Friday, November 22, 2024
HomeIndian Newsबिहार की राजनीति में जेपी नड्डा की क्या है भूमिका?

बिहार की राजनीति में जेपी नड्डा की क्या है भूमिका?

बिहार की राजनीति हमेशा दिलचस्प रही है!आंदोलनों की भूमि रही बिहार एक बार फिर राजनीतिक परिवर्तन की ताप से दहकने लगा है। अक्सर देश में बड़े राजनीतिक बदलाव का एपीसेंटर बनता रहा बिहार के कंधे पर एक बार फिर केंद्रीय सत्ता पर अंगदी पांव जमाए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ताच्युत करने की पटकथा लिखने की जिम्मेदारी सौंप दी गई है। यह सब कुछ इस कदर अप्रत्याशित इतने बोल्डनेस के साथ हुआ कि देश भर के अधिकांश क्षेत्रीय दलों के नेताओं में उस उम्मीद का आकाश आकार लेने लगा कि नीतीश कुमार ही वह चेहरा हैं, जिससे भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को सीधे चुनौती दी जा सकती है। यह कोई कम वजह नहीं कि इतने कम दिनों में देश के नामचीन नेताओं ने नीतीश कुमार के आमंत्रण को स्वीकार किया। साथ ही इस खतरे को भी रेखांकित किया कि भाजपा का बढ़ता कद क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व के लिए खतरा है। और यह सब उस अंदाज और विश्वास के साथ हो रहा था, जैसे आपातकाल के बाद देश भर के नेता लोकनायक जेपी से मिल कर महसूस कर रहे थे।

परिवर्तन जब होता है तो वह त्वरित अंजाम की तरह दिखता है। मगर ऐसा होता नहीं है। परिवर्तन के पीछे वर्षों वर्ष की रणनीति काम करती है। बिहार की राजनीति के फलसफे पर इतना तो साफ है कि बीजेपी और जदयू के बीच खटास 2012 के बाद बढ़ गया था। लेकिन भाजपा के साथ रह कर अपनी छवि सर्व स्वीकार्य बनाने की मुहिम तो नीतीश का शुरू हो चुका था। इस काल खंड में नीतीश कुमार का पूरा फोकस समाज सुधारक वाली थी। मसलन, शराब बंदी, बाल विवाह निषेध कानून, विधवा विवाह कानून को लाने के पीछे यह बताना भी था कि राजनीति से ज्यादा समाज सुधारक के रूप में याद किया जाए। और यही वह खास समय था जब वे किसी भी दल के लिए शत्रु नजर नहीं आते थे। देश के फलक पर उनका चेहरा नरेंद्र मोदी के रेस में कितना आगे या पीछे की मंशा से अलग हटकर वे अपनी पहचान देश भर में कुछ ऐसा बना रहे थे, जहां सत्ता से ज्यादा अहम लोकतंत्र के हितैषी, जनसेवक के रूप में हो। वर्ष 2022 में राजनीतिक उठापटक के दृश्य ने नीतीश कुमार को वह स्थिति तो उपलब्ध करा दी, जहां उनमें आपातकाल के जेपी की सूरत और सीरत ढूंढने की कवायद शुरू हो गई। लेकिन एक बड़ा और महत्वपूर्ण फर्क यह है कि जेपी किसी पार्टी से जुड़े नहीं थे और न ही सत्ता की कोई चाहत ही थी । नीतीश कुमार का सच ये है कि वे पार्टी से जुड़े हैं और पार्टी के भीतर से ही उन्हें प्रधानमंत्री का सर्वश्रेष्ठ दावेदार भी बताया जाते रहा है। यह दीगर कि वे खुद को पीएम पद का उम्मीदवार मानने से इनकार करते हैं। लेकिन उनकी राजनीति की खासियत यह भी है कि न कहते हुए भी वे 8 बार मुख्यमंत्री के पद को सुशोभित कर चुके हैं।

आपातकाल की उत्पति इंदिरा गांधी के उस तानाशाही रवैये से शुरू हुई। जहां लोकतंत्र पसंद जमात को जेल के सलाखों के पीछे भेजा जा रहा था। लोकतंत्र की खूबसूरती चुनाव पर रोक लगे थे। नागरिक अधिकार का हनन हो रहा था। प्रेस पर भी प्रतिबंध थे। तब कर्पूरी ठाकुर, लालू प्रसाद, रामविलास पासवान, नीतीश कुमार कांग्रेस के विरुद्ध गोलबंदी की उपज भी थे। परंतु वर्तमान गोलबंदी का नेरेटिव क्या है ? नीतीश कुमार के वक्तव्यों में ही जाए तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के द्वारा यह कहा जाना कि लोकतंत्र के लिए खतरा है। जहां भाजपा ने कहा कि एक दिन ऐसा आएगा जब सारी क्षेत्रीय पार्टियां समाप्त हो जाएंगी और केवल भाजपा रह जाएगी। इसे लोकतंत्र के लिए सबसे खतरनाक करार दिया। दूसरा आरोप केंद्र के द्वारा सीबीआई , ईडी के दुरुपयोग का लगाया गया और इसी हवाला से भाजपा के विरुद्ध गोलबंदी की नीव रखी गई है। जाहिर है ये सारे मुद्दे जब तक सीधे-सीधे आम जनता से नहीं जुड़ेंगे आपातकाल के विरोध का स्वरूप पाने में संशय तो जरूर है। हालांकि विपक्ष की मंशा यह थी कि 2015 में जिस तरह से मोहन भागवत के बयान “आरक्षण पर पुनर्विचार को ” को आरक्षण समाप्त करने की दिशा में मोड़ कर 2015 के बिहार विधान सभा में भाजपा की जीत को हार में बदला था, ठीक उसी अंदाज में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के बयान की परिणति विपक्ष चाहता है।

देश में विपक्षी एकता की रफ्तार में कमी तो जदयू कार्यसमिति की बैठक के बाद दिए गए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बयान से आ गई। जब उन्होंने कहा कि भाजपा को तब तक हम परास्त नहीं कर सकते, जब तक कांग्रेस और वाम दलों का साथ नहीं मिलता। नीतीश कुमार के इस बयान के बाद उन क्षेत्रीय दलों में निराशा का भाव आ गया, जो कांग्रेस के विरुद्ध अपनी अलग और दमदार राजनीतिक उपस्थिति देश के सामने बना पाई। चिंता तो कांग्रेस के भीतर भी बढ़ गई कि अगर नीतीश कुमार के नेतृत्व में हो रही गोलबंदी के साथ खड़े होते भी हैं तो कई क्षेत्रीय दल उन्हें पीएम के रूप में स्वीकार कर पाएंगे या नहीं। सो, नीतीश कुमार की भूमिका यहां पेंचीदा होते जा रहा है, जहां एक मात्र सॉल्यूशन यह दिख रहा है कि यह फ्रंट केवल लोकसभा चुनाव के सापेक्ष बनाया जाए। विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय दल अपनी पुरानी स्थितियों के साथ चुनाव में उतर भी सकते हैं, अगर तालमेल की कोई सूरत न बन सके। पर यह सब संभावनाओं के स्वर हैं, जहां इन पर वास्तविक स्थिति का मुहर लगना शेष हैं।

एक फ्रंट यानी कांग्रेस और वामदल युक्त फ्रंट। इस फलसफे पर तेलंगाना, बंगाल , दिल्ली, आंध्रप्रदेश की वर्तमान सरकार की परेशानी बढ़ जाएगी। तेलंगाना के केसी राव की पार्टी ही कांग्रेस के विरुद्ध की राजनीति से प्रदेश में उठ खड़ी हैं। यही वजह भी है कि केसीआर बार-बार थर्ड फ्रंट की चर्चा उस प्रेस सम्मेलन में कर रहे थे, जिसमें नीतीश कुमार स्वयं भी शामिल थे। यहां तक कि कांग्रेस के विरुद्ध भी वे बोल गए। बंगाल में ममता बनर्जी कांग्रेस और वाम दल के विरुद्ध तृणमूल कांग्रेस को सफलता के मुकाम तक पहुंचाया। आप पार्टी तो एक कदम आगे बढ़ कर 2024 लोकसभा चुनाव के केजरीवाल बनाम नरेंद्र मोदी मान रहे हैं। राज्य सभा सांसद और आप के नेता संजय सिंह कई बार केजरीवाल को अगले पीएम के रूप में प्रोजेक्ट कर रहे हैं। ऐसे में एक फ्रंट को लेकर कोई ठोस पहल होते नहीं दिख रहा है। उत्तर प्रदेश अकेले 80 सीटों का हिसाब किताब रखती है, वहां अखिलेश यादव कटे-कटे से दिखे। हाल तो यह हो गया कि प्रेस वाले उनसे बात कर रहे थे तो अखिलेश यादव खुद को फ्रेम से अलग रख रहे थे।

लोकनायक जयप्रकाश की मुहिम से इस मुहिम को जोड़ कर देखना अतिशयोक्ति होगी। तब देश के तमाम नेता जेपी से मिलने आ रहे थे। यह नीतीश कुमार सबसे मिलने जा रहे है। यह एक खास अंतर तो है जहां सबों के स्वार्थ का ख्याल रखा जाना असंभव तो नहीं है, मगर मुश्किल जरूर है। संभावना तो कांग्रेस विहीन थर्ड फ्रंट की ज्यादा दिख रही है। एक सूरत अगर यह बन जाए कि पोस्ट पोल एलायंस में कांग्रेस बीजेपी के विरुद्ध खड़ी हो और थर्ड फ्रंट को अपना समर्थन दे। यह भी अगर हो जाए तो नीतीश कुमार की मुहिम को असफल करार नहीं दिया जा सकता। ऐसा इसलिए भी कि थर्ड फ्रंट भी बनकर नरेंद्र मोदी के विरुद्ध खड़ी होती है तो यह भाजपा के लिए आसान चुनौती नहीं होने जा रही है। और वैसे भी दो साल कम नहीं होते स्थितियां बदलने के लिए।

Disclaimer:

Mojo Patrakar may publish content sourced from external third-party providers. While we make every reasonable effort to verify the accuracy, reliability, and completeness of this information, Mojo Patrakar does not guarantee or endorse the views, opinions, conclusions, or authenticity of content provided by these third-party entities. Such content is presented solely for informational purposes, and it is not intended to substitute professional advice or to serve as a comprehensive basis for decision-making.

Mojo Patrakar expressly disclaims any liability for errors, omissions, or inaccuracies that may arise from third-party content, as well as any reliance readers may place upon it. Users are strongly encouraged to conduct independent verification and consult with qualified professionals as necessary before making any decisions based on information obtained through Mojo Patrakar.

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments