अदालत के द्वारा महिला सुरक्षा संबंधी कई अधिकार पेश किए गए हैं! सभ्यता का विकास क्रम अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है। नई खोजों, नई तकनीकों, नई परिस्थितियों…यानी बदलते हुए दौर के साथ नियम-कायदे भी अपडेट होते रहते हैं। संहिताएं भी नए दौर की जरूरत के हिसाब में बदली जाती हैं तो कानून भी। मानव इतिहास ने ‘समूह में रहने वाले जानवर’ की अराजकता के दौर से नियम-कायदे, कानूनों के सभ्यता वाले दौर से आधुनिक सभ्यता के दौर तक की यात्रा की है। अधिकार, उनकी मान्यता और उनका संरक्षण सभ्यता के बुनियाद हैं। लिंग के आधार पर अधिकारों में भेदभाव समानता के सिद्धांत के खिलाफ हैं। स्पष्ट नियम-कानूनों के बावजूद महिलाओं के साथ भेदभाव समाज की कड़वी हकीकत है। इसकी एक बड़ी वजह अधिकारों को लेकर जागरुकता का अभाव है। अगर आप अधिकारों को लेकर सजग और जागरुक हैं तो भेदभाव को खत्म कर सकते हैं।
हिंदू लॉ के हिसाब से स्त्रीधन पर बहू का स्वामित्व होता है। यहां यह जानना जरूरी है कि स्त्रीधन के दायरे में क्या-क्या आता है। दरअसल, विवाह से जुड़े रिवाजों, समारोहों के दौरान महिला को जो कुछ भी मिलता है, चाहे वो चल-अचल संपत्ति हो या कोई और गिफ्ट, उस पर महिला का ही अधिकार होता है। यानी सगाई, गोदभराई, बारात, मुंह दिखाई या बच्चों के जन्म पर मिले नेग (गिफ्ट) स्त्रीधन के तहत आएंगे। स्त्रीधन पर महिला का ही स्वामित्व होता है भले ही वह धन पति या सास-ससुर की कस्टडी में हो। अगर किसी सास के पास अपने बहू का मिला स्त्रीधन है और बिना किसी वसीयत के उसकी मृत्यु हो गई तो उस धन पर बहू का ही कानूनी अधिकार है न कि बेटे या परिवार के किसी अन्य सदस्य का उस पर कोई हक बनता है।
स्त्रीधन पर महिला के स्वामित्व का अधिकार ऐसा है कि उसे कोई भी नहीं छीन सकता। यहां तक कि अगर वह पति से अलग भी हो जाए तो स्त्रीधन पर उसी का अधिकार होगा। अगर किसी विवाहित महिला को उसके स्त्रीधन से वंचित किया जाता है तो ये घरेलू हिंसा के बराबर होगा जिसके लिए पति और ससुराल वालों को आपराधिक मामले का सामना करना पड़ेगा।
आत्मसम्मान के साथ जीने का अधिकार
एक विवाहित महिला को गरिमा के साथ जीने का अधिकार है। वह अपने पति जैसे ही लाइफ स्टाइल की हकदार है। गरिमा के साथ जीने के अधिकार का मतलब है कि वह मानसिक या शारीरिक यातनाओं से मुक्त हो। अगर ऐसा नहीं हो रहा तो वो घरेलू हिंसा के दायरे में आएगा।
महिला जिस घर को अपने पति के साथ साझा करती है, वह ससुराल का घर कहा जाता है। ये घर चाहे रेंट पर लिया गया हो, आधिकारिक तौर पर उपलब्ध कराया गया हो या पति के स्वामित्व वाला हो या फिर रिश्तेदारों के स्वामित्व वाला, महिला के लिए वह ससुराल वाला घर यानी मैट्रिमोनियल होम है।
हिंदू अडॉप्शंस ऐंड मैंटिनेंस ऐक्ट, 1956 (हिंदू दत्तक और भरण-पोषण कानून) के तहत हिंदू पत्नी को अपने मैट्रिमोनियल घर में रहने का अधिकार है भले उसके पास उसका स्वामित्व न हो। भले ही वह एक पैतृक घर हो, जॉइंट फैमिली वाला हो, स्वअर्जित हो या फिर किराए का ही घर क्यों न हो। हालांकि, अगर ससुराल वालों की स्व-अर्जित संपत्ति है तो उनकी सहमति के बिना विवाहित महिला उसमें नहीं रह सकती क्योंकि इस संपत्ति को शेयर्ड प्रॉपर्टी यानी साझा संपत्ति के तौर पर नहीं लिया जा सकता है।
साझे के घर में बहू को रहने का अधिकार है या नहीं, इसे लेकर दिसंबर 2006 में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने फैसला दिया था। तरुणा बत्रा केस में जस्टिस एस. बी. सिन्हा और मार्कंडेय काटजू की बेंच ने कहा था कि एक पत्नी के पास केवल अपने पति की संपत्ति पर अधिकार होता है, वह साझे के घर में रहने के अधिकार का दावा नहीं कर सकती। हालांकि, अक्टूबर 2020 में जस्टिस अशोक भूषण की अगुआई वाली तीन जजों की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने 2006 के फैसले को पलट दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा की शिकार महिला को ससुराल के साझे घर में रहने का कानूनी अधिकार है।
मार्च 2022 में दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि बुजुर्ग सास-ससुर के साथ दुर्व्यवहार करने वाली महिला को उनके घर में रहने का अधिकार नहीं है। हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्थिति में सास-ससुर बहू को घर खाली करने के लिए कह सकते हैं क्योंकि उन्हें सुकून से जीने का अधिकार है। दरअसल, घरेलू हिंसा के मामले में ट्रायल कोर्ट ने आदेश दिया था कि महिला अपने मैट्रिमोनिय हाउस में नहीं रह सकती। महिला ने उसे हाई कोर्ट में चुनौती दी। दिल्ली हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि इस मामले में महिला के सास-ससुर बुजुर्ग हैं और उन्हें सुकून के साथ रहने का अधिकार है। उनके बेटे और बहू के बीच वैवाहिक विवाद की वजह से उनका सुकून नहीं छीना जाना चाहिए। हालांकि, कोर्ट ने महिला को राहत देते हुए ससुर से ये हलफनामा भी भरवाया कि जबतक उसके बेटे के साथ महिला की शादी मान्य है तबतक उसके रहने के लिए उन्हें कोई वैकल्पिक व्यवस्था करनी होगी।