यूक्रेन ने युद्ध के पहले हफ़्ते में रूस का जिस तरह से डटकर मुक़ाबला किया वो रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की उम्मीदों के उलट है.रूस के सैन्य अधिकारियों ने जो अनुमान लगाया था, स्थितियां उससे अलग हैं.हालांकि, ये युद्ध की अभी शुरुआत है, जो भयंकर जंग में तब्दील हो सकती है.पुतिन को उम्मीद होगी की रूस हमले के कुछ दिनों में ही कीएव को कब्ज़े में ले लेगा. उन्हें भरोसा होगा कि पश्चिमी देश डरकर विभाजित हो जाएंगे और यूक्रेन पर उनका दावा स्वीकार कर लेंगे, जिसे वो रूस का ही हिस्सा मानते हैं.लेकिन, ऐसा नहीं हुआ. यूक्रेन रूस के लिए टेढ़ी खीर बना गया. वहीं, पश्चिमी देशों और ख़ासतौर पर जर्मनी की प्रतिक्रिया भी उनके अनुमान से ज़्यादा सख़्त रही है.इस युद्ध से रूस की अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह प्रभावित रही है. पुतिन के बड़े सहयोगी चीन में भी इसे लेकर चिंताएं हैं कि पश्चिमी देशों में बढ़ा ग़ुस्सा चीन के ख़िलाफ़ भी जा सकता है, जिससे चीनी अर्थव्यवस्था को गंभीर नुक़सान हो सकते हैं. उसने ख़ुद को इस हमले से अलग कर लिया है.वहीं, नेटो और मज़बूत हो सकता है. फ़िनलैंड और स्वीडन दोनों अपनी सुरक्षा के लिए नेटो में शामिल हो सकते हैं. पुतिन ने ये युद्ध इसलिए छेड़ा ताकि यूक्रेन नेटो का हिस्सा ना बने. लेकिन, इसके उलट ये हो सकता है कि नेटो को और सदस्य देश मिल जाएं.ये सभी बातें व्लादिमीर पुतिन के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं. ये सब पुतिन के ग़लत अनुमानों का नतीजा है. वो बहुत कम सलाहकारों पर भरोसा करते हैं जो सिर्फ़ उनकी हाँ में हाँ मिलाते हों. अब वो नए विकल्पों की तरफ़ भी देखेंगे.जब उन्हें रोका जाता है तो वो पीछे हटने से इनकार कर देते हैं और ज़्यादा मज़बूती से प्रहार करते हैं. उनके पास ऐसा करने के लिए हथियार भी हैं.
आखिरकार रूसी सेना क्या चाहती है ?
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मिलिट्री एक्सपर्ट डॉ जैक वैटलिंग का कहना है कि राजधानी कीएव पर कब्जे के लिए रूसी सेना के हमले की टाइमिंग और तरीका काफी अहम भूमिका निभाएगा.रॉयल यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूट में लैंड वारफेयर और मिलिट्री साइंस के रिसर्च फेलो वैटलिंग ने कहा, ”अगर रूसी सैनिक कीएव पर बड़ा हमला करते हैं और प्रतिरोध को दबा नहीं पाते हैं तो यह बेहद खूनखराबा वाला होगा. रूसी सैनिकों के हौसले पस्त हो सकते हैं.”
वैटलिंग का कहना है कि रूसी सैनिक हमला करने से पहले अपने ख़िलाफ़ प्रतिरोध को ख़त्म करना चाहेंगे. उन्होंने कहा कि रूसी सैनिकों में उत्साह की कमी देखी जा रही है. यूक्रेन में घुस रहे रूसी सैनिकों की टुकड़ियां भ्रमित दिख रही हैं और उन्हें यूक्रेनी सेनाओं के हमले से झटका लगा है.वैटलिंग ने कहा, ”हमने कई ऐसी ख़बरें सुनी हैं कि रूसी सैनिक अपने ही हथियार और साजोसामान नष्ट कर रहे हैं. वे लड़ाई में आगे नहीं जाना चाहते.”हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि जब रूसी सैनिक बड़ी तादाद में इकट्ठा होकर लड़ेंगे तो उनके हौसले में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है. रूसी सैनिकों का मिशन अब साफ़ होता जा रहा है. यूक्रेनी सेना के हथियार और गोलाबारूद अब ख़त्म हो रहे हैं.रूस और यूक्रेन के बीच आज जंग का सातवां दिन है. रूस ने दावा किया है कि उसकी सेना ने दक्षिणी यूक्रेन के बंदरगाह शहर खेरसन पर कब्जा कर लिया है.
राजनयिक ”ऑफ़ रैंप” की बात कर रहे हैं. यानी एक ऐसा तरीका ढूंढने की कोशिश हो रही है, जिसमें सभी पक्ष जंग के रास्ते से हट जाएं. लेकिन यह आसान नहीं है.
इस हालात में पश्चिमी देश रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन को यह समझा कर हमला रोक सकते हैं कि यूक्रेन संकट जंग की ओर बढ़ता है तो उसे फ़ायदे की तुलना में नुकसान ज़्यादा होगा.उन्हें इस बात पर विचार करने के लिए बाध्य किया जा सकता है कि युद्ध हुआ तो इसकी आर्थिक कीमत बहुत अधिक होगी. भारी मानव त्रासदी झेलनी होगी. राजनयिक पलटवार भी बहुत जबरदस्त होगा. रूस के लिए यह सब झेलना आसान नहीं होगा. ऐसा हुआ तो जंग के मैदान में रूस की जीत भी बेमानी हो जाएगी.
पुतिन को इस बात का भी डर हो सकता है कि पश्चिमी देश यूक्रेन में सैन्य विद्रोह को समर्थन दे सकते हैं. ऐसे में उनके लिए वर्षों तक इस जंग की कीमत झेलना मुश्किल हो जाएगा.इससे अपने ही देश में पुतिन का समर्थन घट जाएगा. उनके नेतृत्व को चुनौती मिल सकती है.