समान नागरिक संहिता को लेकर सरकार ने अपना विचार बना लिया है! उत्तराखंड की बीजेपी सरकार ने समान नागरिक संहिता यानी UCC विधेयक पास कर दिया है। राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि उत्तराखंड UCC लागू करने वाला पहला राज्य बन रहा है और उम्मीद है कि इसके बाद दूसरे राज्य भी इस दिशा में आगे बढ़ेंगे। समान नागरिक संहिता बीजेपी का मुद्दा रहा है और चुनावी वादे में से एक रहा है। लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी शासित कम से कम एक राज्य में UCC लागू कर बीजेपी यह संदेश दे रही है कि पार्टी अपने सभी चुनावी वादे पूरे करती है। बीजेपी और बीजेपी का वैचारिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूरे देश में समान नागरिक संहिता की वकालत करता रहा है और यह बीजेपी और संघ दोनों का बड़ा मुद्दा रहा है। भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में कहा था कि एक देश में दो निशान, दो प्रधान और दो विधान नहीं चलेंगे। यह नारा जम्मू-कश्मीर में दिया गया था। बीजेपी नेता कई मौकों पर इसका जिक्र भी करते रहे हैं। दरअसल, पूरे देश में एक साथ समान नागरिक संहिता से पहले बीजेपी इसे लेकर एक माहौल तैयार करना चाहती थी। इसी वजह से ही कई बार संसद में बीजेपी सदस्य प्राइवेट मेंबर बिल के तौर पर समान नागरिक संहिता का बिल लेकर आए। पिछले साल मध्य प्रदेश में एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि एक परिवार में दो कानून कैसे चलेंगे। इसके बाद इस पर चर्चा होने लगी कि बीजेपी लोकसभा चुनाव में इसे बड़ा मुद्दा बना सकती है। UCC को लेकर लॉ कमिशन काम कर रहा है और लोगों से भी सुझाव मांगे गए।
बीजेपी शासित राज्य में UCC लागू करके बीजेपी दो चीजें हासिल कर रही है। एक तो यह कि राज्य में लागू होने के बाद यह एक तरह से पायलट प्रॉजेक्ट की तरह होगा और उसमें क्या कुछ बदलाव की जरूरत है, क्या कहीं कोई दिक्कत आ रही है, इन सब मसलों पर विचार किया जा सकता है। साथ ही बीजेपी यह संदेश भी देना चाहती है कि उन्होंने अपना समान नागरिक संहिता का वादा पूरा करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। बीजेपी शासित राज्य एक के बाद एक इसे लागू कर सकते हैं। UCC को लेकर जब लॉ कमिशन ने लोगों की राय लेनी शुरू की तब आदिवासी समुदाय की तरफ से इसका विरोध हुआ था और कहा गया था कि उन्हें इससे छूट मिलनी चाहिए। उत्तराखंड में जो समान नागरिक संहिता विधेयक पास हुआ है उसमें आदिवासी समुदाय को छूट दी गई है।
उत्तराखंड छोटा राज्य है। जहां मुस्लिम आबादी भी कम है। मुस्लिम आबादी यहां करीब 13 पर्सेंट ही है, वह भी राज्य के तराई वाले इलाके में है। हिंदुओं का एक तरह से उत्तराखंड गढ़ है। इसे देवभूमि कहा जाता है और यहां चारधाम हैं। बीजेपी को उम्मीद थी कि यहां इसका कुछ खास विरोध भी नहीं होगा। बीजेपी देखना चाहती है कि छोटे राज्य में लागू कराकर इसे लेकर कैसी प्रतिक्रियाएं मिलती हैं। आदिवासी समुदाय को इससे बाहर रखा गया है तो क्या इसका कोई असर होगा या फिर अगर मामला कोर्ट जाता है तो क्या यह वहां टिक पाएगा या किस तरह के तर्क रखे जा सकते हैं, ये सब भी पता चलेगा। गुजरात, असम, सहित कुछ और राज्यों की बीजेपी सरकार भी UCC लाने की बात कह चुकी हैं।
वादों की गंभीरताबीजेपी ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 हटाने, महिला आरक्षण बिल, राम मंदिर निर्माण जैसे अपने चुनावी वादे पूरे कर लिए हैं और UCC भी बीजेपी का चुनावी वादा था। लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी यह संदेश देना चाहती है कि वह अपने इस वादे को लेकर भी गंभीर है। UCC को बीजेपी महिला अधिकारों के साथ भी जोड़ रही है और इसी तरह इसका प्रचार कर रही है। UCC को लेकर जब लॉ कमिशन ने लोगों की राय लेनी शुरू की तब आदिवासी समुदाय की तरफ से इसका विरोध हुआ था और कहा गया था कि उन्हें इससे छूट मिलनी चाहिए। उत्तराखंड में जो समान नागरिक संहिता विधेयक पास हुआ है उसमें आदिवासी समुदाय को छूट दी गई है।वह मुस्लिम महिलाओं के इसके फायदे बता रही है, साथ ही महिला सशक्तीकरण के लिए इसे जरूरी बता रही है। बीजेपी का मानना है कि महिलाएं उनका एक बड़ा वोट बैंक बन गया है और वह इसे धर्म-जाति से अलग एक समुदाय के रूप में देखते हैं।