बांग्लादेशी हिंदुओं के बारे में क्या बोले बांग्लादेश के पूर्व चीफ जस्टिस?

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हाल ही में बांग्लादेश के पूर्व चीफ जस्टिस ने बांग्लादेशी हिंदुओं के बारे में एक बयान दिया है! बांग्लादेश में हालात अब भी नाजुक हैं। हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से ही बांग्लादेश में हिंदू और अन्य अल्पसंख्यकों पर हमले हो रहे हैं हैं, जिससे भारत समेत पूरी दुनिया में रहने वाले हिंदुओं की चिंता बढ़ गई है। बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने बांग्लादेशी हिंदुओं को सुरक्षा का आश्वासन दिया है। बांग्लादेश के पहले पूर्व हिंदू चीफ जस्टिस सुरेंद्र कुमार सिन्हा ने बांग्लादेश के मौजूदा हालातों और वहां हो रहे हिंदुओं पर अत्याचार को लेकर बातचीत की। बता दें कि सिन्हा को हसीना सरकार ने असंवैधानिक तरीके से हटा दिया था। कोई भी तानाशाह अनंत काल तक सत्ता में नहीं रह सकता। हसीना के शासनकाल में कई क्रूर घटनाएं हुई हैं। यहां तक कि उन्होंने देश के मुख्य न्यायाधीश को भी पद से हटा दिया। यह उनके तानाशाह होने का सबसे बड़ा सबूत है। पिछले 53 सालों से बंगलादेश के राजनेता नाकाम साबित हुए हैं। लेकिन हाल ही में छात्रों के आंदोलन ने यह दिखा दिया है कि अगर नीयत साफ हो तो कुछ भी संभव है। अगर हसीना मुख्य न्यायाधीश को बाहर का रास्ता दिखा सकती हैं, तो उनके तानाशाह होने का और क्या सबूत चाहिए? हसीना का सत्ता से हटना मैं बंगलादेश की जनता की एक बड़ी उपलब्धि मानता हूं।

यूनुस हाल ही में ढाकेश्वरी गए थे। वहां उन्होंने हिंदू समुदाय के नेताओं को सुरक्षा का भरोसा दिलाया। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि अल्पसंख्यक हमेशा से हसीना का साथ देते आए हैं। लेकिन हसीना उनकी रक्षा नहीं कर पाईं। दो साल पहले दुर्गा पूजा के दौरान कई मंदिरों और पंडालों में तोड़फोड़ की गई थी। लेकिन उनकी सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। किसी पर भी मामला दर्ज नहीं किया गया। दोषियों को सजा न मिलने की संस्कृति बांग्लादेश में लंबे समय से चली आ रही समस्या है। बांग्लादेश में तीन तरह के लोग अत्याचार करते हैं – कट्टरपंथी , मौका परस्त गुंडे और राजनीतिक रूप से प्रेरित लोग। ये लोग जो अराजकता फैलाना चाहते हैं। इसका खामियाजा हमेशा अल्पसंख्यकों को ही भुगतना पड़ता है। लेकिन हसीना उनकी रक्षा नहीं कर पाईं।

यह बात साफ है की धर्मनिरपेक्षता और राज्‍य धर्म एक साथ नहीं चल सकते। कानूनों को निष्पक्ष होना चाहिए। ‘वैस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट’ जैसे कानून नहीं होने चाहिए, जिसने हिंदू संपत्तियों को जब्त कर लिया। इसी तरह, हिंदू मंदिरों के प्रबंधन के लिए अलग कानून नहीं होना चाहिए। किसी के लिए कोई छूट नहीं। अगर असली लोकतंत्र, कानून का राज और समानता कायम रहती है, तो हिंदू बांग्लादेश में सुरक्षित रहेंगे। सभी हिंदू भारत नहीं आ सकते।

बांग्लादेश की नींव कभी मजबूत नहीं रही, ये बात खुद वहां के हालात बताते हैं। कैसे शेख मुजीबुर रहमान ने खुद बांग्लादेश के शुरुआती लोकतंत्र को कमजोर किया। 1974 में वो पाकिस्तान में OIC की बैठक में शामिल हुए थे और उन्होंने एक दलीय व्यवस्था लागू करने की कोशिश भी की थी। उन्होंने ताजुद्दीन अहमद जैसे बड़े नेताओं को दरकिनार कर दिया था। 1991 तक बांग्लादेश में दो बार मार्शल लॉ लगा। 1996 में शेख हसीना की सरकार पहली बार सत्ता में आई थी और ये समय बांग्लादेश के लिए अच्छा माना जाता है। लेकिन 2009 में दोबारा सत्ता में आने के बाद से शेख हसीना की कार्यशैली अलग ही रही। बांग्लादेश का संविधान संसदीय प्रणाली की बात करता है लेकिन हसीना ने राष्ट्रपति शैली में देश चलाया। 2015 में बांग्लादेश की सर्वोच्च अदालत ने भारत के केशवानंद भारती मामले की तरह ही संविधान की बुनियादी संरचना को पवित्र बताते हुए कई फैसले दिए। लेकिन शेख हसीना ने संविधान में कई तरह के बदलाव लाकर व्यवस्था को और उलझा दिया।

हसीना ने भारत भागने का फैसला किया है। अगर दिल्ली में उन्हें रहने दिया जाता है तो भारत मुश्किल में पड़ सकता है। हसीना गंभीर अपराधों की दोषी हैं। उनके शासन ने 300 से ज्यादा छात्रों को मार डाला है। हसीना को वापस भेजना चाहिए। अगर भारत ने ऐसा नहीं किया तो भविष्य में भारत-बांग्लादेश संबंध खराब होंगे। बांग्लादेश में नए चीफ जस्टिस के चुनाव पर सवाल उठ रहे हैं। नए CJ काबिल हैं, लेकिन उन्हें चुनने का तरीका सही नहीं था। राष्ट्रपति को पहले CJ को इस्तीफा देने के लिए कहना चाहिए था। संविधान अभी भी काम कर रहा है। अगर इस तरह की गैरकानूनी चीजें जायज हैं, तो दूसरी गैरकानूनी चीजों को भी जायज ठहराना होगा। लेकिन बांग्लादेश में जरूरी मुद्दों को संविधान को नजरअंदाज करके हल किया जाता है।