प्रयागराज में कई मंदिर स्थापित है! 18 अगस्त की आधी रात जब पूरा देश कृष्ण जन्माष्टमी मना रहा था, संगमनगरी प्रयागराज में गंगा किनारे हलचल बढ़ गई थी। जी हां, यहां अकबर के किले से सटकर जमीन से कई फुट नीचे हनुमान जी विश्राम कर रहे हैं। इस मंदिर को दुनिया बंधवा वाले लेटे हुए श्री बड़े हनुमान के रूप में जानती है। उस रात 12 बजने में करीब 15 मिनट बाकी थे और अचानक आधी रात को जयकारा लगने लगा। मंदिर के महंत से लेकर पुजारी, भक्तजन सभी लाइन में बैठकर आराधना करने लगे। वे दरअसल, गंगा मइया का स्वागत कर रहे थे। गंगा मइया उस रात हनुमान जी को नहलाने के लिए पहुंची थीं। कुछ ही पलों में सीढ़ियों से कल-कल करते हुए गंगा जल ने हनुमान जी को डुबो दिया। कई दिनों से हनुमान जी जल शयन कर रहे हैं। प्रयागराज के लोगों के लिए यह कोई नई बात नहीं है। मंदिर तक नाव चलने लगी, पानी लबालब भरा है लेकिन बंधवा वाले हनुमान के भक्तों का उत्साह कम नहीं पड़ा। 800 साल से भी पुराने इस मंदिर का इतिहास भी बेहद दिलचस्प है।
कानपुर के एक सेठ ने मनौती मानी थी कि उन्हें संतान होगी तो वह हनुमान जी की विशाल मूर्ति स्थापित कराएंगे। उस समय मिर्जापुर से नाव चला करती थी। वह मिर्जापुर से नाव में मूर्ति रखकर लेकर चले और प्रयागराज में संगम के पास नाव डूब गई। बताया जाता है कि रात में उस सेठ के सपने में हनुमान जी आए और कहा कि हमको यहीं रहने दो, हम यहीं पर विश्राम करेंगे। सुबह हुई तो सेठ हनुमान जी के निर्देश के मुताबिक मूर्ति वहीं छोड़कर घर लौट गया। उसकी मनोकामना पूर्ण हुई और वह खुशमय जीवन बिताने लगा।
उस समय बाघम्बरी गद्दी में बालगिरी महंत रहते थे। माघ मेले के समय में आज जहां मंदिर है, उस जगह पर उन्हें स्थान मिला था। उन्हें ही मूर्ति नदी में दिखाई दी। मूर्ति को बाहर निकाल कर हनुमान जी की पूजा शुरू हो गई। अकबर के शासनकाल में यहां मेला लगने लगा। भक्तों का सैलाब देख अकबर ने हनुमान जी की मूर्ति को बिल्कुल सटे हुए अपने किले में ले जाना चाहा। अकबर के कहने पर हनुमान जी की मूर्ति को खोदकर किले में ले जाने की कोशिश की गई लेकिन मूर्ति टस से मस नहीं हुई। बल्कि अकबर के खोदवाने के कारण मूर्ति और नीचे धंसती चली गई जिससे मुश्किल बढ़ती गई। बताते हैं कि अकबर के सपने में भी हनुमान जी आए और उसे एहसास हुआ जैसे हनुमान जी कह रहे हों कि हमें यही रहने दो वरना किला ढह जाएगा। अकबर ने तौबा कर ली।
पीढ़ी दर पीढ़ी हनुमान पूजन की परंपरा चलती रही। विचारानंद गिरि के बाद शिवानंद, राजेंद्र गिरि महंत बने। बलदेव गिरि, भगवान गिरि, नरेंद्र गिरि महंत बने। नरेंद्र गिरि की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत के बाद उनके शिष्य बलवीर गिरि इस समय महंत की गद्दी पर विराजमान हैं।
वह तीन जगहों पर विशेष मुद्राओं में विराजमान हैं। गंगा सागर में समुद्र तट पर बेड़ी हनुमान के नाम से उनका मंदिर है। कुछ लोग इसे दरिया महावीर मंदिर के नाम से भी जानते हैं। इसकी भी कथा है, संक्षेप में जान लीजिए। एक बार हनुमान जी को समुद्र के क्रोध से पुरी की रखवाली करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी लेकिन वह भगवान जगन्नाथ को बिना बताए अयोध्या रवाना हो गए। बजरंगी के जाते ही समंदर का पानी शहर में प्रवेश कर गया और मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया।मान्यता है कि भविष्य में ऐसी गलती न हो और सुरक्षा सुनिश्चित रहे, ऐसे में भगवान जगन्नाथ ने हनुमान को जंजीर से बांध दिया। उन्हें दिन रात मुस्तैद रहने का आदेश भी दिया गया। तब से यहां हनुमान जी की मूर्ति जंजीर से बंधी मिलती है। हनुमान जी के भक्त सुरेंद्र तिवारी बताते हैं कि दूसरी विशेष मूर्ति संगम के किनारे है। यहां प्रयागराज में लेटी हुई मुद्रा यानी विश्राम के रूप में हनुमान जी मौजूद हैं। जबकि अयोध्या में बैठकर लड्डू खाती हुई मुद्रा में हनुमान विराजमान हैं।
हर साल गंगा मैया हनुमान जी को आकर स्नान कराती हैं। वह कहते हैं कि अगर किसी साल गंगा मैया हनुमान जी को स्नान नहीं कराती हैं तो प्रयागराज ही नहीं, पूरे देश के लिए इसे अशुभ संकेत माना जाता है। यही वजह है कि हनुमान जी के गंगा जल में शयन करने के दौरान भी पूजा पाठ जारी रहता है और इसे शुभ माना जाता है। इसे उत्सव के रूप में मनाया जाता है। आपने वीडियो भी देखा होगा कि जब 18 अगस्त को हनुमान जी के मंदिर में गंगा जल सीढ़ियों से प्रवेश करना तो मंदिर के पुजारी और अन्य लोग जयकारा लगाकर कीर्तन करने लगे। पूरा माहौल उमंग और उल्लास से भर गया।