यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या जानवर की काटने के बाद रेबीज का टीका लगवाना चाहिए या नहीं! इंसान का सबसे पहला कोई वफादार पालतू पशु साथी रहा है तो वो है कुत्ता। ऐतिहासिक साक्ष्य तो यही कहते हैं, जब 30 हजार साल से ज्यादा वक्त से कुत्ते हम इंसानों के साथ रह रहे हैं। यह 10 हजार साल पहले घोड़े को पालतू बनाए जाने से भी ज्यादा पुराना है। भारत के पौराणिक कथाओं में तो महाभारत काल में कुत्ता ही पांडव युधिष्ठिर के साथ सशरीर स्वर्ग जा पाया था। बाकी पांडवों को रास्ते में ही मरना पड़ा था। अब यही कुत्ता हम इंसानों को काट रहा है। यह इतना काट रहा है कि पूरी दुनिया में हर साल कुत्तों के काटने के 10 करोड़ मामले सामने आ रहे हैं। अकेले अमेरिका में कुत्तों के काटने के करीब 1 करोड़ केस सामने आते हैं। भारत में भी करीब 28 लाख ऐसे मामले सामने आ चुके हैं। ये हालात दिनोंदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। एक उद्योगपति को भी कुत्ते के काटने से जान गंवानी पड़ी है। आइए-समझते हैं कि कुत्तों के काटने के मामले लगातार क्यों बढ़ रहे हैं। आखिर इसकी वजह क्या है? कितना घातक है कुत्तों का काटना? विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) एसोएिशन फॉर द प्रीवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ रेबीज इन इंडिया (APCRI) के आंकड़ों के अनुसार, भारत कुत्तों के काटने से होने वाली मौतों के मामले में रेबीज कैपिटल है। कुत्तों के काटने से होने वाली पूरी दुनिया में होने वाली मौतों का 36 फीसदी मौत भारत में ही हो जाती हैं।
भारत में 2021 से कुत्ते काटने के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। बीते तीन साल में यह करीब तीन गुना बढ़ चुका है। 2022 से 2023 के बीच कुत्ते के काटने के केस 21.8 लाख से बढ़कर 27.5 लाख हो चुके हैं। 2018 में कुत्तों ने सबसे ज्यादा 75 लाख लोगों को काटा था। वहीं, अमेरिका में हर साल करीब 45 लाख लोगों को कुत्ते काट लेते हैं। बीते साल वाघ बकरी के मालिक पराग देसाई की कुत्ते के काटने से मौत हो गई थी। बताया जा रहा था कि सुबह-सुबह वो मॉर्निंग वॉक पर निकले थे, जब कुछ अवारा कुत्तों ने उन पर हमला कर दिया। हमले के बाद उनका अस्पताल में इलाज चल रहा था, मगर उन्हें बचाया नहीं जा सका। उस वक्त कई रिपोर्ट्स में यह कहा गया कि पराग देसाई को कुत्ते के काटने के बाद ब्रेन हेमरेज हो गया, जिससे मस्तिष्क में ब्लीडिंग हो गई। PubMed की एक रिपोर्ट बताती है कि कुत्ता काटने के बाद अगर रेबीज वायरस फैल जाता है तो ये ब्रेन डैमेज का कारण बन सकता है।
यूरोप में एक देश है चेकोस्लोवाकिया, जिसे अब चेक रिपब्लिक कहते हैं। यहां के प्रेडमोस्टी साइट पर मुंह में हड्डी लिए एक कुत्ता दफन है। माना जाता है कि यह कुत्ता 32 हजार साल पुराना है। वहीं, जर्मनी में ओबेर कैसेल में एक महिला और पुरुष के बीच में कुत्ते का दफनाया गया है। रेडियो कार्बन डेटिंग में इस कुत्ते को 14,300 साला पुराना माना गया है। 6 हजार साल पहले मिस्र की अनुबिस सभ्यता, मध्य अमेरिका की माया सभ्यता और यूनान की सरबेरस सभ्यता में इंसान के साथ कुत्तों के रहने के साक्ष्य मिले हैं। चेक गणराज्य में कुत्ते के इंसान के साथ दफनाए जाने के साक्ष्य भी मिल चुके हैं।
रेबीज का इतिहास कम से कम 4,000 साल पुराना है, जब यह हकीकत लोगों को पता चली कि कुत्ते के काटने से मौत हो सकती है। प्राचीन इराक में तो कुत्तों के काटने पर जुर्माना भरने तक के नियम बनाए गए थे। मौजूदा वक्त में 99 फीसदी रेबीज के मामले अफ्रीका और एशिया में हैं। यह लैटिन अमेरिकी देशों से गायब ही हो चुके हैं, जहां साल भर में करीब 20 ही रेबीज के मामले सामने आते हैं।
एक अध्ययन के अनुसार, कुत्ते सबसे ज्यादा बच्चों को काटते हैं, जो उनके लिए आसान शिकार हैं। अमेरिका में करीब 50 फीसदी बच्चों को कुत्ते कभी न कभी जरूर काट लेते हैं। 12 साल की उम्र तक के बच्चे इसके ज्यादा शिकार होते हैं। वहीं, दूसरे नंबर पर बुजुर्गों को कुत्ते काट खाते हैं। ऐसे में बच्चों या बुजुर्गों को कुत्तों से बचाना बेहद जरूरी है, क्योंकि इन दोनों ही उम्र वालों में इम्यून सिस्टम युवाओं जितना ताकतवर नहीं होता है।
नेशनल रेबीज कंट्रोल प्रोग्राम गाइडलाइंस के अनुसार कुत्ते का काटना 100 फीसदी घातक है। अगर पीड़ित को सही समय पर ट्रीटमेंट नहीं मिलता है तो उसकी मौत होनी तय है। ऐसी लापरवाही कतई न करें। कुत्ते के काटने पर खून संक्रमित हो जाता है और खून जहरीला होने लगता है। बहुत से लोग इस जहर को कम करने के लिए घाव पर नमक, हल्दी पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, नींबू, खड़िया या मिट्टी लगाने लगते हैं। कुछ लोग पीपल के पत्ते भी घाव पर लगाते हैं। मगर, ऐसी कोई भी चीज मरीज की जान नहीं बचा सकती है। साथ ही झाड़-फूंक भी काम नहीं आती है। इस तरह की किसी भी सलाह को बिल्कुल न मानें और हर हाल में रेबीज का टीका समय से लगवाएं।