जानिए कैसे बना डाकघर का आईडी कोड?

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आज हम आपको बताएंगे कि आखिर डाकघर का आईडी कोड कैसे बना है, जिसे कई लोग पिन कोड के नाम से भी जानते हैं! पिन कोड पोस्टल इंडेक्स नंबर का छोटा नाम है। देश में कहीं भी हम चिट्ठी भेजते हैं तो आमतौर पर किसी भी पते के अंत में यही अंकित होता है। भारतीय डाक प्रणाली में छह अंकों का संख्यात्मक कोड है पिन। भारत जैसे विशाल देश में इतने सारे गांव, कस्बे और शहर हैं कि भारतीय डाक सेवा के लिए सही व्यक्ति या स्थान ढूंढना थोड़ा चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इस प्रकार, पार्सल या पत्र पहुंचाने की प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए, इंडिया पोस्ट ने छह अंकों का पिन कोड नंबर बनाया है। डिलीवरी डाकघर चाहे तो जनरल पोस्ट ऑफिस हो सकता है, एक सब पोस्ट ऑफिस हो सकता है या शहरी इलाके का एक हेड पोस्ट ऑफिस हो सकता है। इन डाकघरों से चिट्ठियां एकत्र की जाती हैं और संबंधित सब पोस्ट ऑफिस में पहुंचाए जाते हैं। उसके बाद अंततः डाकिया की मदद से हमारे-आपके घरों तक पहुंचाई जाती है।भारत में आजादी से पहले पिन कोड अस्तित्व में नहीं था। आजादी के बाद भी कई दशकों तक पिन कोड नहीं बना था। दरअसल, पिन कोड की शुरुआत 15 अगस्त 1972 को संचार मंत्रालय के तत्कालीन अतिरिक्त सचिव श्रीराम भीकाजी द्वारा की गई थी। डाकघर में आई चिट्ठियों को मैन्युअल रूप से सॉर्ट करने और वितरित करने की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए पिन कोड की नई प्रणाली को महत्वपूर्ण माना गया।लेकिन इन डाकघरों को 19,101 पिन कोड्स में बांटा गया है। इन डाकघरों को पांच पोस्ट ऑफिस जोन में बांटा गया है। ये हैं नार्दर्न, वेस्टर्न, सदर्न, ईस्टर्न और आर्मी पोस्टल जोन। ऐसा इसलिए है क्योंकि अलग-अलग भाषाओं और समान नामों और पतों से डाककर्मी को काफी भ्रम हो जाता था। इसे दूर करने के लिए ही एक मानक प्रक्रिया की जरुरत महसूस की गई जो प्रक्रिया को सरल बनाने में मदद करे। इस तरह, राज्यों, जिलों और शहरों की पहचान के लिए पिन कोड पेश किए गए।

भारतीय डाक सेवा में पूरे भारत को नौ विशेष पिन क्षेत्र में बांटा गया है। इनमें से आठ भौगोलिक क्षेत्र हैं और नौवां क्षेत्र भारतीय सेना के लिए आरक्षित है। पिन कोड का पहला अंक क्षेत्र को दर्शाता है, दूसरा अंक एक उपक्षेत्र है, तीसरा अंक उस क्षेत्र के भीतर सॉर्टिंग जिले को दर्शाता है, और अंतिम तीन अंक उस जिले के भीतर विशिष्ट डाकघर को दर्शाते हैं। पूरे देश में यूं तो डेढ़ लाख से भी ज्यादा डाकघर हैं। लेकिन इन डाकघरों को 19,101 पिन कोड्स में बांटा गया है। इन डाकघरों को पांच पोस्ट ऑफिस जोन में बांटा गया है। ये हैं नार्दर्न, वेस्टर्न, सदर्न, ईस्टर्न और आर्मी पोस्टल जोन। नार्दर्न जोन का कोड 1 और 2 है, वेस्टर्न जोन का कोड 3 और 4, सदर्न जोन का कोड 5 और 6 तथा ईस्टर्न जोन का कोड 7 और 8 है।

प्रत्येक पिन एक डिलीवरी डाकघर के लिए डिज़ाइन किया गया है जो अपने अधिकार क्षेत्र के तहत विभिन्न डाकघरों में वितरित किए जाने वाले सभी मेल प्राप्त करेगा। डिलीवरी डाकघर चाहे तो जनरल पोस्ट ऑफिस हो सकता है, एक सब पोस्ट ऑफिस हो सकता है या शहरी इलाके का एक हेड पोस्ट ऑफिस हो सकता है। इन डाकघरों से चिट्ठियां एकत्र की जाती हैं और संबंधित सब पोस्ट ऑफिस में पहुंचाए जाते हैं। उसके बाद अंततः डाकिया की मदद से हमारे-आपके घरों तक पहुंचाई जाती है।

आमतौर पर डाकघर के बाहर, किसी भी लेटर बॉक्स के ऊपर पिन कोड लिखा रहता है। दशकों तक पिन कोड नहीं बना था। दरअसल, पिन कोड की शुरुआत 15 अगस्त 1972 को संचार मंत्रालय के तत्कालीन अतिरिक्त सचिव श्रीराम भीकाजी द्वारा की गई थी। डाकघर में आई चिट्ठियों को मैन्युअल रूप से सॉर्ट करने और वितरित करने की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए पिन कोड की नई प्रणाली को महत्वपूर्ण माना गया। ऐसा इसलिए है क्योंकि अलग-अलग भाषाओं और समान नामों और पतों से डाककर्मी को काफी भ्रम हो जाता था।आप अपने इलाके के डाकघर में जाकर या आस पास के लेटर बॉक्स के ऊपर अपने इलाके का पिन कोड जान सकते हैं। आप चाहें तो इसे किताब में भी ढूंढ सकते हैं। इसके लिए भारतीय डाक विभाग पिन कोड की किताब छपवाये हुए है। इसके अलावा आप इंडिया पोस्ट पर जाकर अपना पिन कोड पा सकते हैं। इस पर आपको सारी जानकारी दर्ज करनी होगी और अंत में सबमिट पर क्लिक करना होगा।