हमारे यहाँ वेदों में लिखा है कि
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।
अर्थात्- जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नही होता है वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं.
जहाँ ऐसे मंत्र लिखे गए उसी जगह हम यह भी देखते है कि एक बलात्कारियों को फूल और माला का साथ स्वागत भी किया जाता है. हम बात कर रहे हैं बिलकिस बानो की, आइए जानते हैं उनके आरोपियों को किस कानून के तहत रिहा किया गया है.
बिलकिस बानो कौन हैं
2002 में गुजरात में हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए. इसी दंगों में बिलकिस बानो के साथ दुष्कर्म हुआ. 3 मार्च को हथियार लिए कई लोगों ने बिलकिस के घर पर हमला कर दिया. दंगाई लोगों ने बिलकिस के घर के तीन महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया. हमले में परिवार के 17 में से सात सदस्यों की मौत हो गई. छह लापता हो गए. केवल तीन लोगों की जान बच सकी. इनमें बिलकिस, उनके परिवार का एक पुरुष और एक तीन साल का बच्चा शामिल था. इस घटना के वक्त बिलकिस पांच महीने की गर्भवती थीं. दंगाइयों की इस दर्दनाक हरकत के बाद बिलकिस करीब तीन घंटे तक बेहोश रही.
इस घटना के बाद बिलकिस बानो लिमखेड़ा पुलिस स्टेशन पहुंची और एफआईआर दर्ज कराई. कहा जाता है कि हेड कॉन्स्टेबल सोभाभाई ने बिलकिस के बताए बातों को तोड़-मरोड़ कर लिखा. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद बिलकिस का मामला सीबीआई को जांच के लिए स्थानांतरित कर दिया गया.
सीबीआई की एन्ट्री
जब मामले में सीबीआई की एन्ट्री हुई तो पता लगा कि मामले में पोस्ट मार्टम भी सही तरीके से नही हुआ है. हत्या के बाद शवों को गले और धड़ अलग-अलग जगह फेक दिया गया है ताकि अधिकारियों को खोजबीन करने में समस्या आए. यहाँ तक शिकायतकर्ता बिलकिस बानो को जान से मारने की धमकी मिलने लगी. केस को गुजरात से महाराष्ट्र ट्रांसफर कर दिया गया जहाँ कि एक विशेष अदालत ने दोषियों को आजीवन कैद की सजा सुनाई.
आरोपियों के नाम
जिन 11 आरोपियों को दोषी ठहराया गया था उनमें जसवंतभाई नाई, गोविंदभाई नाई, नरेश कुमार मोरधिया (मृतक), शैलेष भट्ट, राधेश्याम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप वोहानिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, नितेश भट्ट, रमेश चंदना और हेड कांस्टेबल सोमाभाई गोरी शामिल थे.
इन आरोपियों में से एक ने जिनका नाम राधेश्याम शाह था माफी याचिका दायर की जिसके बाद गुजरात सरकार विशेष कमेटी ने इसे मंजूर कर लिया और दोषियों की रिहाई हो गई.संविधान के अनुच्छेद 72 और 161 में राष्ट्रपति और राज्यपाल के पास कोर्ट से सजा पाए दोषियों की सजा को कम करने, माफ करने और निलंबित करने की शक्ति है. कैदी राज्य का विषय होते हैं इस वजह से राज्य सरकारों के पास भी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 432 के तहत सजा माफ करने का अधिकार है. बिलकिस बानो अगर चाहे तो गुजरात सरकार के खिलाफ हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकती हैं.
रिहाई से समाज पर असर
आरोपी जब रिहा होकर आए तो उन्हें फूल-माला और मिठाई के साथ स्वागत किया गया. ऐसा प्रतीत करया गया की इन्होंने कोई महान कार्य को अंजाम दिया है. कोर्ट और सरकार पर तो सवाल हमेशा पूछे जाते हैं लेकिन समाज के रूप में हमारी नैतिक जिम्मेदारी क्या है इस पर ज्यादा बात नही होती. अगर समाज के रूप में हमारा चरित्र साफ रहता तो सरकार और कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ जाकर इन दोषियों को समाज में रहने ही नही दिया जाता. जब बिलकिस बानो को यह पता चला कि दोषियों को रिहाई मिल गई है तो उन्होंने कहा कि,’मैंने देश की ऊंची अदालतों पर भरोसा किया, सिस्टम पर भरोसा किया. लेकिन इन दोषियों की रिहाई ने न्याय में मेरे भरोसे को झकझोर दिया है. यह हमें सोचना पड़ेगा कि उस परिवार पर क्या गुजर रही होगी जब एक ही दिन में उसके परिवार के आधे से अधिक लोगों को मार दिया गया और महिलाओं से दुष्कर्म किया गया. एक नागरिक के रूप में एक अपनी अदालतों से, अपने सरकारों से अपने समाज से पूछना चाहिए कि कैसा सिस्टम बनाया हैं हमने.