Friday, November 22, 2024
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राजनीति के विषय पर क्या बोले पूर्व जस्टिस चितरंजन दास?

आज हम आपको बताएंगे कि पूर्व जस्टिस चितरंजन दास ने राजनीति के विषय पर क्या बयान दिया है! आरएसएस ने मुझे सिखाया कि आप जिस भी पेशे में हों, आप देश के लिए काम कर रहे हैं। राजनीति मेरे बस की बात नहीं, मैं इसमें शामिल नहीं होऊंगा’। ये कहना है कलकत्ता हाईकोर्ट के तीसरे सबसे सीनियर जज चितरंजन दास का। जस्टिस दास का ट्रांसफर साल 2022 में कलकत्ता हाईकोर्ट किया गया था। अब उन्होंने अपनी रिटायरमेंट पर कहा कि वो शुरुआती दिनों में आरएसएस से जुड़े थे। आज भी वो वापस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में जाना चाहते हैं। कलकत्ता हाईकोर्ट ने सोमवार को पूर्व जस्टिस चितरंजन दास को फुल-कोर्ट रेफरेंस में विदाई दी। चितरंजन दास ने 1985 में कटक के मधुसूदन लॉ कॉलेज से लॉ में ग्रेजुएशन की थी। फिर चितरंजन दास ने उत्कल विश्वविद्यालय में एक नॉन-कॉलेजिएट कैंडिडेट के रूप में एलएलएम की डिग्री हासिल की। उन्होंने 1986 में एक वकील के रूप में नामांकन किया और उड़ीसा सुपीरियर न्यायिक सेवा (वरिष्ठ शाखा) के कैडर में सेवा में शामिल हुए। 2022 में, उन्हें कलकत्ता हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया। दिलचस्प बात यह है कि सोमवार को उन्होंने अपने विदाई भाषण में जब खुद के अतीत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े होने का खुलासा किया तो उसके बाद से सुर्खियों में आ गए। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में बताया कि कब और कैसे वो आरएसएस से जुड़े। आगे उनका क्या प्लान है ये भी जानकारी दी।

आरएसएस से कैसे और कब जुड़े? पूर्व जस्टिस चितरंजन दास ने कहा कि मैं बचपन में काफी शरारती थे। एक दिन किसी दूसरे लड़के से झगड़ रहा था, तभी शाखा प्रचारक नंद किशोर शुक्ला वहां आ गए। उन्होंने बीच में आकर हमें अलग किया। फिर हमें शाखा में आने का निर्देश दिया। अब रिटायरमेंट के बाद मैं नंद किशोर शुक्ला को ढूंढ रहा हूं। अगर वे जीवित हों तो उनसे मिलना चाहता हूं। चितरंजन दास ने बताया कि शाखा में मुझे कई अच्छे गुण सीखने को मिले, जैसे सहनशीलता, धैर्य, जीवन के आदर्श मूल्य। मैंने सीखा कि आप जिस भी क्षेत्र में काम करते हैं, जाति, पंथ आदि से परे सभी के साथ समान व्यवहार करते हुए अपने काम के प्रति समर्पित रहें। संघ ने हमें सिखाया कि आप जिस भी पेशे में हैं, आप देश के लिए काम कर रहे हैं।

आपको अपने विदाई भाषण में आरएसएस के बारे में कमेंट की कैसे प्रेरणा मिली? पूर्व जस्टिस चितरंजन दास ने कहा, ‘संघ के सदस्य के रूप में मैंने बहुत से अच्छे गुण सीखे हैं, जिससे मुझे न्याय करने में मदद मिली। यह पंक्ति मेरे विदाई भाषण पर मेरे दिमाग में स्वतः ही आ गई। मैंने कभी ऐसा भाषण देने के बारे में नहीं सोचा था। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं यह कहूँगा कि मैं आरएसएस से जुड़ा हुआ हूं। मुझे लगा कि अगर मैं ऐसा कहूंगा, तो इससे विवाद पैदा हो सकता है। मेरे भाषण के बाद, बहुत सारी नकारात्मक टिप्पणियां आईं, लेकिन मुझे इसकी परवाह नहीं है क्योंकि मैं रिटायर हो चुका हूं और मैंने अपना काम कर दिया है। मैं कभी किसी के खिलाफ पक्षपाती नहीं रहा। मैं यह कह सकता हूं कि अगर आप पूरी तरह से निष्पक्ष व्यक्ति बनना चाहते हैं, तो आरएसएस में जाएं।

आरएसएस से जुड़ने से आपको व्यक्तिगत रूप से कितना फायदा हुआ? एक्स जस्टिस दास ने कहा कि ‘आप बार से पूछ सकते हैं, आप उन लोगों से पूछ सकते हैं जो मेरे साथ जुड़े रहे हैं। मैं पिछले 37 सालों से आरएसएस से जुड़ा नहीं था। मेरे पिता की मृत्यु समय से पहले हो गई, जब मैं 53 साल की उम्र में था। मेरे पास संघ को देने के लिए समय नहीं था। मैंने तब तक अपना लाइसेंस भी ले लिया था। मैंने अपना पूरा समय वकालत में लगाया। अब भी मेरा आरएसएस के किसी व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। मैं इस संबंध को फिर से जोड़ना चाहता हूं क्योंकि अब मैं स्वतंत्र हूं। लोग जानते हैं कि मैं किस तरह का व्यक्ति हूं।’

इस बात की आलोचना होती है कि जजों को संगठनों से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। इस बारे में आपका क्या कहना है? कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व जज ने कहा, ‘जो भी आलोचना कर रहे हैं, मैं उनसे एक सवाल पूछना चाहता हूं, जब आप पैदा हुए थे, तो क्या आपको पता था कि आप क्या करेंगे? क्या आपको बचपन में पता था कि आप गायक बनेंगे, जज बनेंगे, लेखक बनेंगे, नौकरशाह बनेंगे, प्रोफेसर बनेंगे या लेक्चरर बनेंगे? मुझे भी नहीं पता था कि मैं न्यायपालिका में जाऊंगा। मैं पाखंडी नहीं बनना चाहता था, इसलिए मैंने इसका जिक्र किया। मैं 28 साल की उम्र तक संघ में था, अब मैं 60 साल का हूं।’

आपके विदाई भाषण में आरएसएस के बारे में की गई आपकी टिप्पणियों के बाद कुछ लोग आपके निर्णयों पर सवाल उठा रहे हैं। इस बारे में आप क्या सोचते हैं? पूर्व जस्टिस चितरंजन दास ने कहा, ‘निष्पक्ष होना मुश्किल नहीं है क्योंकि आरएसएस किसी के दिमाग में शिक्षा नहीं भरता। यह आपके समग्र व्यक्तित्व को प्रशिक्षित करता है। जिस दिन मैंने न्यायपालिका में प्रवेश किया, पहले दिन से ही मुझे पता था कि मुझे समय के साथ एक संवैधानिक विवेक विकसित करना होगा।

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