हाल ही में विदेश मंत्री ने देश की सुरक्षा और हित के लिए एक बयान दिया है! पिछले एक दशक में भारत की डिप्लोमेसी ने बहुत बड़ा बदलाव देखा है। इन सालों में विश्व के सामने भारत ने खुद को एक मजबूत देश के रूप में सामने लाने में सफल कोशिश की जो दबाव के सामने नहीं झुकता है। इस कूटनीतिक बदलाव में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर का बड़ा योगदान माना गया। कई देशों में भारत के राजदूत रहे और मौजूदा देश के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सबसे करीबी मंत्रियों में रहे। उनकी कोर टीम का हिस्सा माना गया। उन्होंने कहा कि देश में बदलाव आया है। पिछले दस वर्षों में देश की सोच अपने बारे में बदली है। हम दुनिया को ज्यादा आत्मविश्वास के साथ देख रहे हैं। हम अपनी बात, अपना हित, अपनी बात, अपना पक्ष सामने रखने से अब डरते नहीं है। देश के हर हिस्से में जो माहौल है, उसको देखते हुए कहा जा सकता है कि हम एक तरह से टाइम के साथ चल रहे है। दूसरा बड़ा कारण राजनीतिक है। बीजेपी की विचारधारा राष्ट्रवादी है। कश्मीर की बात करें, चीन की बात करें, परमाणु हथियारों की बात करें या दूसरे देशों की बात करें तो बीजेपी के जहन में है कि हम अपनी बातों को सामने रखने से हिचकिचाते नहीं है। भारत को ग्लोबल डिप्लोमेसी के स्तर पर मिली कामयाबी का बहुत बड़ा कारण पीएम नरेंद्र मोदी की लीडरशिप और उनका व्यक्तित्व है। जो भी सरकार है, एक तरह से उस सरकार के लीडर पर काफी कुछ निर्भर करता है। पीएम नरेंद्र मोदी का प्रभाव पूरी कैबिनेट व पूरी टीम पर होता है। मोदी के विदेशी मंत्री हो, बीजेपी की सरकार हो, इस समय आज का भारत जो है, ये सब चीज साथ मिलाएंगे तो भारत बड़ी मजबूती के साथ आगे बढ़ रहा है और बिना किसी डर के अपनी बात दुनिया के सामने रख रहा है।
2020 से पहले दोनों फौजें अपने बेस से ऑपरेट करती थी। अपने कैंप या बेस से पेट्रोलिंग कर फिर बेस में वापस चले जाते थे। 2020 में चीन की ओर से वो अपने बेस से बाहर तो निकले और उनकी संख्या भी बहुत ज्यादा थी। उनके पास हथियार ज्यादा थे, इसके रिस्पांस में हमारी ओर से सरकार ने भी हमारी फौज को वहां भेजा। मई-जून 2020 में हम दोनों (भारत- चीन सेना) की बहुत क्लोजअप डिप्लॉयमेंट थी क्योंकि हम दोनों अपनी पोजिशन से आगे थे। ये नहीं था कि आमने सामने थे, क्रिस-क्रॉस थे। कोई आगे थे, कोई ऊपर था, कोई नीचे था, कोई साइड में था, बहुत नजदीक में थे। उन्होंने कहा कि होना यह चाहिए था कि हमें फिजिकल कॉन्टेक्ट में आना ही नहीं चाहिए था, हम तय प्रक्रिया के हिसाब से दूरी रखते, पर उसका उल्लंघन हुआ। हम बहुत क्लोज आ चुके थे इसलिए डिसइंगेजमेंट की बात हुई, हम भी अपने बेस पर वापस जाएं, वो भी अपने बेस पर वापस जाएं। ताकि आगे से कोई हिंसक घटना ना हो। इसके लिए दोनों के बीच समझौता हुआ। एस.जयशंकर ने कहा कि जिस तरह समझौता हुआ वह कोई नई बात नहीं थी। भारत- चीन बॉर्डर में देखें तो हमारा सबसे पहले जो विवाद था वह 1958 में उत्तराखंड के बाराहोती में था। उस वक्त बाराहोती में समझौता हुआ कि वे भी अपने बेस मे चलें जाएं और हम भी अपने बेस में चले जाएं और वहां पेट्रोलिंग रोका जाए। उसके बाद कुछ न कुछ होता रहा। राजीव गांधी के समय में सुमदोरॉग चू में भी यही हुआ कि वे आगे आए, हम भी आगे गए। फिर समाधान यह निकला कि वह भी अपने बेस में जाएं हम भी जाएं। जहां तनाव के चांस ज्यादा थे वहां कहा कि पेट्रोलिंग नहीं करेंगे। विदेश मंत्री ने कहा कि 2013 में यूपीए सरकार के वक्त भी देपसांग में ऐसी स्थिति हुई। पहले दोनों आगे आए फिर दोनों पीछे गए, फिर तय हुआ कि जब तक दोनों डिसाइड नहीं करेंगे एक तरफा पेट्रोलिंग नहीं होगी। आजकल जो बातचीत चल रही है, वह डिसइंगेजमेंट की बातचीत नहीं है, वह पेट्रोलिंग को लेकर बात है। कुछ ऐसी जगह हैं जहां वे हमें पेट्रोलिंग (गश्ती) से रोकते हैं तो हम भी उन्हें पेट्रोलिंग से रोकते हैं’। अभी जो पेट्रोलिंग की बात हो रही है, ऐसी जगह पर हो रही है जहां हमने एक दूसरे को ब्लॉक किया हुआ है।
यही नहीं उन्होंने कहा कि चुनौती तो नहीं कहूंगा, दुनिया में क्या होता है, अलग अलग देश के अपने- अपने हित होते हैं। हम तो चाहेंगे कि ज्यादा से ज्यादा देशों के साथ अच्छे संबंध हों। विवाद को कम करें। जहां साझेदारी मैक्सिमम है, समस्या सबसे कम है, वहां डिप्लोमेसी सफल रहती है और उसको सबसे अच्छे नंबर दिए जाने चाहिए। कोशिश तो होती है कि अलग- अलग देशों के साथ कॉमन पॉइंट हों, एक साथ काम करने से दोनो देशों को लाभ होता है, हमारे हित मिलते- जुलते हैं, काम करने से दोनो को लाभ होता है। दुनिया की स्थिति यह है कि तनाव होता है। आज यूक्रेन में पश्चिमी देशों को रूस से समस्या है। कभी- कभी खाड़ी में कोई एक देश के दूसरे देश से रिश्ते बिगड़े है। कोशिश है कि जितने लोगों को साथ ले जा सकें, उतना बेहतर है। भारत का हित को कैसे आगे करें, राजनीतिक- कूटनीतिक लक्ष्य तय करें। जिस तरह से देश में सबका साथ सबका विकास किया है, उसी तरह से देश से बाहर भी किया है।
वहां तनाव तो है। पर आजकल आप देखें तो भारत के अलावा पूरी दुनिया में तनाव है। यूक्रेन में युद्ध चल रहा है। पूरी दुनिया में आज अस्थिरता है। कहीं युद्ध है कहीं विवाद है। इसलिए मैं कहूंगा कि हमारे भारत, वोटर्स , लोगों को सोच समझकर फैसला लेना है। आने वाला तूफान दिखाई देता है कि हम तूफान में जा रहे हैं, दुनिया एक तूफान होगी। भारत सुरक्षित हाथों में रहे, यह लोगों को तय करना है। हमारे लिए क्या चाहेंगे कि सत्ता किसके हाथ में सौपेंगी। किसका जजमेंट, किसका अनुभव व किसके आत्मविश्वास पर भरोसा करेंगे। मानता हूं कि दुनिया मुश्किल स्थिति में है, आने वाले समय में मुश्किलें कम नहीं होगी। भारत की जनता को तय करना होगा कि किस व्यक्ति पर भरोसा करते हैं कि उनके कारण भारत सुरक्षित है। पिछले दस वर्षों में भारत ने दुनिया भर में अपनी अलग पहचान बनाई है और भारत पर दुनिया का भरोसा बढ़ा है।