबुल्लाह के पास हजारों लड़ाके हैं और हथियारों का बड़ा जखीरा है। उसके पास ऐसी मिसाइल और रॉकेट हैं, जो इजरायल के तेल अवीव और दूसरे शहरों तक पहुंच सकते हैं। हिजबुल्लाह दबाव बढ़ने पर इनका इस्तेमाल कर सकता है।
हसन नसरल्ला की हत्या ईरान के लिए उतना ही बड़ा झटका है, जितना हिजबुल्लाह के लिए है। ईरान ने इस हत्या पर कड़ी प्रतिक्रिया भी दी है। इससे पहले जुलाई में तेहरान में हमास नेता इस्माइल हानिया की हत्या भी ईरान के लिए शर्म की वजह बनी थी। ईरान पर इजरायल के बढ़ते हमले ईरान सरकार को प्रतिक्रिया के लिए मजबूर कर सकते हैं।ईरान के पास पश्चिम एशिया में कई गुट हैं। इनमें हिजबुल्लाह के अलावा यमन में हूती हैं। सीरिया और इराक में भी ईरान के पास मिलिशिया हैं। ईरान इन समूहों से अपने क्षेत्रों में इजरायल और अमेरिकी ठिकानों पर अपने हमले तेज करने के लिए कह सकता है। हालांकि ऐसा होने पर इजरायल के साथ खुद तो भी एक पूर्ण युद्ध में पा सकता है।
अमेरिका के खास सहयोगी इजरायल पर खासतौर से सभी की निगाह है क्योंकि उसने लेबनान में हमला कर अपनी आक्रामकता जाहिर कर दी है। इजरायल का रुख दिखाता है कि उसका फिलहाल युद्धविराम का कोई इरादा नहीं है। इजरायली सेना को लगता है कि हिजबुल्लाह बैकफुट पर है, इसलिए वह उस पर आक्रमण को जारी रखना चाहेगा।
इजरायल पर इसलिए भी नजर रहेगी कि वह हवाई हमले की करता है या जमीन पर भी सेना लेबनान में भेजेगा। इजरायली सेना लेबनान में जमीनी अभियान का ऐलान कर सकती है। आईडीएफ के लिए लेबनान में एंट्री मुश्किल नहीं होगी लेकिन उसे अभियान पूरा करने में गाजा की तरह महीनों या वर्ष भी लग सकते हैं। इससे इजरायल की चुनौती बढ़गी। बता दें कि इजरायल और ईरान के बीच यह दोस्ती इतनी गहरी थी कि खुमैनी के आने के बाद भी इज़रायल ने 1980 से 1988 तक ईरान-इराक युद्ध के दौरान ईरान को काफी मदद दी थी। हुआ यह था कि 22 सितंबर 1980 को सद्दाम हुसैन की सेना ने अचानक ईरान पर हमला कर दिया था। युद्ध के दौरान ईरान को सैन्य साजोसामान मुहैया कराने वालों में सबसे आगे इजरायल ही था।
इज़राइल ने ईरान के युद्ध को प्रत्यक्ष समर्थन दिया था। उस वक्त इजरायल ने ऑपरेशन बेबीलोन के तहत इराक के ओसिरक परमाणु रिएक्टर पर बमबारी करके उसे नष्ट कर दिया। परमाणु रिएक्टर को इराक के परमाणु हथियार कार्यक्रम का एक हिस्सा माना जाता था। उस वक्त इराक पर तानाशाह सद्दाम हुसैन का राज था। 1982 की बात है, जब इजरायल ने लेबनान पर आक्रमण कर फिलिस्तीन मुक्ति संगठन को बाहर कर दिया था। दक्षिण लेबनान में सुरक्षा क्षेत्र के आगामी निर्माण से लेबनान में इजरायली सहयोगियों और नागरिक इजरायली आबादी को अस्थायी रूप से लाभ हुआ। नतीजा यह हुआ कि दक्षिण लेबनान के भीतर फिलीस्तीनी के बजाय घरेलू लेबनानी प्रतिरोध आंदोलन का उदय हुआ, जहां हिजबुल्लाह मजबूती के साथ उठ खड़ा हुआ।