लोकसभा चुनाव के नतीजे के क्या है अनुमान?

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आज हम आपको लोकसभा चुनाव के नतीजे के अनुमान बताने जा रहे हैं! इस बार लोकसभा चुनाव के बाद लोगों में चर्चा हो रही है कि इस नतीजे से सत्ता पक्ष भी खुश है और विपक्ष भी खुश है। कुछ लोग कह रहे हैं कि NDA तो इसलिए खुश है क्योंकि उसे तीसरी बार सत्ता मिली है लेकिन विपक्ष क्यों खुश है? विपक्ष के खुश होने की सबसे बड़ी वजह यह है कि नरेन्द्र मोदी की लहर में विपक्ष धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा था और विपक्ष को तोड़ा जा रहा था। विपक्ष उस भूमिका में भी नहीं था कि अपनी लड़ाई भी लड़ सके। लेकिन आज विपक्ष उस स्थिति में है कि वह अपनी लड़ाई विपक्ष में रहते हुए भी लड़ सकता है। सत्तापक्ष की हार यह है कि जहां से सबसे अधिक सीटें पिछले चुनाव में आई थीं, वह राज्य था उत्तर प्रदेश लेकिन वहां कड़ी पटखनी मिली। BJP ने 400 सीटों का विशाल लक्ष्य तय किया लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव जितनी सीटें भी लाने में असफल रही। सत्तापक्ष की जीत इस मायने में है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हैट्रिक लगा रहे हैं। वह पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद ऐसे दूसरे नेता होंगे, जो लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं। 22 जनवरी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के दिन देश में अलग ही माहौल नज़र आ रहा था। सिर्फ यूपी में ही नहीं पूरे देश में जश्न का माहौल था। दिन बड़ा भी था क्योंकि राम मंदिर बनने का सपना पूरा हो रहा था। उस दिन जो उत्साह नज़र आ रहा था उसी से BJP की ओर से यूपी समेत पूरे देश में ज़बरदस्त लहर बनाने की कोशिश की गई। लेकिन जनता में यह मुद्दा धीरे-धीरे धूमिल पड़ गया और BJP इसे समझ नहीं पाई। BJP राम मंदिर को ही ट्रंप कार्ड मान रही थी जो चल नहीं सका। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, समाजवादी पार्टी को यूपी में 37 सीटें मिलना और अवध क्षेत्र में BJP की करारी हार होना। अमूमन लोगों में यह विमर्श हावी रहा कि राम मंदिर तो मिल गया लेकिन इसके अलावा और भी मुद्दे हैं।

चुनाव प्रचार के दौरान BJP के एक-दो नेताओं ने ऐसे बयान दिया कि संविधान में बदलाव किए जा सकते हैं। हालांकि बाद में उन्होंने या पार्टी ने उन बयानों से किनारा भी कर लिया। लेकिन I.N.D.I.A. गठबंधन के नेताओं ने इसे अच्छे से भुनाया। राहुल गांधी अपने चुनाव प्रचार के दौरान जनसभाओं में संविधान दिखाते हुए नज़र आए। वह दोहराते रहे कि हम संविधान को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में BJP पिछड़े वोट बैंक को साधने में सफल रही थी, लेकिन इस बार पिछड़ा वर्ग ने BJP का साथ नहीं दिया।

संघ और BJP का चोली दामन का साथ रहा है लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में दोनों दूर-दूर रहे। बल्कि यूं कहा जा सकता है कि BJP ने संघ का सहयोग मांगा ही नहीं। पूरे देश में आम लोगों के बीच सामाजिक व संपर्क कार्यों में लगे RSS के प्रचारक और स्वयंसेवक चुनाव प्रक्रिया के दौरान नज़र नहीं आए। इसके पहले 2004 के लोकसभा चुनाव में RSS के स्वयंसेवकों की ऐसी निष्क्रियता दिखी थी, जिसके वजह से ‘इंडिया शाइनिंग’ के नारे के बावजूद BJP को सत्ता से बाहर होना पड़ा था। BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा ने अपने बयान में यह संकेत दिया था कि BJP को किसी की ज़रूरत नहीं है।

पिछले एक दशक में BSP ने खुद को काफी कमज़ोर किया है। BSP पर आरोप लगते रहे कि वह BJP की बी टीम के रूप में काम कर रही है। इस बार BSP ने मुस्लिम कैंडिडेट को टिकट बंटवारे में प्राथमिकता दी ताकि I.N.D.I.A. गठबंधन के वोट बैंक में सेंध लग सके लेकिन दलित वर्ग और मुस्लिम वोटर्स ने BSP को वोट देना वोट की बर्बादी समझा। 2024 के लोकसभा चुनावों में BSP का वोट प्रतिशत गिरकर 2.07% रह गया, जो कि 2019 में 3.67% था। BSP का वोट प्रतिशत 1.6% कम हुआ और सीटें जीरों हो गईं।

I.N.D.I.A. गठबंधन जाति जनगणना को लेकर शुरू से मुखर रहा। बिहार में जातीय जनगणना की राजनीति तेजस्वी और नीतीश कुमार ने शुरू की। बिहार में जातीय जनगणना कराई गई। इसके बाद यह कार्ड अखिलेश और राहुल गांधी दोनों ने आक्रामक तरीके से खेला। इसके बहाने वे OBC तक पहुंचे। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में सफलता भी मिली। हालांकि चुनाव के बीच में नरेन्द्र मोदी ने विपक्ष के जातीय जनगणना के मुद्दे पर काउंटर करने की ज़रूर कोशिश की। उन्होंने कहा कि विपक्ष पिछड़ों के आरक्षण को मुस्लिमों में बांटना चाहती है लेकिन कहीं न कहीं लगातार इस मुद्दे पर टिके रहने का लाभ विपक्ष को मिला। बेरोज़गारी और महंगाई का मुद्दा जनता में था लेकिन यह हाशिए पर चला गया था। राम मंदिर के बहाने BJP इस बार का चुनाव हिंदुत्व के अजेंडे पर लड़ने में लगी रही। विपक्ष बेरोज़गारी और महंगाई के मुद्दे पर टिका रहा। लेकिन BJP इसकी कोई काट पेश नहीं कर पाई। हर बार ऐसा होता था कि चुनावी मैदान में BJP हिंदुत्व की पिच तैयारी करती थी और विपक्ष को न चाह कर भी इसी पिच पर खेलना पड़ता था। इस बार I.N.D.I.A. गठबंधन ने बेराज़गारी और महंगाई का चुनावी पिच तैयार किया।