Sunday, September 8, 2024
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आखिर यूपी में कैसे हार गई बीजेपी जानिए?

आज हम आपको बताएंगे कि यूपी में बीजेपी आखिर कैसे हार गई! लोकसभा चुनाव में बीजेपी को उत्तर प्रदेश में बड़ा झटका लगा था। सबसे बड़े सूबे में हार के बाद बीजेपी ने इसकी वजहों का पता लगाने के लिए रिपोर्ट तैयार की है। पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच मतभेद और नाराजगी की खबरों के बीच यूपी बीजेपी ने अपनी रिपोर्ट आलाकमान को सौंप दी है। इस रिपोर्ट में यूपी में पार्टी की हार की 6 मुख्य वजह बताई गई हैं। इसमें प्रशासन का अड़ियल रवैया, पार्टी कार्यकर्ताओं में असंतोष, पेपर लीक और सरकारी नौकरियों में अनुबंध पर भर्ती शामिल है। आइए बताते हैं बीजेपी ने यूपी में हार की क्या वजहें बताई हैं। यूपी बीजेपी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्षी दलों ने आरक्षण को लेकर भ्रामक प्रचार किया। बार बार विपक्ष ने आरक्षण पर बीजेपी के रुख पर भ्रामक प्रचार किया। इसके अलावा रिपोर्ट में कहा गया है कि पार्टी को कुर्मी, मौर्य और दलित समुदायों का भी भरपूर समर्थन नहीं मिल पाया।राज्य को केंद्रीय निर्देशों का पालन करने के महत्व को समझना चाहिए। हम सब बराबर हैं; किसी को भी हावी नहीं होना चाहिए। नेताओं को यूपी के स्थानीय मुद्दों को समझना चाहिए, और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए।” मायावती की बसपा के वोट शेयर में 10 प्रतिशत की कमी और कुछ क्षेत्रों में कांग्रेस के प्रदर्शन में सुधार को भी हार के कारणों में शामिल किया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रशासन और पार्टी के बीच तालमेल की कमी, कार्यकर्ताओं में असंतोष और जातिगत समीकरणों को सही तरीके से न संभाल पाना हार की बड़ी वजह बने। रिपोर्ट में कहा गया है कि विधायक के पास कोई शक्ति नहीं है। हम सब बराबर हैं; किसी को भी हावी नहीं होना चाहिए। नेताओं को यूपी के स्थानीय मुद्दों को समझना चाहिए, और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए।”जिलाधिकारी और अधिकारी ही सब कुछ चलाते हैं। इससे हमारे कार्यकर्ता अपमानित महसूस कर रहे हैं। आरएसएस और बीजेपी सालों से साथ काम कर रहे हैं, समाज में मजबूत संबंध बना रहे हैं। अधिकारी पार्टी कार्यकर्ताओं की जगह नहीं ले सकते।

यूपी बीजेपी की रिपोर्ट में पेपर लीक मुद्दे को भी हार की वजहों में शामिल किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले तीन साल में कम से कम 15 पेपर लीक हुए हैं, जिससे विपक्ष के इस प्रचार को बल मिला है कि बीजेपी आरक्षण को रोकना चाहती है। इसके ऊपर, सरकारी नौकरियों को अनुबंधित कर्मचारियों द्वारा भरा जा रहा था, जिससे पार्टी बारे में विपक्ष के भ्रामक प्रचार करने का मौका मिला। पार्टी सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय नेतृत्व को यह बताया गया है कि राज्य इकाई को अपने मतभेदों को जल्द से जल्द सुलझाना चाहिए और जमीनी स्तर पर काम शुरू करना चाहिए ताकि इस भावना को “अगड़ा बनाम पिछड़ा” संघर्ष के रूप में विकसित होने से रोका जा सके। एक पार्टी पदाधिकारी ने कहा, “2014, 2017, 2019 और 2022 की जीत की लकीर को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। वरिष्ठ नेताओं को हस्तक्षेप करने और मार्गदर्शन प्रदान करने की आवश्यकता है। राज्य को केंद्रीय निर्देशों का पालन करने के महत्व को समझना चाहिए। हम सब बराबर हैं; किसी को भी हावी नहीं होना चाहिए। नेताओं को यूपी के स्थानीय मुद्दों को समझना चाहिए, और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए।”

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चुनाव प्रचार टिकटों के जल्दी बंटवारे के कारण जल्दी चरम पर पहुंच गया। छठे और सातवें चरण तक, कार्यकर्ताओं में थकान घर कर गई थी।यूपी बीजेपी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्षी दलों ने आरक्षण को लेकर भ्रामक प्रचार किया। बार बार विपक्ष ने आरक्षण पर बीजेपी के रुख पर भ्रामक प्रचार किया। पार्टी नेताओं द्वारा आरक्षण नीतियों के खिलाफ दिए गए बयानों ने पार्टी के घटते समर्थन को और बढ़ा दिया।रिपोर्ट में कहा गया है,प्रशासन और पार्टी के बीच तालमेल की कमी, कार्यकर्ताओं में असंतोष और जातिगत समीकरणों को सही तरीके से न संभाल पाना हार की बड़ी वजह बने। रिपोर्ट में कहा गया है कि विधायक के पास कोई शक्ति नहीं है। ‘पुरानी पेंशन योजना जैसे मुद्दों ने सीनियर सिटीजन के वोट घटाए, जबकि अग्निवीर और पेपर लीक जैसे मुद्दों पर युवाओं ने बीजेपी को समर्थन नहीं दिया। वहीं विपक्ष ने उन मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाया जो लोगों की चिंता बने हुए थे।

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