Friday, March 14, 2025
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दक्षिण चीन सागर के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्या कहा?

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दक्षिण चीन सागर के लिए एक बड़ा बयान दे दिया है! एक ऐसा इलाका जहां विस्तारवादी चीन अपनी धौंस दिखाता रहता है। खुराफात करता रहता है। दादागीरी करता है। आस-पास के देशों को जब-तब तंग करता रहता है। जहां उसने बना रखें हैं कृत्रिम द्वीप। कम से कम तीन द्वीपों का सैन्यीकरण कर चुका है। मिलिट्री बेस बना रखा है। उस साउथ चाइना सी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन का नाम लिए बिना बड़ी नसीहत दी है। दो दिन के भीतर दूसरी बार नसीहत। नसीहत ये कि दक्षिण चीन सागर की स्थिरता समूचे हिंद-प्रशांत क्षेत्र की शांति के लिए अहम है, लिहाजा विवादों का निपटारा अंतरराष्ट्रीय नियम-कायदों, कानूनों के हिसाब से हो। एक दिन पहले गुरुवार को जब भारत और ASEAN ने चीन को साउथ चाइना सी में खुराफातों से बाज आने का संदेश दिया तो वह तिलमिला उठा। क्षेत्रीय मामलों में बाहरी ताकतों के दखल की कोशिश बताने लगा। इस बीच पीएम मोदी ने दूसरी बार उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया। अब तो उसका और ज्यादा तिलमिलाना और फड़फड़ाना तय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को 19वें ईस्ट एशिया समिट में अपने संबोधन में पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए दक्षिण चीन सागर की स्थिरता के महत्व पर जोर दिया। पीएम मोदी ने कहा, ‘एक स्वतंत्र, खुला, समावेशी, समृद्ध और नियम-आधारित इंडो-पैसिफिक पूरे क्षेत्र की शांति और प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है। दक्षिण चीन सागर की शांति, सुरक्षा और स्थिरता पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के हित में है।’

पीएम मोदी ने ASEAN देशों में एकता की वकालत करते हुए कहा कि भारत की ‘इंडो-पैसिफिक महासागर पहल’ और ‘इंडो-पैसिफिक पर आसियान आउटलुक’ के बीच गहरी समानताएं हैं। इससे पहले, गुरुवार को भारत और ASEAN की तरफ से जारी संयुक्त बयान में कहा गया कि दक्षिण चीन सागर में जो भी विवाद हैं, उनका अंतरराष्ट्रीय कानूनों के हिसा से समाधान होना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करने की नसीहत के बाद चीन तिलमिला गया। गुरुवार को ही चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग ने आरोप लगाया कि ‘बाहरी ताकतें’ ‘क्षेत्रीय मामलों’ में दखल दे रही है। ASEAN समिट के दौरान ही फिलीपींस के राष्ट्रपति फर्डिनेंड मार्कोस जूनियर ने भी चीन तो लताड़ लगा दी। उन्होंने कहा कि ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि साउथ चाइना सी में मोटे तौर पर हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं जिसकी वजह चीन की हकते हैं।

पीएम मोदी ने शुक्रवार को म्यांमार में लोकतंत्र की बहाली की अहमियत पर जोर देते हुए कहा कि उसे अलग-थलग नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत एक पड़ोसी देश के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभाता रहेगा। म्यांमार को अलग-थलग नहीं किया जाना चाहिए। रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिम एशिया में इजरायल-ईरान तनाव का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने बहुचर्चित बयान को फिर दोहराया कि यह युद्ध का युग नहीं है। उन्होंने कहा, ‘यह युद्ध का युग नहीं है। समस्याओं का समाधान युद्ध के मैदान से नहीं निकल सकता।’

पीएम मोदी ने संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करने की भारत की प्रतिबद्धता पर जोर दिया, साथ ही बातचीत और कूटनीति को प्राथमिकता देते हुए एक मानवीय दृष्टिकोण का आग्रह किया। उन्होंने कहा, ‘विश्वबंधु की जिम्मेदारी निभाते हुए भारत इस दिशा में हर संभव योगदान देता रहेगा।’ पीएम मोदी ने आतंकवाद को वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती बताते हुए इस बारे में भी बात की। उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय सहयोग का आह्वान करते हुए कहा, ‘मानवता में विश्वास करने वाली ताकतों को मिलकर काम करना होगा।’ उन्होंने सामूहिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए साइबर, समुद्री और अंतरिक्ष क्षेत्रों में सहयोग मजबूत करने की जरूरत पर भी बल दिया।

वियनतियाने में शिखर सम्मेलन के मौके पर, पीएम मोदी ने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से मुलाकात की और तूफान मिल्टन के कारण अमेरिका में कम से कम 14 लोगों की मौत पर दुख जाहिर किया। पीएम मोदी दो दिवसीय लाओस यात्रा पर हैं, जहां उन्होंने 21वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में भी भाग लिया। उनकी यह यात्रा भारत की ऐक्ट ईस्ट पॉलिसी के एक दशक को चिह्नित करती है। वियनतियाने पहुंचने पर, उनका औपचारिक स्वागत किया गया और लाओस के गृह मंत्री, विलायवोंग बुद्धाखाम सहित वरिष्ठ मंत्रियों ने उनका स्वागत किया। पीएम मोदी ने भारतीय समुदाय के लोगों से भी बातचीत की और शिक्षा और खेल मंत्री और वियनतियाने के मेयर सहित कई गणमान्य व्यक्तियों ने उनका स्वागत किया।

उन्होंने लुआंग प्रबांग के रॉयल थिएटर द्वारा लाओ रामायन, फालक फलम के एक प्रदर्शन में भाग लिया, और एक्स पर कार्यक्रम की तस्वीरें साझा करते हुए, भारत और लाओस के बीच सांस्कृतिक संबंधों की तारीफ की। भारत और लाओस के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध हैं, जो बौद्ध धर्म और रामायण की उनकी साझी विरासत में परिलक्षित होते हैं। दोनों देशों ने 1956 में द्विपक्षीय संबंध स्थापित किए और उनके संबंध मैत्रीपूर्ण बने हुए हैं।

 

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