आज हम आपको महान हिंदू सम्राट हर्षवर्धन की कहानी सुनाने जा रहे है! हर 12 साल पर लगने वाला कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा मेला है। माना जाता है कि कुंभ मेला का इतिहास करीब 2,000 साल पुराना है। चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरणों में कुंभ मेला का जिक्र मिलता है। ह्वेनसांग 629 में भारत की यात्रा पर आया और 645 तक रहा। उस समय उत्तर भारत के अधिकांश भूभाग पर सम्राट हर्षवर्धन का राज था। हर्षवर्धन के शासन में शांति और समृद्धि थी। दूर-दूर से विद्वान, कलाकार और धर्मगुरु आते थे। ह्वेनसांग के यात्रा विवरणों में हषवर्धन के न्याय और दान की तारीफ मिलती है। सम्राट हर्षवर्धन हर पांच साल पर लगभग सारी संपत्ति दान कर देते थे। हर्षवर्धन के समय पुष्यभूति राजवंश का साम्राज्य नेपाल से नर्मदा नदी, असम से गुजरात तक फैला था। सम्राट हर्षवर्धन ने कन्नौज में नई राजधानी बसाई। भारत के महान हिंदू राजाओं की सीरीज में आज बात सम्राट हर्षवर्धन की। संस्कृत के प्रसिद्ध कवि बाणभट्ट ने हर्षवर्धन की जीवनी लिखी। उसी से हर्षवर्धन के बचपन के बारे में जानकारी मिलती है। छठी सदी के मध्य में गुप्त राजवंश के पतन के बाद उत्तर भारत कई छोटे-छोटे राज्यों में बंट गया था। हर्षवर्धन के पिता प्रभाकरवर्धन ने वर्धन वंश की नींव रखी। उनकी राजधानी थानेसर (अब हरियाणा का कुरुक्षेत्र) हुआ करती थी। 605 ईस्वी में प्रभाकरवर्धन के निधन के बाद बड़े बेटे राज्यवर्धन गद्दी पर बैठे। हर्षवर्धन, राज्यवर्धन के छोटे भाई थे। कुछ साल बाद, दोनों की बहन राज्यश्री के पति को मालवा के राजा देवगुप्त ने युद्ध में हराया और फिर मार दिया। राज्यश्री को बंदी बना लिया गया।
राज्यवर्धन को यह खबर मिली तो उन्होंने देवगुप्त के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। युद्ध में पराजित होने के बाद देवगुप्त ने गौदा के राजा शशांक संग मिलकर षड़यंत्र रचा। राज्यवर्धन का मित्र बनकर मगध आए शशांक ने उनकी हत्या कर दी। इस बीच, राज्यश्री जेल से फरार होकर जंगल में भाग गईं। अपने भाई की हत्या के बारे में सुनकर हर्षवर्धन ने फौरन रणभेरी बजा दी। हालांकि, उनका प्रयास असफल रहा और वापस लौटना पड़ा। 16 साल की उम्र में हर्षवर्धन राजा बने। उन्हें अपने बहनोई और भाई की हत्या का बदला लेना और बहन को खोजना था। कहते हैं कि राज्यश्री आत्मदाह करने जा रही थीं जब हर्षवर्धन ने उन्हें बचाया।
राजा बनने के बाद हषवर्धन ने बिखरे हुए उत्तर भारत को एकजुट करना शुरू किया। अप्रैल 606 की एक सभा में पंजाब से लेकर मध्य भारत तक के राजाओं और उनके प्रतिनिधियों ने हर्षवर्धन को महाराजा स्वीकार किया। हषवर्धन ने ऐसा साम्राज्य खड़ा किया कि समूचा उत्तर भारत उनके नियंत्रण में था। नेपाल से लेकर नर्मदी नदी तक, असम से गुजरात तक हर्षवर्धन का साम्राज्य फैला था। कामरूप के राजा संग हर्षवर्धन के मैत्रीपूर्ण संबंध थे। हर्षवर्धन ने चीन के राजा के दरबार में अपना राजदूत भिजवाया। भारत और चीन के बीच यह पहला कूटनीतिक संपर्क था। हषवर्धन के राज में सामाजिक, आर्थिक और साहित्यिक प्रगति देखने को मिली। सम्राट हषवर्धन ने कन्नौज में राजधानी बसाई जो कुछ साल में व्यापार का प्रमुख केंद्र बन गई।
हर्षवर्धन की दानवीरता का लेखा-जोखा बाणभट्ट से लेकर ह्नेनसांग के विवरणों में मिलता है। उनके राज में गरीबों के लिए आश्रय गृह बनवाए गए। उनमें खाने-पीने से लेकर दवा तक की सुविधा होती थी। वह अक्सर अपने राज्य के दौरे पर निकलते थे ताकि प्रजा का हाल स्वयं जान सकें। सरकारी खजाने की ज्यादातर कमाई प्रजा में दान कर दी जाती थी। हर पांच साल पर सम्राट हर्षवर्धन अपनी संपत्ति दान कर दिया करते थे।
सम्राट हर्षवर्धन ने केवल साम्राज्य का विस्तार नहीं किया, कला और साहित्य के क्षेत्र में भी योगदान दिया। माना जाता है कि उन्होंने संस्कृत में तीन नाटक- रत्नावली, नागनंद और प्रियदर्शिका लिखे।असम से गुजरात तक हर्षवर्धन का साम्राज्य फैला था। कामरूप के राजा संग हर्षवर्धन के मैत्रीपूर्ण संबंध थे। हर्षवर्धन ने चीन के राजा के दरबार में अपना राजदूत भिजवाया। भारत और चीन के बीच यह पहला कूटनीतिक संपर्क था। हषवर्धन के राज में सामाजिक, आर्थिक और साहित्यिक प्रगति देखने को मिली। सम्राट हषवर्धन ने कन्नौज में राजधानी बसाई जो कुछ साल में व्यापार का प्रमुख केंद्र बन गई। उनके दरबार में कई कवि और नाटककार थे। प्रतिष्ठित नालंदा विश्वविद्यालय को भी हर्षवर्धन ने खूब दान दिया। नालंदा की किलेबंदी भी हर्षवर्धन ने कराई।हर्षवर्धन के बाद उनके राज का कोई वैध उत्तराधिकारी नहीं बचा। पत्नी दुर्गावती से जो दो बेटे हुए, उनकी मृत्यु पहले ही हो चुकी थी। 647 में जब हर्षवर्धन का देहांत हुआ तो तख्तापलट कर कन्नौज और आसपास के इलाके पर अरुणाश्व ने अधिकार कर लिया।