अब आने वाले समय में प्रियंका गांधी अपना राजनीतिक डेब्यू करने वाली है! चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र और झारखंड के साथ-साथ उपचुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। इस बीच कांग्रेस ने केरल की वायनाड सीट से प्रियंका गांधी की उम्मीदवारी का औपचारिक ऐलान कर दिया है। प्रियंका गांधी पहली बार चुनावी मैदान में होंगी। इस सीट पर राहुल गांधी ने चुनाव जीता था। कांग्रेस ने जून में ही प्रियंका गांधी के वायवाड से चुनाव लड़ने की घोषणा की थी, जब उनके भाई राहुल गांधी ने यूपी में पारिवारिक सीट रायबरेली को बरकरार रखने के लिए यह सीट खाली कर दी थी। प्रियंका गांधी भले ही कभी चुनाव नहीं लड़ीं, लेकिन वो राजनीति में काफी पहले से सक्रिय हैं। प्रियंका गांधी ने 1999 में राजनीति में एंट्री ली थी, जब वो अपनी मां सोनिया गांधी के लिए चुनाव प्रचार करने उतरी थीं। इस दौरान उन्होंने पहली बार राजनीतिक मंच से बीजेपी उम्मीदवार अरुण नेहरू के खिलाफ प्रचार था। लेकिन इन 25 सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ, जब प्रियंका गांधी ने चुनाव लड़ा हो। हालांकि उनके चुनाव लड़ने की कई बार चर्चा हुई। कांग्रेस समर्थक प्रियंका गांधी से यूपी में अपनी दादी और मां की विरासत को आगे बढ़ाने की आशा टिकाए हुए थे
प्रियंका गांधी अपनी सूझबूझ के लिए जानी जाती हैं। 2017 में यूपी विधानसभा में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन और सीट बंटवारे में प्रियंका गांधी ने बड़ी भूमिका निभाई। कांग्रेस ने यूपी चुनाव में 110 सीटों की मांग कर रही थी, जबकि अखिलेश यादव की पार्टी ने 100 सीटें देने की पेशकश की थी। जनवरी 2019 तक प्रियंका को पूर्वी यूपी में कांग्रेस का महासचिव बनाया गया था, जहां कांग्रेस के गढ़ अमेठी और रायबरेली हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ने के बाद, सितंबर 2020 तक, उन्हें पूरे उत्तर प्रदेश की प्रभारी महासचिव नियुक्त किया गया था। हालांकि दिसंबर 2023 में संगठनात्मक फेरबदल में उनसे उत्तर प्रदेश का प्रभार छीन लिया गया, लेकिन वो पार्टी की महासचिव बनी रहीं।
प्रियंका गांधी वायनाड से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गई हैं। लेकिन ये बस इतनी सी कहानी नहीं है। दरअसल कांग्रेस दक्षिण भारत खासतौर पर केरल में अपनी पैठ बढ़ाना चाहती है। पार्टी कर्नाटक और तेलंगाना में सत्ता में है और अपनी सहयोगी डीएमके के साथ तमिलनाडु की सत्ता पर काबिज है। उत्तर भारत के विपरीत, जहां बीजेपी की पकड़ मजबूत है, वहीं कांग्रेस दक्षिण में जीत हासिल करने की कोशिश में है। अगर प्रियंका गांधी वायनाड से जीतती हैं, जिसे कांग्रेस के लिए सुरक्षित सीट माना जाता है, तो यह पहली बार होगा जब नेहरू-गांधी परिवार के तीन सदस्य एक साथ संसद में होंगे। पहली बार राहुल और प्रियंका गांधी लोकसभा में और सोनिया गांधी राज्यसभा में होंगी।
बता दे कि हरियाणा चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस नेताओं की ओर से इस बात पर आश्चर्य प्रकट किया जा रहा है कि ऐसा कैसे हो गया। हार के कारणों को भी पार्टी स्वीकार नहीं कर पा रही है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस आलाकमान भी खामोश है लेकिन सवाल यह है कि क्या उसे पता नहीं कि आखिर हरियाणा में हुआ क्या। यह किसी एक राज्य की कहानी नहीं, ऐसा पूर्व में कुछ और राज्यों में भी हो चुका है। इसका खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ा है। गांधी परिवार को भी यह पता है और बावजूद इसके शीर्ष नेतृत्व कोई ओर से कोई बड़ा फैसला नहीं हो सका। हरियाणा के नतीजों को समझने के साथ ही बाकी राज्यों में जो हुआ उसे भी समझना जरूरी है।
जनता सब समझती है। यदि किसी को ऐसा लगता है कि पब्लिक नहीं समझ रही तो ऐसा सोचना बेमानी है। हरियाणा चुनाव की घोषणा के साथ ही पूरे राज्य में ऐसी चर्चा थी कि कांग्रेस पार्टी के भीतर गुटबाजी है। पार्टी के भीतर दो गुट बताए गए लेकिन एक तीसरा गुट भी खामोशी से इंतजार कर रहा था। टिकटों के बंटवारे के बाद गुटबाजी और बढ़ गई। सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ, जब प्रियंका गांधी ने चुनाव लड़ा हो। हालांकि उनके चुनाव लड़ने की कई बार चर्चा हुई। कांग्रेस समर्थक प्रियंका गांधी से यूपी में अपनी दादी और मां की विरासत को आगे बढ़ाने की आशा टिकाए हुए थे।इन सबके बीच हरियाणा में यह मैसेज क्लियर चला गया कि पार्टी किस ओर आगे बढ़ रही है। कांग्रेस की ओर से भले ही किसी का नाम सीएम पद के लिए नहीं लिया गया लेकिन भूपेंद्र सिंह हुड्डा अघोषित दावेदार हो गए। इधर कुमारी शैलजा भी अपनी दावेदारी से पीछे नहीं हट रही थीं।