हाल ही में भारतीय विदेश मंत्री पाकिस्तान दौरे पर जा चुके हैं, तो आज हम आपको यह बताएंगे कि उनके दौरे में क्या खास होने वाला है! पाकिस्तान से संबंधों में तनाव के बीच भारत की तरफ से बड़ा फैसला लिया गया है। पाकिस्तान की मेजबानी में आयोजित हो हो रहे शंघाई शिखर संगठन की बैठक में भारत हिस्सा लेगा। पाकिस्तान अक्टूबर के मध्य में एससीओ के शासनाध्यक्षों की परिषद (सीएचजी) की बैठक की मेजबानी करेगा। खास बात है कि भारत की तरफ से इस मीटिंग में विदेश मंत्री एस जयशंकर भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। पाकिस्तान की तरफ से इस सम्मेलन के लिए पीएम मोदी को न्योता दिया गया था। ऐसे में भारत ने एस जयशंकर को पाकिस्तान भेजने को लेकर काफी अहम फैसला किया है। जयशंकर को पीएम मोदी का ‘चाणक्य’ माना जाता है। अगस्त में, पाकिस्तान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एससीओ के शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया था। जयशंकर की पाकिस्तान यात्रा महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे नई दिल्ली की ओर से एक बड़े फैसले के रूप में देखा जा रहा है। वरिष्ठ मंत्री को भेजने के फैसले को एससीओ के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के प्रदर्शन के रूप में देखा जाता है, जो क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
यह पहली बार नहीं है जब पीएम मोदी ने जयशंकर को अहम मोर्चा संभालने की जिम्मेदारी दी है। जयशंकर पहले भी कई अहम मौके पर पीएम मोदी के भरोसे पर खरे उतरे हैं। अमेरिका से लेकर रूस तक, चीन से लेकर यूरोपीय देशों तक जयशंकर कूटनीतिक के मोर्चे पर भारत के पक्ष को दमदार तरीके से रखते हैं। जयशंकर ने कई बार ग्लोबल प्लेटफॉर्म पर पश्चिमी देशों को दोहरे रवैये की पोल खोली है। जयशंकर कूटनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं। ऐसे में जब पाकिस्तान में जब वह भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे तो भारत अपना पक्ष इस बहुराष्ट्रीय मंच पर साफतौर पर रख पाएगा।
पुलवामा आतंकी हमले के जवाब में फरवरी 2019 में भारत के युद्धक विमानों द्वारा पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर पर बमबारी के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध गंभीर तनाव में आ गए थे। पाकिस्तान की तरफ से लगातार सीमापार से आतंकवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है। इतना ही नहीं पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र जैसे ग्लोबल मंच पर कश्मीर को लेकर बेसुरा राग अलापता रहता है। इसको लेकर भारत ने कई बार दुनिया के सामने पड़ोसी मुल्क की पोल भी खोली है। भारत ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को खत्म किया तो इस पर पड़ोसी मुल्क ने ऐतराज जताया था। अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद पाकिस्तान ने भारत के साथ राजनयिक संबंधों को सीमित कर दिया था।
बता दे कि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान के एक न्यूज चैनल से बातचीत में पाकिस्तान की पूर्व विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार ने कहा कि भारत ने किसी नौकरशाह को ना भेजकर जयशंकर को भेजने का फैसला करके स्मार्ट पहल की है। भारत के साथ हमारा द्विपक्षीय संबंध सामान्य स्तर पर नहीं है। वो भी ऐसे वक्त में जब दोनों देशों में एक दूसरे के यहां उच्चायुक्त भी नहीं हैं। ये बहुत अजीब स्थिति है। इससे पहले एक न्यूज चैनल में उन्होंने जयशंकर का स्वागत खुले दिल से किए जाने की बात कही थी। माना जा रहा है कि इस दौरे से भारत-पाकिस्तान संबंधों में सुधार की शुरुआत हो सकती है। SCO की इस बार की सालाना बैठक पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में 15 और 16 अक्टूबर को है। इसका सदस्य होने के नाते भारत के प्रतिनिधिमंडल की अगुआई विदेश मंत्री एस जयशंकर कर रहे हैं। इस दौरे से भारत-पाकिस्तान में संबंध सुधरने की उम्मीद न के बराबर है, मगर पाकिस्तान और सोशल मीडिया पर इसकी खासी चर्चा है। दोनों देशों के संबंध अरसे से बेपटरी हैं।
जयशंकर ने अपने पाकिस्तान दौरे को लेकर पहले ही कहा था कि यह दौरा एक क्षेत्रीय समिट के लिए है। मैं भारत-पाकिस्तान के संबंधों पर चर्चा करने नहीं जा रहा हूं। मैं एससीओ के एक अच्छे सदस्य के तौर पर जा रहा हूं। जयशंकर की यह साफगोई कूटनीतिक जगत में हर किसी को रास आती है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसहाक़ डार ने भी जयंशकर के दौरे को लेकर कहा कि अभी भारत से द्विपक्षीय बातचीत को लेकर कोई योजना नहीं है।
पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त रहे अजय बिसारिया ने हॉगकांग से निकलने वाले सरकारी अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से कहा है कि जयशंकर का पाकिस्तान जाना दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने का अहम मौक़ा है। भारत ने एक मंत्री को भेजने का फैसला कर यह मैसेज दिया है कि वह अपने पड़ोसी से संबंधों में स्थिरता चाहता है। दोनों देश संबंधों की शुरुआत अपने-अपने उच्चायुक्त भेजकर कर सकते हैं।
जयशंकर ने इससे पहले 28 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा की 79वीं बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि पाकिस्तान अपने कर्मों का फल भुगत रहा है और पाकिस्तान की जीडीपी सिर्फ कट्टरता में ही काम आती है। उन्होंने कहा-आतंक के हर रूप का विरोध होना चाहिए। हमारा पड़ोसी देश आतंकवाद के लिए जाना जाता है लेकिन वह कभी भी कामयाब नहीं होगा।
SCO में यूरेशिया के लगभग 80% क्षेत्र और इसके दायरे में दुनिया की 40% आबादी है। SCO के 9 सदस्य देश हैं- चीन, भारत, पाकिस्तान, कजाखस्तान, किर्गिजस्तान, ताजिकिस्तान, बेलारूस, ईरान और उज्बेकिस्तान। ईरान वर्ष 2023 में इसका सदस्य बना। अफगानिस्तान और मंगोलिया पर्यवेक्षक का दर्जा रखते हैं। संगठन के वर्तमान और आरंभिक संवाद भागीदारों में अजरबैजान, आर्मेनिया, मिस्र, कतर, तुर्किए, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, मालदीव, नेपाल और श्रीलंका शामिल हैं। पूरी दुनिया की जीडीपी में एससीओ देशों की 20 फीसदी हिस्सेदारी है। दुनिया भर के तेल रिजर्व का 20 फीसदी हिस्सा इन्हीं देशों में है। एससीओ का कहना है कि इसका एक अहम मकसद ‘तीन बुराइयों’ यानी आतंकवाद, अलगाववाद और अतिवाद से लड़ना है। ब्रिटेन स्थित विदेश मामलों के थिंक टैंक चैथम हाउस के एनेट बोर के अनुसार, संगठन का जो मकसद है, उसे पूरा करने में चीन ही आड़े आ रहा है, क्योंकि उसके उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र शिनजियांग में अलगाववाद की आवाजें उठ रही हैं।