Sunday, September 8, 2024
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क्या पश्चिम बंगाल में हो रहा है सीबीआई पर विरोध?

वर्तमान में पश्चिम बंगाल में सीबीआई पर विरोध किया जा रहा है! हाल ही में ममता बनर्जी सरकार पश्चिम बंगाल में सीबीआई जांच के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी। 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने ममता सरकार की अर्जी को सुनवाई के योग्य मानते हुए मामले की अगली सुनवाई 13 अगस्त को तय कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार ने कानूनी पहलू उठाया है जिस पर विचार किया जाना चाहिए। जब राज्य सरकार ने CBI जांच के लिए दी गई अपनी परमीशन को वापस ले लिया तो फिर एजेंसी वहां के मामलों में केस क्यों दर्ज कर रही है। दरअसल, ममता बनर्जी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 131 का हवाला देते हुए यह याचिका दाखिल की है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल सरकार की एक और याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में संदेशखाली में महिलाओं के यौन शोषण-जमीन हथियाने और राशन घोटाले से जुड़े सभी मामलों में सीबीआई जांच का आदेश दिया था।  पश्चिम बंगाल और केंद्र के बीच यह विवाद संदेशखाली केस के बाद शुरू हुआ। प्रवर्तन निदेशालय यानी ED ने इस साल 5 जनवरी को बंगाल के संदेशखाली में टीएमसी नेता शेख शाहजहां के घर छापा मारा था। इस दौरान अधिकारियों पर TMC समर्थकों ने जानलेवा हमला किया था। इसमें तीन अधिकारी घायल हो गए थे। बाद में सामने आया कि शाहजहां ने कई महिलाओं से यौन उत्पीड़न किया है। इस मामले में केंद्र सरकार ने सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी। जब इस मामले में सीबीआई जांच को लेकर ममता सरकार ने मंजूरी नहीं दी तो सीबीआई ने हाईकोर्ट से इजाजत ले ली। कलकत्ता हाईकोर्ट ने 10 अप्रैल को संदेशखाली केस CBI को सौंप दिया। हाईकोर्ट के आदेश के बाद CBI ने महिलाओं के यौन शोषण मामले में FIR दर्ज की। यहीं से केंद्र और राज्य के बीच यह विवाद बढ़ता चला गया।

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार ने 1941 में भ्रष्टाचार और घूसखोरी की जांच के लिए स्पेशल पुलिस एस्टैब्लिशमेंट एक्ट तैयार किया। युद्ध के बाद दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (डीएसपीई) अधिनियम, 1946 के प्रावधानों के तहत इस एजेंसी का कामकाज शुरू हुआ। 1963 में गृह मंत्रालय ने इसका नाम स्पेशल पुलिस एस्टैब्लिशमेंट से बदलकर सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (CBI) कर दिया। सीबीआई लोक सेवकों के भ्रष्टाचार, गंभीर आर्थिक अपराधों, धोखाधड़ी और सनसनीखेज अपराध से संबंधित क्राइम की जांच करती है। साथ ही सामाजिक अपराध विशेष रूप से आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी, कालाबाजारी और मुनाफाखोरी से संबंधित गंभीर अपराधों की जांच करना भी इसका मकसद था। 1987 इसका जांच करने का दायरा बढ़ाया गया। इसके बाद से ही यह एजेंसी हत्या, अपहरण, आतंकवाद के अलावा कई संगठित गंभीर अपराधों की जांच भी करने लगी। यह एजेंसी अपनी मर्जी से किसी मामले को संज्ञान में नहीं ले सकती। केंद्र सरकार की अनुमति के बाद ही कोई मामला जांच के लिए सीबीआई को दिया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अनिल कुमार सिंह श्रीनेत कहते हैं कि अगर किसी मामले की जांच सीबीआई कर रही है तो उसे राज्य सरकार की इजाजत लेनी अनिवार्य है। एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट भी यह बात साफ तौर कह चुका है कि बिना राज्य सरकार की अनुमति के सीबीआई वहां जांच नहीं कर सकती है। जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा था कि यह प्रावधान संविधान के मुताबिक है। वहीं, राष्ट्रीय जांच एजेंसी को आतंकवाद से जुड़े मामलों में जांच और कार्रवाई के लिए राज्य सरकार की परमिशन की जरूरत नहीं होती।

दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 से सीबीआई एक स्वतंत्र निकाय है। यह कानून उस राज्य में किसी भी अपराध की सीबीआई जांच के लिए राज्य सरकार की सहमति प्राप्त करना अनिवार्य बनाता है। राज्य सरकार की सहमति या तो सामान्य या मामले के अनुसार विशिष्ट हो सकती है। राज्य अपने क्षेत्र में केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की त्रुटिहीन सीबीआई जांच के लिए अपनी सामान्य सहमति दे सकता है। सामान्य सहमति के अभाव में सीबीआई को छोटी से छोटी कार्रवाई से पहले विशिष्ट सहमति मांगनी अनिवार्य है।

पिछले कुछ सालों में 8 राज्यों ने जांच के लिए अपनी सामान्य सहमति वापस ले ली है। नतीजतन एजेंसी को मामले में विशिष्ट अनुमति की जरूरत है। इन राज्यों में पश्चिम बंगाल, झारखंड, केरल, महाराष्ट्र, राजस्थान और मिजोरम शामिल हैं। मिजोरम 2015 में अपनी सामान्य सहमति वापस लेने वाला पहला राज्य था। नवंबर 2018 में, आंध्र प्रदेश के तत्कालीन सीएम एन चंद्रबाबू नायडू ने राज्य की सामान्य सहमति वापस ले ली। इस मामले के कुछ ही घंटों बाद सीएम ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार ने इसकी घोषणा की। बाद में आंध्र प्रदेश ने अपनी सहमति बहाल कर दी। जनवरी 2019 में छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य की सहमति वापस ले ली। पंजाब ने अपनी सामान्य सहमति वापस नहीं ली, लेकिन उसने सीबीआई द्वारा जांच किए जा रहे महत्वपूर्ण मामलों के लिए केस-विशिष्ट सहमति वापस ले ली।

एडवोकेट अनिल कुमार सिंह श्रीनेत के अनुसार, राजनीतिक भावना से प्रेरित विवादों के निपटारे के लिए अनुच्छेद 131 का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। वर्ष 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के बीच विवाद के मामले पर सुनवाई करने हेतु असहमति जताई थी। अगर केंद्र या राज्य के विरुद्ध किसी नागरिक की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कोई याचिका दायर की जाती है तो उसे अनुच्छेद 131 के तहत नहीं लिया जाएगा।

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