पुराने समय से अब तक चले आ रहे जजिया टैक्स के बारे में क्या आप जानते हैं? केंद्र की तरफ से स्वर्ण मंदिर के पास स्थित सरायों पर 12% जीएसटी लगाए गए निर्णयों पर पंजाब सरकार ने विरोध किया है। आम आदमी पार्टी (AAP) के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने गुरुवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात की। राघव चड्ढा नेअमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर के पास स्थित सरायों पर लगाए गए 12 प्रतिशत वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को वापस लेने की मांग की। आप सांसद ने कहा कि यह मुगल काल के ‘जजिया’ कर की याद दिलाता है। वहीं, पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में नए-नवेले बने नमो घाट पर घूमने के लिए टिकट लगाया गया। यहां नमो घाट पर 4 घंटे बिताने के लिए 10 रुपये का टिकट लगाया गया था। इस फैसले को लेकर लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। ट्विटर पर लोग मुगल काल में लगने वाले जजिया टैक्स की दुहाई देने लगे। आइए जानते हैं आखिर मुगल काल में लगाया जाने वाला ये जजिया टैक्स है क्या है जिसकी दुहाई बनारस का आम आदमी से लेकर राज्यसभा सांसद तक दे रहे हैं।
जजिया टैक्स क्या है?
इस्लामिक शासन में जजिया धर्म के आधार पर लिया जाने वाला एक कर था। जजिया को जिजया भी लिखा जाता है। यह एक व्यक्तिगत और सामुदायिक टैक्स था जिसे शुरुआती इस्लामिक शासकों ने अपनी गैर मुस्लिम प्रजा से वसूलना शुरू किया था। इस टैक्स को वसूलने के लिए दो भागों में बांटा गया। पहले मूर्ति को पूजने वाले और दूसरे जिम्मी। जिम्मी में संरक्षित लोग या ग्रंथ वाले लोग शामिल थे। इसका अर्थ था कि वे लोग जिनके धार्मिक विश्वास के आधार पर अपने पवित्र ग्रंथ होते थे। इसमें ईसाई, यहूदी और पारसी लोग शामिल थे।
बताया जाता है कि इस्लामिक शासन वाले राज्य में सिर्फ मुस्लिमों को ही रहने की अनुमति थी। यदि कोई गैर इस्लामिक व्यक्ति उस राज्य में रहता तो उसे जजिया कर देना होता था। ये कर देने के बाद ही गैर मुस्लिम व्यक्ति अपने धर्म का पालन कर सकते थे। इस कर की एवज में गैर-मुसलमानों की संपत्ति और एवं सम्मान की रक्षा करने की बात कही जाती थी। महिलाएं, बच्चे, साधु, भिक्षुक और ब्राह्मणों को इस कर से मुक्त रखा गया था।
इतिहास कारों के अनुसार जजिया कर से मिलने वाली राशि का प्रयोग दान, तनख्वाह और पेंशन बांटने के लिए किया जाता था। बताया जाता है कि कुछ शासक इस कर की राशि का इस्तेमाल अपने सैन्य खर्चों को पूरा करने के लिए करते थे। कई जगह इस बात का भी जिक्र मिलता है कि जजिया कर से मिलने वाली राशि को मुस्लिम शासक के निजी खजाने में जमा किया जाता था।
शुरुआत कब हुई
भारत में जजिया कर की शुरुआत लगाने का पहला साक्ष्य मुहम्मद बिन कासिम के आक्रमण के बाद 712 इस्वी. से देखने को मिलता है। मुहम्मद बिन कासिम ने सबसे पहले भारत के सिंध प्रांत स्थित देवल में जजिया कर लगाया था। इसके बाद दिल्ली सल्तनत के प्रथम सुलतान फिरोज तुगलक ने भी जजिया कर वसूलना शुरू कर दिया था। फिरोज तुगलक ने जजिया को खराज यानि भूराजस्व से अलग कर के रूप में इसे वसूला। पहले ब्राह्मणों को जजिया कर से बाहर रखा गया था। बाद में फिरोज तुगलक ने ब्राह्मणों पर भी यह कर लगा दिया। फिरोज तुगलक के इस फैसले का ब्राह्मणों ने विरोध किया लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। अंत में दिल्ली की जनता ने ब्राह्मणों के बदले खुद जजिया कर देना स्वीकार किया। कई जगह इस बात का भी जिक्र है कि गुलाम वंश के कुतुब दिन ऐबक ने जजिया कर की शुरुआत की थी।
दिल्ली सल्तनत के बाहर भी अन्य राज्यों में जजिया कर की शुरुआत हुई। कश्मीर में सबसे पहले सिकंदरशाह ने जजिया कर लगाया था। इसके बाद उसके बेटे जैनुल आबदीन (1420-70ई.) गद्दी पर बैठा। उसने अपने पिता की तरफ से लगाए गए जजिया कर को खत्म कर दिया। जजिया को खत्म करने वाला यह पहला शासक था। अपनी उदारता के कारण ही उसे ‘कश्मीर का अकबर’ कहां जाने लगा। गुजरात में सबसे पहले जजिया कर अहमदशाह (1411-1442ई.) के समय लगाया गया था। शेरशाह के शासनकाल के दौरान जजिया कर को नगर-कर का नाम दिया गया।
जजिया को खत्म करने वाला सबसे पहला मुगल शासक अकबर था। अकबर ने 1564ई. में अकबर ने जजिया कर को खत्म किया। 1575 में इसे फिर से लगा दिया गया। औरंगजेब ने 1679 में जजिया को को फिर से शुरू किया। औरंगजेब ने जजिया कर के लिए दिरहम नाम के विशेष सिक्के का भी प्रचलन शुरू किया। 34 साल बाद फर्रूखशियर ने अपने शासनकाल के पहले साल में जजिया को खत्म कर दिया। हालांकि, 1717 में जजिया फिर लगा। दो साल बाद इसे फिर से खत्म करने का फैसला लिया गया। अंत में मुहम्मद बिन शाह के शासनकाल में 1720 में जजिया कर समाप्त कर दिया गया।