हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने स्वास्थ्य के अधिकार के लिए एक बयान दिया है! सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राइट टु हेल्थ में कंस्यूमर को प्रॉडक्ट की क्वॉलिटी के बारे में भी जानने का हक है। इस तरह कोर्ट ने राइट टु हेल्थ का दायरा बढ़ा दिया है। कोर्ट ने कहा, प्रॉडक्ट की क्वॉलिटी के बारे में जानकारी देना ना सिर्फ निर्माता, सेवा प्रदाता की जिम्मेदारी है, बल्कि प्रॉडक्ट का प्रचार प्रसार करने वाले माध्यम, सिलेब्रिटी और एनफ्लूएंसर की भी ज़िम्मेदारी बनती है। एडवरटाइजर और एडवरटाइजिंग एजेंसी और उस प्रॉडक्ट को प्रमोट करने वाले जिम्मेदारी से काम करें। सभी मेडिकल डिवाइस लाइसेंस होल्डर और निर्माताओं को निर्देश दिया है कि वह लाइफ सेविंग मेडिकल डिवाइस के किसी भी साइड इफेक्ट को सरकार के एमवीपीआई प्लैटफॉर्म पर रिपोर्ट करें, यह कदम स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए बेहद ज़रूरी है, ताकि स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हो सकें।उन्हें भी गाइडलाइंस के तहत जिम्मेदारी लेनी होगी, ताकि कंस्यूमर का जो भरोसा है वह न तोड़ा जाए। उनका शोषण ना हो। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, गुमराह करने वाले विज्ञापन के मामले में कोई ठोस मेकेनिजम नहीं है, जहां कंस्यूमर अपनी शिकायत दर्ज करा सकें। कोर्ट ने राइट टु हेल्थ के दायरे में कंस्यूमर के अधिकार को प्रोटेक्ट करने के लिए निर्देश दिया कि विज्ञापन को जारी करने से पहले एडवरटाइजर और एडवरटाइजिंग एजेंसी केबल टेलिविजन नेटवर्क रूल्स का पालन करें।वहीं जलावायु परिवर्तन मामले में सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा था कि स्वच्छ पर्यावरण के बिना जीवन के अधिकार पूरी तरह से साकार नहीं होते हैं। अब मौजूदा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है, उसके बाद इन फैसलों से राइट टु हेल्थ का दायरा काफी व्यापक हो गया है। इसका सीधा सरोकार आम लोगों से है, जिन्हें इस अधिकार को लेकर जागरुक रहने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस हीमा कोहली की अगुवाई वाली बेंच ने पतंजलि केस में दिए गए ऑर्डर में कंज्यूमर राइट्स के बारे में व्यवस्था दी है। इस मामले में आईएमए की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया था कि गुमराह करने वाले विज्ञापन पर रोक लगाई जाए और रेगुलेशन किया जाए। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस हीमा कोहली की अगुवाई वाली बेंच ने पतंजलि केस में दिए गए ऑर्डर में कंज्यूमर राइट्स के बारे में व्यवस्था दी है।सुप्रीम कोर्ट ने मामले में पतंजलि और अन्य के खिलाफ कंटेप्ट नोटिस जारी किया था और मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा हुआ है।
समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट राइट टु हेल्थ को लेकर कई फैसले दिए हैं।सभी मेडिकल डिवाइस लाइसेंस होल्डर और निर्माताओं को निर्देश दिया है कि वह लाइफ सेविंग मेडिकल डिवाइस के किसी भी साइड इफेक्ट को सरकार के एमवीपीआई प्लैटफॉर्म पर रिपोर्ट करें, यह कदम स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए बेहद ज़रूरी है, ताकि स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हो सकें।व्यापक तौर पर परिभाषित किया है। कोविड के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने 18 दिसंबर 2020 को अहम फैसले में कहा है कि राइट टु हेल्थ मौलिक अधिकार है। राइट टु हेल्थ में इलाज आम लोगों की जेब के दायरे में होना चाहिए। वहीं जलावायु परिवर्तन मामले में सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा था कि स्वच्छ पर्यावरण के बिना जीवन के अधिकार पूरी तरह से साकार नहीं होते हैं। अब मौजूदा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है, उसके बाद इन फैसलों से राइट टु हेल्थ का दायरा काफी व्यापक हो गया है। इसका सीधा सरोकार आम लोगों से है, जिन्हें इस अधिकार को लेकर जागरुक रहने की जरूरत है।
कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया डीसीजीआई ने मेडिकल डिवाइस के साइड इफेक्ट को रिपोर्ट करने की अपील की है। बता दें कि गुमराह करने वाले विज्ञापन के मामले में कोई ठोस मेकेनिजम नहीं है, जहां कंस्यूमर अपनी शिकायत दर्ज करा सकें। कोर्ट ने राइट टु हेल्थ के दायरे में कंस्यूमर के अधिकार को प्रोटेक्ट करने के लिए निर्देश दिया कि विज्ञापन को जारी करने से पहले एडवरटाइजर और एडवरटाइजिंग एजेंसी केबल टेलिविजन नेटवर्क रूल्स का पालन करें। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस हीमा कोहली की अगुवाई वाली बेंच ने पतंजलि केस में दिए गए ऑर्डर में कंज्यूमर राइट्स के बारे में व्यवस्था दी है। सभी मेडिकल डिवाइस लाइसेंस होल्डर और निर्माताओं को निर्देश दिया है कि वह लाइफ सेविंग मेडिकल डिवाइस के किसी भी साइड इफेक्ट को सरकार के एमवीपीआई प्लैटफॉर्म पर रिपोर्ट करें, यह कदम स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए बेहद ज़रूरी है, ताकि स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हो सकें।