आज हम आपको बताएंगे कि पीएम मोदी के यूक्रेन दौरे पर आखिर क्या-क्या हुआ! प्रधानमंत्री मोदी यूक्रेन से लौट कर शनिवार को भारत आ गए हैं । छह हफ्ते पहले पीएम मोदी रूस में गए थे। उस दौरे को लेकर पश्चिमी जगत में एक असहजता देखी गई थी। उसके बाद से ही ये माना जा रहा था कि इस संघर्ष को लेकर भारत ने जिस तरह से एक बेहद मुश्किल संतुलन बना रखा था, वो रूस की यात्रा के बाद कम से कम अमेरिका समेत पश्चिमी देशों परसेप्शन के स्तर पर तो कहीं डगमगया था। अब क्योंकि ये यात्रा हो गई है, तो सवाल ये है कि भारत को इस दौरे से आखिर क्या हासिल हुआ? क्या कूटनीति के नजरिए से वो अपनी संतुलन बनाए रखने वाली नीति में कामयाब हो पाया। जानकार कहते हैं कि पीएम मोदी का ये दौरा कूटनीति के लिहाज से मिला जुला रहा। अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार अमिताभ सिंह ने कहा कि राष्ट्रपति जेलेंस्की ने अपनी ओर से बेहद साफ शब्दों में रूस से तेल लेने को लेकर अपनी बात कही। दोनों पक्षों को एक साथ बैठना चाहिए और इस संकट से बाहर आने के रास्ते तलाशने चाहिए।’ हालांकि भारतीय पक्ष की ओर से राष्ट्रपति को रूसी तेल आयात को लेकर समझाया भी गया। विदेश मंत्री जयशंकर ने साफ किया कि ये मार्केट से जुड़ी नीति है ना कि राजनीतिक। दूसरी बात ये कि जेलेंस्की ने भारत से साफ कहा कि उन्हें इस संघर्ष को यूक्रेन के नजरिए से भी देखने की कोशिश करनी चाहिए। इसके अलावा पीएम की यात्रा ऐसे वक्त पर हुई है, जब जेलेंस्की कुछ ही घंटों पहले कुर्स्क का निरीक्षण करके आए थे। जिस समय पीएम मोदी कीव में थे, तो चीनी प्रधानमंत्री मॉस्को में थे। ऐसे में जियो पॉलिटिकल स्तर पर भारतीय डिप्लोमेसी की मुश्किलें बहुत ज्यादा आसान नहीं हुई हैं, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में परसेप्शन बहुत अहम भूमिका निभाता है।
ऐसे में भारत को आने वाले समय में रूस के साथ अपने संबंधों को लेकर और संवेदनशील होना होगा। आखिरकार रूस भारत का स्थायी दोस्त और साझेदार रहा है, और भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कभी भी रूस की खुलकर आलोचना नहीं की है। हालांकि जानकार कहते हैं कि भारतीय डिप्लोमेसी इस मामले को लेकर एक बैलेंसिंग एक्ट को पूरा करने में कामयाब तो रही। इसके साथ ही भारत ने इस संघर्ष के समाधान के लिए खुद को शांति का पैरोकार बताया और साथ ही कहा कि ग्लोबल साउथ के देश भी ऐसी ही सोच रखते हैं। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में किसी कॉन्फ्लिक्ट को लेकर ये पहली बार था कि भारत ने ग्लोबल साउथ की ओर से विकासशील देशों की सोच और समझ को अपनी ओर से इस तरह जाहिर किया।
पीएम मोदी ने जेलेंस्की से ये भी कहा था कि युद्ध का इन देशों पर भी बुरा असर पड़ेगा। अप्रत्यक्ष तौर पर भी यहां भारत की भूमिका ग्लोबल साउथ की आकांक्षाओं के अगुआ की तरह देखी जा सकती है।बता दें कि वॉशिंगटन पोस्ट ने पीएम मोदी के यूक्रेन में शांति लाने के प्रस्ताव को प्रमुखता से प्रकाशित किया। इस यात्रा को एक तटस्थ राष्ट्र की ओर से सबसे महत्वपूर्ण बताया गया। साथ ही, एक यूक्रेनी विश्लेषक ने इसे भारत, यूक्रेन और यूरोप के बीच एक जटिल बातचीत की शुरुआत बताया। यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने भारत से ‘न्यायसंगत शांति’ के लिए समर्थन मांगा है। भारत और रूस के बीच गहरे आर्थिक रिश्तों को देखते हुए यह एक चुनौतीपूर्ण अनुरोध है।
इसके साथ ही भारत ने इस यात्रा के जरिए दुनिया को संदेश देने की भी कोशिश की, कि शांति की पहल में वो सक्रिय भूमिका को लेकर हमेशा ही तैयार है। इस दौरे को लेकर विदेश मंत्री ने कहा भी कि हमने यूक्रेन की सुनी तो साथ ही यूक्रेन को वो विचार भी बताए जिसके बारे में वो शायद नहीं जानते। बता दें कि पीएम मोदी ने कहा जेलेंस्की से कहा, ‘पिछले दिनों जब मैं एक बैठक के लिए रूस गया तो मैंने वहां भी साफ-साफ शब्दों में कहा कि किसी भी समस्या का समाधान कभी भी रणभूमि में नहीं होता। समाधान केवल बातचीत, संवाद और कूटनीति के माध्यम से होता है और हमें बिना समय बर्बाद किए उस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। दोनों पक्षों को एक साथ बैठना चाहिए और इस संकट से बाहर आने के रास्ते तलाशने चाहिए।’