पिछले कुछ दिनों में बिहार में जो बदलाव आया है उससे तो आप वाकिफ़ होंगे ही! बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एनबीटी को दिए इंटरव्यू में कहा- देश नीचे जा रहा है। उनसे तो आप वाकिफ़ होंगे ही! बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एनबीटी को दिए इंटरव्यू में कहा- देश नीचे जा रहा है। उनस पूछा गया था कि भाजपा से अलग क्यों हुए? खैर, भाजपा के साथ से केंद्र में मंत्री और बिहार में 15 साल सीएम रहे नीतीश कुमार को पाला बदलने के बाद ‘सच्चाई’ का अहसास होता रहा है। लेकिन यहां ये जानना जरूरी है कि 17 साल के राज में उन्होंने बिहार को कहां लाकर खड़ा कर दिया है। साल दर साल सरप्लस बजट। कोरोना काल को छोड़ दें तो लगभग 10 परसेंट विकास दर। गुजरात मॉडल से टक्कर। क्या ये बिहार की जमीनी हकीकत है? नहीं, ये है बजट का नीतीश कुमार मॉडल। जीरो बेस्ड बजटिंग का बाप। पिछले साल नवंबर में नीति आयोग की रिपोर्ट आने के बाद नीतीश कुमार हतप्रभ थे। मल्टी डाइमेन्शनल पॉवर्टी रेट सामने आए थे। पाया गया देश में बिहार सबसे गरीब है। यहां की 52 फीसदी आबादी गरीब है। ये आंकड़ा सिर्फ कमाई नहीं बल्कि सफाई, स्कूल में बिताए गए साल, घर, पीने का पानी, बैंक अकाउंट जैसे व्यापक मानकों पर तैयार किए गए थे। किशनगंज, अररिया, मधेपुरा, सुपौल समेत 11 जिलों में गरीबी 60 परसेंट से ज्यादा बताई गई।
नीतीश कुमार ने कुछ दिन चुप्पी साधी फिर कहा – हमारा क्षेत्रफल कम और आबादी ज्यादा है। उधर लालू प्रसाद यादव ने फिसड्डी वाली रिपोर्ट पर नीतीश कुमार को सलाह दी चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए। खैर, अब तो ये दोनों साथ हैं। इन्हीं की सरकार है। हां, नीति आयोग जैसी रिपोर्ट अब भाजपा वाले ज्यादा बारीकी से पढ़ रहे होंगे। नीतीश कुमार-तेजस्वी यादव तो बीस लाख सरकारी नौकरियों के विज्ञापन पर काम कर रहे हैं। पता नहीं सैलरी कहां से मिलेगी। नब्बे वाले लम्हे डराते हैं। 1994 में मेरे पिताजी की सैलरी 13 महीने लेट चल रही थी। वो मुजफ्फरपुर नगर निगम में काम करते थे। वैसी कल्पना सिहरन पैदा करती है।नीतीश कुमार का एक प्यारा ‘C’ है क्राइम। वो इससे समझौता नहीं करते। उनका दावा है। हम जंगलराज रिटर्न्स वाले ताजा सोशल मीडिया पोस्ट्स पर चर्चा ही नहीं करेंगे। क्राइम ग्राफ तो पहले से ही राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। इसलिए 9 अगस्त के बाद ज्यादा बढ़ गया होगा, ऐसा लगता नहीं। बिहार में हर दिन औसतन नौ मर्डर और रेप की चार घटनाएं होती हैं। पूरे देश में 80 मर्डर और रेप की 77 घटनाएं। आबादी के लिहाज से बिहार का हिस्सा आठ परसेंट है। यानी क्राइम रेट में बिहार अव्वल ही माना जाएगा। ये 2020 के लिए नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े हैं। हालांकि नीतीश कुमार से पूछें तो वो बताएंगे रिपोर्टिंग बढ़ गई है, क्राइम घटा है।
चमचमाती सड़कों और बिजली के बावजूद अगर कोई बिहार में निवेश से घबराता है तो गुंडा टैक्स या प्रोटेक्शन मनी एक बड़ा कारण रहा है। हालांकि इस पर भी नीतीश का लॉजिक कुछ और है। वो कहते हैं बिहार समंदर किनारे नहीं है, लैंड लॉक्ड है, इसलिए उद्योग धंधे नहीं आते। राजनीति में भूगोल का इस्तेमाल भी नीतीश कुमार करते हैं क्योंकि ये स्पेशल स्टेटस की डिमांड को जिंदा रखता है। भले ही वित्त आयोग की सिफारिशों के बाद इसका अस्तित्व खत्म हो चुका हो। श्रीकृष्ण सिंह के समय भी बिहार समंदर के पास नहीं था। फिर भी आजाद भारत की पहली रिफाइनरी बरौनी में बनी, आजाद भारत का पहला खाद कारखाना बना, एशिया का सबसे बड़ा इंजीनियरिंग कारखाना यानी हैवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन हटिया में बना जो अब झारखंड में है, देश का सबसे बड़ा स्टील प्लांट बोकारो में लगा, बरौनी डेयरी बनी और सात-आठ चीनी मिलें संयुक्त बिहार में थीं।
फिर नीतीश किस मुंह से विफलता छिपाते हैं। और बजट सरप्लस बनाते हैं। अब एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट वाले शैबल गुप्ता नहीं रहे। वो बताते थे बिहार में बजट कैसे बनता है। बल्कि बनाने में मदद भी करते थे। नीतीश कुमार ने 2005 में बिहार की बागडोर संभालने के बाद माली हालात को दुरूस्त करने के लिए जिन दो लोगों पर भरोसा किया उनमें से एक थे शैबल गुप्ता। दूसरे, एनके सिंह जो 2006-08 के बीच बिहार स्टेट प्लानिंग बोर्ड के उपाध्यक्ष रहे। 2018 में शैबल गुप्ता से मैंने पूछा था कि जिस राज्य की हालत इतनी खराब हो वो रेवन्यू सरप्लस बजट कैसे पेश कर सकता है। एक्सपेंडिचर यानी खर्च घटाकर। तपाक से उन्होंने जवाब दिया। फिर बताया कि खर्च से ज्यादा रेवन्यू रिसीट यानी राजस्व की आवक दिखा दीजिए तो सरप्लस बजट हो जाएगा।
नीतीश कुमार और उनके पूर्व साझीदार सुशील कुमार मोदी दावा करते रहे हैं कि बिहार का बजट 2005 से 2021 में आठगुना से ज्यादा बढ़ गया। 2005 में 24000 करोड़ रुपए था। अब 2022 में दो लाख 30 हजार करोड़ रुपए। लेकिन 15 साल बनाम 15 साल देखें तो पता चलता है ये उन्नति बराबर ही है। जब लालू प्रसाद यादव 1990 में आए तब बजट तीन हजार करोड़ रुपए का था जो राबड़ी की सत्ता से विदाई के समय 24 हजार करोड़ थी। यानी तब भी आठगुना की बढ़त लेकिन सरकारी खजाना खाली था और एक समय सरकारी कर्मचारियों को सैलरी देने के पैसे नहीं थे। अब सवाल उठता है कि अगर बजट आकार विकास का पैमान है तो पूरे देश का बजट 1990 की तुलना में 2020 में लगभग बीसगुना बढ़ा है। फिर बिहार में क्यों नहीं बढ़ा।
दरअसल जिस हाल में नीतीश ने बिहार संभाला उसमें ठीक से सांस लेना भी विकास का पैमाना माना जाता क्योंकि कब कहां लाश गिर जाए कहना मुश्किल था। अब तो पटना का धुंआ भी जानलेवा है। सही मायने में प्रदूषण इतना है कि सांस लेना विकास माना जाएगा। क्राइम का डर भी लौटा है। नीतीश ने पहले कार्यकाल में दिखाई देने वाला विकास तो जरूर किया। खास कर बिजली और सड़कों पर। बीजेपी से खटास के साथ 2010 की महाजीत के बाद नीतीश कुमार सतर्क हो गए। सारा श्रेय खुद को देने का मन बनाया और पहले ही आदेश से विधायकों का स्थानीय क्षेत्र विका फंड समाप्त कर दिया। तर्का था इससे लूट और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। मुख्यमंत्री के नाम पर ही योजनाओं की भरमार हो गई । मिसाल के लिए मुख्यमंत्री बालिका पोशाक योजना, मुख्यमंत्री कन्या सुरक्षा योजना, मुख्यमंत्री बालिका साइकल योजना, मुख्यमंत्री ग्रामीण सड़क योजना, मुख्यमंत्री रोजगार ऋण योजना, मुख्यमंत्री सेतु निर्माण योजना, मुख्यमंत्री लाडली-लक्ष्मी योजना, मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना … और…और। नौकरशाह इन कार्यक्रमों को चला रहे थे। विधायकों का उन पर कोई अधिकार रहा, न दखल।