हाल ही के दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 72 वाँ जन्मदिन गुजरा है! गुजराती समझने वाले उस लड़के ने ट्रेन के मुसाफिरों को चाय बेचते-बेचते हिंदी सीख ली। वह सेना में जाने की ख्वाहिश रखते थे। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण उनकी ख्वाहिशों का गुल्लक भी हमेशा खाली रहा। बाद में इस नौजवान ने अपनी मेहनत और लगन से वो मुकाम हासिल किया जो लाखों-करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा है। प्रधानमंत्री पर बहुत सी किताबें लिखी जा चुकी हैं, वेबसाइटें हैं, फिल्म भी बन चुकी है। ऐसे में उनके जन्मदिन के मौके पर हमने पांच ऐसे चुनिंदा किस्से निकाले हैं जो उनकी शख्सियत को परिभाषित करते हैं।
बात उन दिनों की है जब नरेंद्र मोदी प्रचारक हुआ करते थे। वह गुजरात के संघ कार्यकर्ता महेश दीक्षित के घर आते रहते थे। ठंडी का मौसम था। एक रोज वह रात में देर से घर पहुंचे। दीक्षित बताते हैं कि वह और उनकी पत्नी सो चुके थे। घर के बाहर पोर्च में एक लकड़ी का बोर्ड पड़ा हुआ था। उन्होंने अपना झोला खूंटी पर लटका दिया और उसी लकड़ी के बोर्ड पर सो गए। सुबह जब दीक्षित सूर्य देवता को अर्घ्य देने बाहर निकले तो उन्होंने देखा कि कोई सोया हुआ है। पूजा के बाद जब उन्होंने पास जाकर देखा तो नरेंद्र मोदी बोर्ड पर सोए हुए थे।
यह किस्सा सुनाते हुए वह बताते हैं कि मैंने पूछा, ‘भाई, आपने ऐसा क्यों किया। इतनी ठंडी में आप बाहर सोए।’ नरेंद्र भाई ने जवाब दिया, ‘मैं आधी रात को आया था। मैं इतनी रात को आपको उठाऊं, आप उठ तो जाएंगे लेकिन मेरे घर में आने के बाद मेरी बहन की तकलीफ शुरू हो जाती। मेरे लिए क्या खाना है, क्या व्यवस्था करनी है। मेरी व्यवस्था में पूरी रात उसकी निकल जाएगी। इसी वजह से मैंने आपको नहीं उठाया। मैं नहीं चाहता था कि मेरी वजह से मेरी बहन को कोई तकलीफ हो।’
एक बार की बात है। बीजी मेडिकल अस्पताल के डॉक्टरों के साथ मीटिंग चल रही थी और रात में काफी देर हो गई। गुजरात के भाजपा नेता मिहिर पंड्या बताते हैं कि उस रात सेशन लंबा खिंच गया। डॉक्टरों ने मोदी से पूछा कि आपको अस्पताल में इतनी देर हो गई है, खाने की आपकी व्यवस्था क्या है। मिहिर कहते हैं, ‘मोदी साहब ने बताया था कि अब मैं खानपुर कार्यालय जाऊंगा। वहां कार्यालय के बाहर एक पत्थर पड़ा है। उस पत्थर के नीचे एक पर्ची रखी होगी। उसमें एक नाम लिखा होगा कि आज इस बंदे के घर आपको खाना खाने के लिए जाना है… मोदी साहब ने बताया कि कई बार ऐसा भी होता है कि पत्थर के नीचे चिट्ठी नहीं भी होती, ऐसे में फिर चना और गुड़ खाकर वहां सो जाना है।’
मिहिर ने कहा कि आप ये सुनोगे तो आपको लगेगा कि अगर पत्थर के नीचे पर्ची नहीं है तो इसका मतलब आज रात खाना नहीं है। ये बात ही आपको परेशान कर देगी। लेकिन इतने सामान्य तरीके से इस बात को वही आदमी किसी को बता सकता है जिसके दिल में देश के लिए कुछ करने की इच्छा है।
90 के दशक में संगठन के लिए काम करते समय मोदी बड़ी रैली में भी कभी मंच पर नहीं बैठते थे। चंडीगढ़ के भाजपा नेता गजेंद्र शर्मा बताते हैं कि बड़ी रैलियों के दौरान वह इस बात की पड़ताल किया करते थे कि इंचार्ज ने कितनी भीड़ जुटाई है। आमतौर वह पहले ही नोट कर लिया करते थे कि बताओ भाई साहब कितने लोगों को लेकर आओगे। कोई कहता 200 आदमी, 400 आदमी। इसके बाद रैली के समय मोदी क्या करते थे कि वह सभा स्थल में घूमते थे और यह चेक करते थे कि कौन कितने बंदे लाया। फिर अगली मीटिंग में पूछते थे कि बोलो भाई, आप तो बोल रहे थे कि 200 बंदे लाओगे और आदमी पांच आए थे। दूसरे से पूछते कि आपने 100 का वादा किया और 2 आदमी लेकर आए थे। इस तरह से उनका अप्रोच थोड़ा अलग था।
शर्मा उस समय का एक दिलचस्प वाकया सुनाते हैं। 22 सेक्टर में रैली थी। मोदी भीड़ में घूम रहे थे। उन्होंने कुछ इस तरह से शॉल ओढ़ी थी कि चेहरा भी ढंका हुआ था। मैंने उन्हें गौर से देखा तो पहचान लिया। मैं उनके पास गया तो वह बोले, ‘चुप रहो। किसी को पता नहीं चलना चाहिए कि मैं क्या कर रहा हूं। तुम भी घूमो और देखो कि कितने आदमी आए हैं। इस तरह से वह रैलियों में सर्वे किया करते थे।’
1971 की लड़ाई छिड़ चुकी थी। मोदी उस समय 21-22 साल के थे। कैनबरा, ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले उनके करीबी प्रकाश मेहता बताते हैं कि अहमदाबाद रेलवे स्टेशन से आर्मी जा रही थी। हमने मीटिंग की कि सबको चाय पिलानी है, तो हमने तय किया कि स्टेशन पर हम बड़े बर्तन में चाय बनाकर गरम-गरम पिलाएंगे। लेकिन मोदी बोले कि ऐसे नहीं करना है। लोगों से बोलिए कि हर एक घर से थर्मस में 5-5, 10-10 कप चाय लेकर आएं। इस तरह से पूरा समाज स्टेशन पर आएगा चाय देने के लिए और हमारे सैनिकों का उत्साह बढ़ेगा। पूरे समाज को जोड़ने का यह काम उन्होंने उस समय पर किया था।
महाराष्ट्र के सुनील लोढ़ा एक किस्सा सुनाते हैं। वह गुजरात में एजुकेशन काउंसलिंग का काम करते थे। वह बताते हैं, ‘उस समय खमार नाम के एक डीएफओ थे। उनका लड़का मुझसे काउंसलिंग लेता था, तो काफी बार घर पर जाना होता था। एक बार ऐसे ही बातचीत होने लगी तो मैंने पूछा कि नरेंद्र मोदी के सीएम बनने के बाद कैसा चल रहा है काम।’ उन्होंने बताया कि नरेंद्र भाई के साथ मीटिंग के लिए हम अलग-अलग विषयों पर कम से कम 10 सवालों पर होमवर्क करके जाते थे कि ये भी पूछ सकते हैं ये भी पूछ सकते हैं।
उन्होंने कहा कि उन 10 सवालों की छोड़िए, मोदी ने एक ऐसा सवाल पूछ लिया जिसका जवाब हमारे पूरे डिपार्टमेंट के पास नहीं था। एक घटना ऐसी घटी थी जिसके बारे में पूरे डिपार्टमेंट को भनक तक न थी। मोदी ने तुरंत कहीं फोन लगाया और उससे बात करके घटना के बारे में अपडेट अधिकारियों को दिया। मतलब डिपार्टमेंट के लोगों को पता ही नहीं रहता था कि ऐसा भी कुछ हुआ है और सीएम को सेकेंडों में खबर पहुंच जाती थी। सुनील कहते हैं कि वह यशस्वी सीएम और पीएम हैं उसकी वजह यह है कि उनकी खुद लोकल लेवल तक डायरेक्ट पहुंच और घनिष्ठता रहती है।