आज हम आपको ऐसी अभिनेत्री के बारे में बताएंगे जो बिना अभिनेता के भी फेमस हो चुकी है! हीरो नहीं होगा, तो फिल्म नहीं बनेगी’ ये सोच सालों से बॉलीवुड में रही है। फिल्म इंडस्ट्री को हमेशा से नायक प्रधान इंडस्ट्री कहा गया है। उसके बगैर किसी फिल्म की कल्पना मुहाल है। ये माना जाता रहा है कि हीरो ही वो एलिमेंट है, जो फिल्म चला सकता है। उसी के दम पर पब्लिक थिएटर में आती है, हीरोइन तो बस ग्लैमर ऐड करने के लिए होती है। मगर हालिया रिलीज ‘क्रू’ में तब्बू, करीना कपूर और कृति सेनन जैसी ए लिस्टेड हीरोइन ने साबित कर दिया कि वे किसी हीरो को मोहताज नहीं हैं। उससे पहले यामी गौतम ‘आर्टिकल 370’ और अदा शर्मा ‘बस्तर:द नक्सल स्टोरी’ में बिना किसी हीरो के नजर आईं। हिंदी फिल्मों में नायिकाओं का में काम हीरो के साथ प्यार-रोमांस करने का माना जाता रहा है, मगर बीते समय में नायिकाओं ने दिखा दिया है कि उनका काम पर्दे पर सिर्फ हीरो से इश्क लड़ाना नहीं है बल्कि वो सब कुछ करना है, जो एक हीरो करता आया है। अलबत्ता आज के दौर में वे फिल्म में हीरो की जरूरत को खारिज करती नजर आ रही हैं। इस साल की पहली तिमाही में प्रदर्शित हुई ‘आर्टिकल 370’ के बाद आई ‘बस्तर :नक्सल स्टोरी’ में हीरोइन के साथ कोई हीरो नहीं था और अब हाल ही में रिलीज हुई ‘क्रू’ में दर्शकों को बेबो जैसी ग्लैमरस हीरोइन के साथ हीरो न होने की कमी बिलकुल नहीं खली।
इस साल की पहली तिमाही में प्रदर्शित हुई फिल्मों में से तीन फिल्में बिना हीरो की रही हैं। ‘आर्टिकल 370’ में आतंकवाद से जूझने वाली यामी गौतम के साथ फिल्म में कोई हीरो नहीं था। बावजूद इसके फिल्म में यामी की दमदार परफॉर्मेंस ने दर्शकों का दिल जीता और फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर वर्ल्ड वाइड सौ करोड़ का आंकड़ा पार किया। अदा शर्मा की ‘बस्तर:द नक्सल स्टोरी’ में भी कोई हीरो नहीं था। फिल्म पूरी तरह से आईपीएस अफसर बनीं अदा पर आधारित थी। फिल्म भले बॉक्स ऑफिस पर नहीं चली,मगर अदा के अभिनय की तारीफ जरूर हुई। हालांकि अदा शर्मा इस फिल्म से पहले पिछले साल आई ‘द केरला स्टोरी’ में अपने रोल के साथ-साथ बॉक्स ऑफिस पर भी अपना जलवा दिखा चुकी हैं। बीते साल ‘द केरला स्टोरी’ ने बॉक्स ऑफिस पर वर्ल्ड वाइड तीन सौ करोड़ का आंकड़ा पार किया था। उस फिल्म में भी अदा के साथ कोई हीरो नहीं था। हाल ही में रिलीज हुई ‘क्रू’ जैसी फीमेल सेंट्रिक फिल्म में तब्बू, करीना कपूर और कृति सेनन जैसी ए लिस्टेड ऐक्ट्रेस ने जता दिया कि वे बगैर किसी हीरो के अपनी शानदार परफॉर्मेंस से बॉक्स ऑफिस को चमका सकती हैं। फिल्म की फर्स्ट डे की कमाई तकरीबन बीस करोड़ रही और पहले वीकेंड में फिल्म ने वर्ल्ड वाइड साठ करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया है।
बॉलिवुड में आउट एंड आउट नायिका प्रधान फिल्मों की धारा को मोड़ने का श्रेय काफी हद तक विद्या बालन और रानी मुखर्जी को जाता है। 2011 में आई रानी मुखर्जी और विद्या बालन अभिनीत ‘नो वन किल्ड जेसिका’ ने न केवल क्रिटिक्स बल्कि दर्शकों के दिल में भी जगह बनाई थी। दिलचस्प बात ये है कि इस फिल्म में दोनों कद्दावर अभिनेत्रियों को किसी हीरो के सहारे की जरूरत नहीं पड़ी थी। इसके बाद आई कहानी वन में विद्या को उनके अभिनय के लिए न केवल भरपूर तारीफें मिली बल्कि फिल्म ने अच्छी-खासी कमाई भी की। कमाल की बात ये है कि फिल्म की हीरो खुद विद्या ही थीं। इसके बाद विद्या लगातार ‘बेगम जान’, ‘नीयत’ जैसी कई फिल्मों में बिना हीरो के दिखीं, तो वहीं रानी मुखर्जी ने भी इस ट्रेंड को आगे बढ़ाया। उनकी ‘मर्दानी वन’ और टू में हीरो की कोई जगह नहीं थी, तो ‘हिचकी’ भी पूरी तरह से उन्हीं पर आधारित थी। कुछ अरसा पहले सत्य घटना पर आधारित ‘मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे’ में अपने अभिनय का डंका बजा कर रानी ने साबित कर दिखाया कि अपनी फिल्म की हीरो वे खुद हैं। अपनी फिल्मों में हीरो के बिना आगे बढ़ने वाली नायिकाओं में तापसी पन्नू का भी शुमार है।
पिंक’, ‘थप्पड़’, ‘सांड की आंख’, ‘शाबाश मिट्ठू’ जैसी कई फिल्मों में उन्होंने हीरो की जरूरत को ही खत्म कर दिखाया। हालांकि ये हीरोइनें जब भी बिना कोई हीरो वाली या ऐसी नायिका प्रधान फिल्म करती हैं, जिसमें हीरो का रोल छोटा हो, तो इन्हें कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता रहा है। तापसी खुद कह चुकी हैं, ‘एक हीरो की जितनी सैलरी होती है, हमारी फीमेल सेंट्रिक फिल्म का टोटल बजट उतना होता है। इसके अलावा नायिका प्रधान फिल्मों में कोई बड़ा नाम करना नहीं चाहता। मेरी तमाम फिल्मों की कास्टिंग में इतनी बड़ी समस्या आई कि पूछो मत। जिन एक्टर्स की महज एक फिल्म आई है या जिन्होंने मल्टीस्टारकास्ट वाली फिल्म में काम किया है, उन एक्टर्स तक ने कह दिया कि हमें सलाह दी गई है कि ऐसी फिल्म का हिस्सा न बनें, जिसमें हीरोइन की भूमिका बड़ी हो। बड़े हीरोज की फिल्म में हम तो छोटा-मोटा रोल कर लेते हैं। मैंने मिशन मंगल और सूरमा में छोटे रोल किए थे। मगर मेरी फिल्म में कोई बड़ा नाम नहीं जुड़ा।’
रानी, विद्या और तापसी के अलावा कंगना रनौत की भी कई फिल्में बिना हीरो के रही हैं। श्रीदेवी की करियर की आखिरी फिल्म ‘मॉम’ में वे खुद नायक थीं, जबकि 2016 में प्रदर्शित हुई ‘नीरजा’ से अभिनेत्री के रूप में साख जमाने वाली सोनम कपूर के साथ हीरो नदारद था। मगर फिल्म चर्चित रही थी। यंग ऐक्ट्रेस में जाह्नवी ने कपूर ‘मिली’ में, तो नुशरत भरूचा ने ‘अकेली’ में बिना हीरो वाली कहानी को चुनने का साहस किया। इस बदलाव पर ‘कहानी’ जैसी सुपर हिट फीमेल सेंट्रिक फिल्म के लेखक सुरेश नायर भी कहना है, ‘नायिका प्रधान फिल्मों का दौर आता -जाता रहा है, मगर नायक प्रधान फिल्मों का दौर हमेशा रहा, मगर आज सिनेरियो बदल गया है। ओटीटी के आने के बाद लोग अच्छे कॉन्टेंट को तवज्जो दे रहे हैं। फिल्मों का नरेटिव भी बदला है। यही वजह है कि हीरोइन के सब्जेक्ट वाली फिल्मों की तादाद बढ़ी है, फिर दूसरी अहम बात ये भी है कि आज बड़े से बड़ा हीरो भी तो बॉक्स ऑफिस की गैरंटी नहीं रह गया।इसके बावजूद हीरोइन ओरिएंटेड फिल्मों की राह आसान नहीं है। मुझे याद है, कहानी में विद्या बालन के साथ मेल एक्टर को कास्ट करने में हमें काफी मुश्किलें आईं थीं। हमने कई अच्छे और बड़े एक्टर्स से संपर्क किया था, मगर कोई भी राजी नहीं हुआ। हर एक्टर का कहना था फीमेल सेंट्रिक फिल्म में उनके हिस्से में क्या आएगा? इसी के बाद हमने उस रोल के लिए परमब्रत चटर्जी को लिया था।’
मदर इंडिया’ जैसी स्ट्रॉन्ग हीरोइन ओरिएंटेड फिल्में पहले भी बनती रही हैं। मगर ये मानना पड़ेगा कि हीरो के डॉमिनेंस वाली इंडस्ट्री में हीरोइन का रोल बदल गया है। पहले मेकर्स को ये शिकायत होती थी कि हीरोइन ओरिएंटेड फिल्में पैसा नहीं कमा पातीं, मगर अब नजारा बदल गया है। ताजा फिल्मों की बात करें, तो ‘आर्टिकल 370’ ने अच्छी कमाई की और क्रू का वीकेंड कमाल का रहा। आज दर्शक अलग कहानी देखना चाह रहे हैं।