आज हम आपको जजिया कर की पूरी कहानी सुनाने जा रहे हैं! वर्तमान में लोकसभा चुनाव चल रहे हैं, इसी बीच जजिया कर की बात भी उठने लगी है! सवाल यह कि आखिर यह जजिया कर क्या होता है और यह किसने लगाया था और क्यों लगाया था? आज हम आपको इसी बारे में जानकारी देने वाले हैं! आपको बता दें कि देश में लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी पारा चढ़ा हुआ है। बीजेपी और कांग्रेस के बीच जुबानी जंग काफी तेज है। बीजेपी अपनी चुनावी रैलियों में कांग्रेस को सनातन विरोधी साबित करने की जोर आजमाइश में जुटी है। इसी क्रम में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कांग्रेस पर बड़ा हमला बोला है।
मध्य प्रदेश के गुना में BJP उम्मीदवार ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थन में एक रैली में योगी ने कहा, ‘कांग्रेस के घोषणापत्र में जजिया कर और गोहत्या को बढ़ावा देने की बात कही गई है।’ योगी ने इसकी तुलना मुगल बादशाह औरंगजेब के क्रूर शासन से की। आदित्यनाथ ने दावा किया, ‘आपने औरंगजेब नामक क्रूर मुगल शासक का नाम सुना है।एक अहम सवाल यह है कि आखिर औरंगजेब को गद्दी संभालने के 22 साल बाद जजिया लगाने की जरूरत क्या थी? मध्यकालीन इतिहासकार सतीश चंद्र लिखते हैं कि उस वक्त के यूरोपीय यात्रियों ने इसकी दो वजहें बताईं। सभ्य मुस्लिम परिवार अपने बच्चों का नाम उसके नाम पर नहीं रखते क्योंकि उसने जजिया लगाया था… आइए आपको जजिया कर का पूरा इतिहास बताते हैं… बता दे कि जजिया एक प्रकार का धार्मिक टैक्स था। इसे मुस्लिम राज्य में रहने वाली गैर मुस्लिम यानी विशेषकर हिन्दू जनता से वसूल किया जाता था। दरअसल मुगलों के शासनकाल में सिर्फ मुस्लिम आबादी को ही रहने की इजाजत थी, अगर इस धर्म के अलावा कोई और रहता था, तो उसे धार्मिक कर देना होता था। इसे देने के बाद गैर मुस्लिम लोग अपने धर्म का पालन कर सकते थे। भारत में जजिया कर लाने वाला मुहम्मद बिन कासिम था। मुहम्मद बिन कासिम ने सबसे पहले भारत के सिंध प्रांत के देवल में जजिया कर लागू किया था।
इसके बाद दिल्ली में इस कर को लागू करने वाला सुल्तान फिरोज तुगलक था। इस कर को गैर-मुसलमानों पर लागू किया जाता था लेकिन, पहले जहां ब्राह्मण इस कर के दायरे से बाहर होते थे। फिरोज तुगलक ने फरमान लागू किया कि इस कर को ब्राह्मणों से भी वसूला जाएगा। जिसके बाद इसका देशभर में काफी विरोध हुआ। बता दें कि जजिया टैक्स का कई मुस्लिम शासकों ने विरोध किया था, जिसमें से एक बादशाह अकबर भी थे। मुगलों की तीसरी पीढ़ी में जब अकबर का शासनकाल शुरू हुआ, तो उन्होंने जजिया टैक्स पर रोक लगा दी। लेकिन जब औरंगजेब ने राजगद्दी संभाली, तो अकबर के इस निर्णय की खूब आलोचना की और फिर से जजिया टैक्स शुरू कर दिया। अकबर ने 1564 ईo में जजिया कर समाप्त किया था। 1575 ईo में फिर से लगा दिया। इसके बाद 1579-80 ईo में फिर समाप्त कर दिया। औरंगजेब ने 1679 ईo में जजिया कर लगाया। 1712 ईo में जहांदार शाह ने अपने वजीर जुल्फिकार खां और असद खां के कहने पर विधिवत रूप से इसे समाप्त कर दिया। आखिर में 1720 ईo में मुहम्मद शाह रंगीला ने जयसिंह के अनुरोध पर जजिया कर हमेशा के लिए हटा दिया।
बता दें कि औरंगजेब की बदनामी की सबसे बड़ी वजह जजिया कर है, जो गैर-मुस्लिम लोगों से वसूला जाता था। इसे ही उसकी महजबी कट्टरता और खराब प्रशासन की सबसे बड़ी मिसाल बताया जाता है। दरअसल, जजिया लगभग एक सदी से लागू नहीं था। बता दें किमुस्लिम राज्य में रहने वाली गैर मुस्लिम यानी विशेषकर हिन्दू जनता से वसूल किया जाता था। दरअसल मुगलों के शासनकाल में सिर्फ मुस्लिम आबादी को ही रहने की इजाजत थी, अगर इस धर्म के अलावा कोई और रहता था, तो उसे धार्मिक कर देना होता था। इसे देने के बाद गैर मुस्लिम लोग अपने धर्म का पालन कर सकते थे। ऐसे में औरंगज़ेब ने साल 1679 में जजिया फिर से लागू किया, तो गैर-मुस्लिमों के लिए यह बड़ी सिरदर्दी बन गया, क्योंकि वे लोग पहले ही कई तरह के टैक्स के बोझ तले दबे थे। लेकिन, एक अहम सवाल यह है कि आखिर औरंगजेब को गद्दी संभालने के 22 साल बाद जजिया लगाने की जरूरत क्या थी? मध्यकालीन इतिहासकार सतीश चंद्र लिखते हैं कि उस वक्त के यूरोपीय यात्रियों ने इसकी दो वजहें बताईं। पहली वजह थी कि लगातार युद्ध के चलते मुगल शाही खजाना घट गया था। वहीं दूसरा कारण था, गैर-मुस्लिमों का धर्म परिवर्तन कराके मुसलमान बनाना!