Wednesday, January 29, 2025
HomeIndian Newsजानिए आखिर क्या है इस्लामी क्रांति?

जानिए आखिर क्या है इस्लामी क्रांति?

आज हम आपको इस्लामी क्रांति के बारे में जानकारी देने वाले हैं! 16 सितंबर, 2022 को दुनिया में यह खबर आग की तरह फैल गई कि ईरान की 22 साल की लड़की महसा अमीनी की पुलिस कस्टडी में संदिग्ध हालात में मौत हो गई। पुलिस कस्टडी में ईरान की मोराल पुलिस ने मार-मारकर महसा की पसलियां तक तोड़ दीं, उसका दिमाग फट गया और बाहर निकली उसकी मरी हुई देह। महसा का कसूर बस इतना था कि उसने ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह खामनेई के बनाए मानकों के मुताबिक हिजाब नहीं पहना था।

हाल ही में एक बार फिर ईरान की राजधानी तेहरान की एक यूनिवर्सिटी कैंपस में एक लड़की ने अंडरवियर में घूमकर मौजूदा कट्टरपंथी ड्रेस कोड के खिलाफ विरोध जताया। महसा की मौत के बाद हुए प्रदर्शनों से लेकर इस लड़की के साथ खड़ी भीड़ के बीच एक नारा गूंज रहा था, जिसे ‘जेन, जिंदगी, आजादी’ कहा जा रहा था, जिसका मतलब था महिलाएं, जिंदगी और आजादी। जानते हैं पूरी कहानी। क्या उस लड़की का कपड़े उतारना अयातुल्लाह अली खामेनेई के मुंह पर तमाचा नहीं है। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में महसा की मौत के बाद पूरी दुनिया में प्रदर्शन हुए। ये प्रदर्शन 2009, 2017 और 2019 के बाद सबसे बड़ा था। 15 सितंबर, 2023 तक इन प्रदर्शनों में 551 लोगों को जान गंवानी पड़ी थी। वहीं, करीब 20 हजार लोगों को जेलों में ठूंस दिया गया।

सोशल मीडिया पर 2 नवंबर को तेहरान की यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड रिसर्च के परिसर में अंडरवियर में एक लड़की के दिखने और फिर उसकी गिरफ़्तारी के वीडियो को लेकर हंगामा मचा है। वहीं, सोशल मीडिया पर लोगों ने महसा की तरह इस लड़की को भी पुलिस हिरासत में मारने की आशंका जताई है।

इस बीच अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ट्वीट किया है कि हिंसक तरीके से गिरफ्तार छात्रा को ईरानी अधिकारियों को तुरंत और बिना शर्त रिहा करना चाहिए। हिरासत के दौरान उनके खिलाफ मारपीट और यौन हिंसा के आरोपों की स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से जांच हो। ईरान में रजा शाह पहलवी के शासनकाल में ईरान का समाज खुला हुआ था। वह यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर सकती थीं। महिलाओं को सड़कों पर पश्चिमी शैली के कपड़े पहनने की आजादी थी। वहीं, कहीं भी स्कर्ट, जींस या बूट में घूम-फिर सकती थीं।

साल 1963 में महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला था। फारोखरू पारसा साल 1968 में शिक्षा मंत्री बनीं, जो इस पद पर नियुक्त होने वाली पहली महिला थीं। महनाज अफखामी को साल 1976 में महिला मामलों की मंत्री नियुक्त किया गया था। क्रांति से पहले और बाद में कई महिलाओं को मंत्री या राजदूत नियुक्त किया गया था। 1979 में सत्ता संभालने के तुरंत बाद ईरान के नए सर्वोच्च नेता अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी ने आदेश दिया कि सभी महिलाओं को हिजाब पहनना होगा। इसके विरोध में उसी साल 8 मार्च को अंतरराराष्ट्रीय महिला दिवस पर सभी क्षेत्रों की हजारों महिलाएं कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के लिए निकलीं।

हिजाब के खिलाफ यह विरोध तब और बढ़ गया जब अयातुल्लाह खुमैनी ने यह कहा कि महिलाएं मामूली इस्लामी कपड़ों में ही अच्छी लगती हैं। 1981 में हिजाब अनिवार्य कर दिया गया और सौंदर्य प्रसाधनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। यहां तक कि मोराल पुलिस सरेआम महिलाओं के होंठों से रेजर ब्लेड से लिपस्टिक हटाने में जुट गई। बाद में महिलाओं के जज और वकील बनने पर रोक लगा दी गई। शासन ने गर्भनिरोधक पर पाबंदी लगा दी और लड़कियों की शादी की उम्र 15 से घटाकर 9 कर दी।

खुमैनी के आने के बाद महिलाओं की भूमिकाएं सीमित हो गईं। महिलाओं को बड़े परिवार पालने और घरेलू कामों को ही करने के लिए माना जाना लगा। महिलाओं को दाई का काम और शिक्षण तक ही सीमित रखा गया। 1980 के दशक में महिलाओं के अधिकारों के उदारीकरण की लड़ाई शुरू हुई। महिलाओं को तलाक का अधिकार मिला। उन्हें बुर्का और हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया गया। खुमैनी के बाद आए अयातुल्लाह अली खामनेई भी उसी कट्टपपंथी परंपरा को आगे बढ़ाया।

ईरान में किसी भी प्रदर्शन में अक्सर ये नारा गूंजता है। फारसी में दिया गया यह नारा है-जेन, जिंदगी, आजादी (फारसी), जिसका हिंदी में मतलब है-महिलाओं के अधिकार जीवन और स्वतंत्रता के केंद्र में हैं। यह नारा 2006 में तुर्की में कुर्द स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं के मार्च के दौरान लोकप्रिय हुआ था और यह कुर्द नेता अब्दुल्ला ओकलान के विचार से उपजा है, जिसमें उन्होंने कहा था कि कोई देश तब तक आजाद नहीं हो सकता जब तक महिलाएं आजाद न हों।

कुर्द नारे की उत्पत्ति कुर्दिश से हुई है। महसा अमीनी के कुर्दिश होने से इसका नाता जोड़ा जाता है। कुर्द ईरान की आबादी का लगभग 15% हैं, जो मुख्य रूप से सुन्नी मुसलमान हैं। जिन क्षेत्रों में वे रहते हैं वे देश के सबसे गरीब क्षेत्रों में से हैं। उनकी भाषाओं का उपयोग प्रतिबंधित है वे ईरान के सभी राजनीतिक कैदियों में से लगभग आधे हैं।

 

Disclaimer:

Mojo Patrakar may publish content sourced from external third-party providers. While we make every reasonable effort to verify the accuracy, reliability, and completeness of this information, Mojo Patrakar does not guarantee or endorse the views, opinions, conclusions, or authenticity of content provided by these third-party entities. Such content is presented solely for informational purposes, and it is not intended to substitute professional advice or to serve as a comprehensive basis for decision-making.

Mojo Patrakar expressly disclaims any liability for errors, omissions, or inaccuracies that may arise from third-party content, as well as any reliance readers may place upon it. Users are strongly encouraged to conduct independent verification and consult with qualified professionals as necessary before making any decisions based on information obtained through Mojo Patrakar.

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments