हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के पीरियड्स के लिए एक बयान दे दिया है! बाल विवाह जीवनसाथी चुनने के अधिकार का उल्लंघन है। इससे उसकी ‘स्वतंत्र पसंद’ और ‘बचपन’ दोनों का उल्लंघन होता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने यह अहम टिप्पणी की। पीठ ने संसद से बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA), 2006 में संशोधन करके बाल विवाह पर पूरी तरह से पाबंदी लगाने पर विचार करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अनिल कुमार सिंह श्रीनेत कहते हैं कि सुप्रीम टिप्पणी से वैवाहिक मामलों में भी मुस्लिमों के पर्सनल लॉ से जुड़े कानून के खात्मे का संकेत मिलता है। गेंद अब केंद्र सरकार के पाले में है। पहले तीन तलाक पर चोट की गई और अब विवाह के मामले में पर्सनल लॉ में दखल की बात कही गई है। CJI चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने कहा-महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव का उन्मूलन (CEDAW) जैसे अंतरराष्ट्रीय कानून नाबालिगों के विवाह के खिलाफ प्रावधान करते हैं। बच्चे की तय की गई शादियां उनके स्वतंत्र विकल्प, स्वायत्तता और बचपन के अधिकारों का उल्लंघन करती हैं। बाल विवाह निषेध अधिनियम को किसी भी व्यक्तिगत कानून के तहत परंपराओं से बाधित नहीं किया जा सकता है और कहा कि बच्चों से संबंधित विवाह जीवन साथी चुनने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन है। पीठ में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे। अनिल सिंह श्रीनेत कहते हैं कि यह सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी कॉमन सिविल कोड की दिशा में एक और बड़ा कदम है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून लागू करने वालों को बाल विवाह को रोकने और निषिद्ध करने के लिए सर्वोत्तम प्रयास करना चाहिए। केवल मुकदमों पर ही ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए। भारत में हर 3 मिनट में एक बाल विवाह होता है। यह बहुत ही भयावह स्थिति है। यानी बचपन को कुचला जा रहा है। फैसले में कहा गया है कि बाल विवाह के मूल कारणों जैसे गरीबी, लिंग, असमानता, शिक्षा की कमी को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करने के अलावा निवारक स्ट्रैटेजी को अलग-अलग समुदायों की विशिष्ट जरूरतों के मुताबिक बनाया जाना चाहिए।
एक एडवोकेट और चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट भुवन रिभु की किताब ‘व्हेन चिल्ड्रन हैव चिल्ड्रन’, बाल विवाह से बचपन छिन जाता है। उनकी आजादी और गरिमा पर चोट पहुंचती है। बाल विवाह का मतलब यह है कि 18 साल से कम उम्र की लड़की और 21 साल से कम उम्र के लड़के की शादी बाल विवाह की कैटेगरी में आती है। बाल विवाह से लड़कियों के स्कूल छूट जाते हैं। उनकी आजीविका और आत्मनिर्भरता पर चोट पहुंचती है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से पीसीएमए को व्यक्तिगत कानूनों पर प्रभावी बनाए रखने का आग्रह किया था। पीठ ने इस बात पर गौर किया कि बाल विवाह निषेध अधिनियम व्यक्तिगत कानूनों पर प्रभावी होगा या नहीं, यह मुद्दा संसद के पास विचार के लिए लंबित है। यह निर्णय सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलंटरी एक्शन द्वारा दायर जनहित याचिका पर आया, जिसमें बाल विवाह को रोकने के लिए कानून के प्रभावी कार्यान्वयन की मांग की गई थी।
एक एडवोकेट और चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट भुवन रिभु की किताब ‘व्हेन चिल्ड्रन हैव चिल्ड्रन’ के अनुसार, बाल विवाह का नतीजा बच्ची का रेप होता है। इससे कम उम्र में प्रेग्नेंसी और बड़ी संख्या में मौतें भी होती हैं। यहां तक कि कुछ समुदायों और समाजों में इसे सही भी ठहराया जाता है। एडवोकेट अनिल कुमार सिंह श्रीनेत बताते हैं कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में बाल विवाह को जायज ठहराया गया है। सितंबर, 2022 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने यह नियम दिया था कि कि अगर कोई मुस्लिम लड़की 15 साल की हो जाती है तो उसे मान लिया जाता है कि वह शादी के काबिल हो गई है। वह अपनी सहमति से शादी कर सकती है। ऐसी शादी मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत मान्य होगी। इसी तरह का एक फैसला दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सुनाया था। ऐसे फैसलों से बाल विवाह को लेकर कन्फ्यूजन की स्थिति पैदा हुई।
अनिल सिंह बताते हैं कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के नियमों के अनुसार, नाबालिग से विवाह की भी अनुमति है। मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 के अनुसार मुस्लिमों में शादी की उम्र तय नहीं है। कोई लड़की शादी के योग्य तब मानी जाती है, जब उसका पहला पीरियड आ जाता है। यह पुबर्टी यानी युवावस्था की उम्र ( जिसे आमतौर पर 15 साल माना जाता है) तक माना जाता है। यह उम्र और वयस्क होने की उम्र समान मानी गई है। यानी पर्सनल लॉ के अनुसार मुस्लिम लड़की 15 वर्ष की आयु के बाद शादी के लिए योग्य है। हालांकि, आजकल पहला पीरियड 12-13 साल की उम्र में आ गया तो भी पर्सनल लॉ के अनुसार ऐसी शादी जायज मानी जाएगी।
एडवोकेट अनिल सिंह के अनुसार, बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 ये कहता है कि अगर दूल्हा या दुल्हन में किसी एक की भी उम्र विवाह योग्य नहीं है तो यह बाल विवाह ही माना जाएगा। 18 वर्ष या उससे कम उम्र की बच्चियों और 21 साल से कम उम्र के लड़के को बच्चा ही माना जाएगा। ऐसे में अगर किसी एक पक्ष ने भी ऐसी शादी को कोर्ट में चुनौती दी तो ऐसा बाल विवाह रद्द हो सकता है। किताब चिल्ड्रन हैव चिल्ड्रन के अनुसार, अगर जागरूकता अभियानों को बढ़ाया जाए और कानूनों से सख्ती बरती जाए तो अगले 25 साल में भारत में बाल विवाह की दर मौजूदा 23 फीसदी से गिरकर 9 फीसदी पर आ जाएगी।