जानिए ज्ञानवापी मस्जिद का पूरा विवाद!

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आज हम आपको ज्ञानवापी मस्जिद का पूरा विवाद बताने वाले हैं! वाराणसी का ज्ञानवापी मस्जिद का मामला अब धीरे-धीरे गरमाने लगा है। लोअर कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इस विवादित मसले पर कई याचिकाएं पड़ी हुई हैं। सुनवाई चल रही है। करीब 103 साल से जारी कानूनी लड़ाई का कोई अभी तक हल नहीं निकल पाया है। पिछले दिनों ज्ञानवापी परिसर स्थित वजूखाने से कथित शिवलिंग की बरामदगी के बाद से कानूनी लड़ाई तेज हुई है। हिंदू पक्ष का दावा है कि यह शिवलिंग है। वहीं, मुस्लिम पक्ष इसे फव्वारा बताता रहा है। कार्बन डेटिंग की मांग हो रही है। वहीं, शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में वजूखाने में मिले शिवलिंग को संरक्षित किए जाने पर सुनवाई हुई। मुस्लिम पक्ष की ओर से कथित शिवलिंग को संरक्षित किए जाने की मांग पर आपत्ति नहीं जताई गई। वहीं, हिंदू पक्ष ने इसे संरक्षित किए जाने पर विशेष जोर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अब अगले आदेश तक कथित शिवलिंग को संरक्षित करने का आदेश जारी किया है।

सुप्रीम कोर्ट की ओर से अब इस शिवलिंग को संरक्षित किए जाने के मामले में कोई टाइम तय नहीं की गई है। इससे हिंदू पक्ष की ओर से खुशी जाहिर की जा रही है। हालांकि, वजूखाने में मिली संरचना को लेकर अभी भी बहस चल रही है। दरअसल, ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में 16 मई को कोर्ट कमीशन के सर्वे के दौरान एक संरचना मिली थी। हिंदू पक्ष ने इसे शिवलिंग और मुस्लिम पक्ष ने फव्वारा बताया। सुप्रीम कोर्ट ने इस संरचना को संरक्षित करने का आदेश जारी किया था। यह आदेश 12 नवंबर तक के लिए था। हिंदू पक्ष ने 12 नवंबर से पहले इसके संरक्षण की समय सीमा बढ़ाने के लिए याचिका दाखिल की थी। हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन की याचिका पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने बेंच बनाकर इस मामले की सुनवाई करने का आदेश दिया था। इसी मामले में शुक्रवार को बड़ा फैसला आया है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट में ज्ञानवापी परिसर का सर्वेक्षण आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया से कराने के फैसले पर सुनवाई होगी। इंतजामिया मसाजिद कमेटी और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने निचली अदालत के एएसआई से सर्वे कराने के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। हाईकोर्ट में 31 अक्टूबर को हुई सुनवाई में एएसआई ने हलफनामा दायर करके कहा था कि कोर्ट अगर आदेश देती है तो संस्थान की ओर से ज्ञानवापी परिसर का सर्वे किया जा सकता है।वजूखाने में मिले कथित शिवलिंग को हिंदू पक्ष आदि विश्वेश्वर महादेव बता रहा है। हिंदू पक्ष का कहना है कि अगर भगवान की मूर्ति या संरचना कहीं मिलती है तो उसकी पूजा अर्चना शुरू करानी होती है। यह हमारा अधिकार है। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती और रामसजीवन ने वाराणसी सिविल कोर्ट में सर्वे में मिले कथित शिवलिंग की नियमित पूजा-अर्चना कराने की मांग की है। कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि कथित शिवलिंग की पूजा, आरती और राग-भोग की व्यवस्था जिला प्रशासन को करानी चाहिए थी। प्रशासन ने ऐसा नहीं किया है और न किसी सनातन धर्मी को इसके लिए नियुक्त किया है।

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि कानूनन देवता की स्थिति एक जीवित बच्चे के समान होती है, जिसे अन्न-जल न देना संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत दैहिक स्वतंत्रता के मूल अधिकार का उल्लंघन है। इस मामले में वाराणसी कोर्ट ने 5 दिसंबर को अगली सुनवाई करने की बात कही है।वाराणसी के जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में ज्ञानवापी परिसर में एडवोकेट कमिश्नर की कमीशन की कार्रवाई आगे बढ़ाने की याचिका पर सुनवाई होनी है। यह याचिका हिंदू पक्ष ने दाखिल की है। इस पर मुस्लिम पक्ष की ओर से आपत्ति की थी। इसके खिलाफ हिंदू पक्ष को भी अपनी आपत्ति दाखिल करने के लिए 11 नवंबर तक का समय दिया गया। पिछले साल वाराणसी सिविल कोर्ट में राखी सिंह, सीता साहू, रेखा पाठक, मंजू व्यास और लक्ष्मी देवी की ओर से इस संबंध में याचिका दायर की गई थी। माता श्रृंगार गौरी के पूजन को लेकर यह याचिका दायर की गई थी।

ज्ञानवापी मस्जिद वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी हुई है। दावा किया जाता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया गया था। ज्ञानवापी परिसर का कुल रकबा एक बीघा, नौ बिस्वा और छह धूर है। हिंदू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के नीचे 100 फीट ऊंचा विशेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है। दावा यह भी है कि काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण 2050 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था। राजा टोडरमल ने 1585 में काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। 18 अप्रैल 1669 में औरंगजेब ने मंदिर को ध्वस्त करवाकर इसकी जगह मस्जिद बनवाई थी।

मस्जिद के निर्माण में मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल किया गया। इसके बाद मराठा साम्राज्य की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने वर्ष 1780 में काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कार्य फिर से शुरू कराया था। अब इन मामलों को लेकर हिन्दू और मुस्लिम पक्ष आमने-सामने हैं। मामला अभी वाराणसी लोअर कोर्ट, जिला जज कोर्ट, इलाहाबाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक में चल रहा है।

वर्ष 1919: स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से वाराणसी कोर्ट में पहली याचिका दायर की गई। इस याचिका में ज्ञानवापी परिसर में पूजा करने की अनुमति मांगी गई।

वर्ष 1936: ज्ञानवापी मस्जिद के स्वामित्व पर 1936 में बहस तेज हुई। उस समय तीन मुस्लिम याचिकाकर्ताओं ने मांग की कि पूरे परिसर को मस्जिद का हिस्सा घोषित किया जाए। इस सुनवाई के दौरान ज्ञानवापी में नमाज अदा करने का अधिकार स्पष्ट रूप से यह कहते हुए दिया गया था कि इस तरह की प्रार्थना परिसर में कहीं और की जा सकती है।

वर्ष 1942: निचली अदालत के फैसले को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। हाई कोर्ट ने 1942 में निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और याचिका खारिज कर दी।

वर्ष 1991: ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा करीब 50 सालों में पहली बार अक्टूबर 1991 में सुर्खियों में आया, जब देवता ‘स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर’ के नाम पर भक्तों ने दावा किया कि ज्ञानवापी मस्जिद एक मंदिर के स्थान पर बनाई गई थी, जिसे वर्ष 1669 में मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर ध्वस्त कर दिया गया। इसलिए उन्होंने मांग की कि उन्हें अपने मंदिर का जीर्णोद्धार और पुनर्निर्माण करने की अनुमति दी जाए। हिंदू पक्ष ने तर्क दिया कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 मस्जिद पर लागू नहीं होता, क्योंकि यह कथित रूप से पुराने विश्वेश्वर मंदिर के अवशेषों पर बनाया गया था।

वर्ष 1998: ज्ञानवापी मस्जिद के प्रबंधन ने एक जवाबी आवेदन दायर किया, जिसमें इस आधार पर मामले को खारिज करने की मांग की गई कि यह पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 के प्रावधानों के दायरे में आता है।

वर्ष 2019: दिसंबर 2019 में वाराणसी जिला अदालत में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी ने याचिका दायर की। याचिकाकर्ता ने मांग की कि पूरे ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का पुरातत्व सर्वेक्षण कराया जाए। उन्होंने कहा कि 1998 में साइट के धार्मिक चरित्र को निर्धारित करने के लिए पूरे ज्ञानवापी परिसर से सबूत इकट्ठा करने का आदेश दिया गया था, लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को स्थगित कर दिया। संयोग से यह याचिका बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के ठीक एक महीने बाद दायर की गई थी।

वर्ष 2020: अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी मस्जिद प्रबंधन ने पूरे ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वेक्षण की मांग वाली याचिका का विरोध किया। उसी वर्ष याचिकाकर्ता ने फिर से एक याचिका के साथ निचली अदालत का दरवाजा खटखटाया। सुनवाई फिर से शुरू करने का अनुरोध किया, क्योंकि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्टे को आगे नहीं बढ़ाया था।

वर्ष 2021: अप्रैल 2021 में वाराणसी कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को सर्वेक्षण करने और अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करने का आदेश दिया। उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने रस्तोगी की याचिका और मस्जिद के सर्वेक्षण के वाराणसी कोर्ट के फैसले का विरोध किया। बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई की, जिसने सभी संबंधित पक्षों को सुनने के बाद एएसआई को सर्वेक्षण करने के निर्देश पर अंतरिम रोक लगा दी।

12 सितंबर 2022: जिला न्यायाधीश एके विश्वेश की एकल जज पीठ ने अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति की ओर से दीवानी मुकदमे के खिलाफ चुनौती को खारिज कर दिया। इसमें ज्ञानवापी मस्जिद और उसके आसपास की भूमि के टाइटल को चुनौती दी गई थी। इसका मतलब है कि दीवानी मुकदमों की सुनवाई होगी। विवरण और साक्ष्य की जांच कराई जाएगी। इसके आधार पर निर्णय होगा।

22 सितंबर 2022: ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले में मिले कथित शिवलिंग के पास वजू करने और शिवलिंग को लेकर भड़काऊ बयान देने, हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की मांग संबंधी अर्जी पर सुनवाई टल गई।

11 नवंबर 2022: सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी वजूखाने में मिली शिवलिंग जैसी संरचना को संरक्षित करने का आदेश दिया। यह आदेश अगले आदेश तक लागू रहेगा। मतलब, अब शिवलिंग की सुरक्षा को लेकर हिंदू पक्ष को बार-बार कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की जरूरत नहीं होगी। इस कथित शिवलिंग की सुरक्षा में पुलिस की तैनाती पहले की तरह रहेगी।