Sunday, February 9, 2025
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रामटेक बंगले का क्या है राज?

एक ऐसा बंगला जिसमें सभी नेता जाने से तौबा करते हैं! महाराष्ट्र की सरकार की स्थापना को लगभग 2 महीने पूरे होने जा रहे हैं। धीरे-धीरे शिंदे- फडणवीस सरकार एक्शन मोड में आती हुई नजर आ रही है। मंत्रियों को बंगले भी अलॉट कर दिए गए हैं। हालांकि, इन बंगलों को लेकर एक नई कहानी सामने आई है। खासतौर पर रामटेक बंगला जिसे महाराष्ट्र का कोई बड़ा मंत्री अपना आशियाना नहीं बनाना चाहता। जिसमें अब तक कई मंत्री रह चुके हैं। इसके पीछे कई तरह की मनगढ़ंत कहानियां और अंधविश्वास है। ज्यादातर मंत्रियों का मानना है कि इस बंगले में रहने वाले मंत्री की कुर्सी चली जाती है या फिर किसी घोटाले में नाम आने के बाद उन्हें जेल जाना पड़ता है। सूत्रों के मुताबिक, हाल में सरकार ने हर मंत्री से उनकी पसंद के तीन बंगलो के नाम बताने के लिए कहा था। लेकिन दीपक केसरकर के अलावा किसी भी मंत्री ने रामटेक बंगले को अपनी लिस्ट में शामिल नहीं किया। जिसके बाद यह इसे केसरकर को अलॉट कर दिया गया है। फ़िलहाल केसरकर ने भी बंगले में पूजा- पाठ करवा लिया है। वो आगामी 28 अगस्त को इस बंगले में रहने के लिए आएंगे।

उन्होंने कहा कि बंगले को लेकर शुभ-अशुभ मानने वाले लोग हैं लेकिन मैं इस अंधविश्वास को नहीं मानता। केसरकर का कहना है कि भले ही इस बंगले को लेकर लोगों की सोच कुछ भी हो लेकिन इस बंगले में शरद पवार जी रहे हैं जो आज देश के बड़े नेता हैं। आइए जानते हैं इस बंगले का इतिहास और वजह जिसके चलते इसमें कोई भी मंत्री नहीं रहना चाहता।

मलबार हिल के आलीशान और सी फेसिंग बंगले रामटेक के लिए कुछ साल पहले तक लड़ाई होती है। हर मंत्री इस बंगले में रहने का ख्वाब देखता था। लेकिन जब से छगन भुजबल और एकनाथ खडसे का मंत्री पद गया तब से मंत्रियों ने रामटेक बंगले से ही तौबा कर ली। इतना ही नहीं एकनाथ खडसे के बाद जब पर्यटन विभाग के तत्कालीन मंत्री जयकुमार रावल वहां रहने गए। तब उनके ऊपर भी जांच की तलवार लटक रही थी। अभी भी इस बंगले को लेकर कई भ्रांतियां हैं। शिंदे सरकार में अब यह बंगला मंत्री दीपक केसरकर को दिया गया है।

साल 1975 के आसपास वरिष्ठ समाज सुधारक हमीद दलवाई गंभीर रूप से बीमार थे। उस दौरान वह शरद पवार के रामटेक बंगले में ही रह रहे थे। उनकी इच्छा थी कि मौत उन्हें दफनाने की जगह जलाया जाए। जबकि इस्लाम में पार्थिव शरीर को जलाने की मनाही होती है। इस वजह से शरद पवार को हमीद दलवाई की इच्छा पूरी करने के लिए कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था। उस दौरान शरद पवार रामटेक में ही रहते थे।

साल 1978 में वसंत राव पाटिल के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान शरद पवार कांग्रेस से बाहर निकले। तब उन्होंने पुरोगामी लोकशाही दल अर्थात पुलोद की स्थापना की थी। उस दौरान पवार अक्सर यह कहते थे कि वसंत दादा की सरकार नहीं गिराएंगे। हालांकि इसी रामटेक बंगले से उन्होंने सरकार को ऐसा धक्का लगाया कि सरकार गिर गई। उस समय भी रामटेक बंगला सुर्खियों में था। हालांकि तब यह धारणा बन गई थी कि रामटेक बंगला लोगों के लिए शुभ होता है।

इसी बंगले में शंकरराव चव्हाण रहे थे। जो आगे चलकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने और वर्षा बंगले शिफ्ट हो गए। उनके बेटे अशोक चव्हाण का 12 साल (बचपन) इसी बंगले में बीता है। आगे चलकर वह भी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। इस मामले में शिंदे गुट के एक मंत्री उदय सामंत का मानना है कि बंगले में जो रहता है उसके कामकाज पर डिपेंड होता है। अगर कोई अच्छा काम करता है तो अच्छे वाइब्स निकलेंगे और बंगला सूट करेगा लेकिन अगर बंगले के अंदर कोई गलत काम हो रहा है या पैसे का लेनदेन हो रहा है तो उसे परिणाम भी भुगतना होगा।

सन 1995 में जब युति की सरकार बनी और गोपीनाथ मुंडे उप मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने रामटेक बंगले को जिद करके अलॉट करवाया था। हालांकि मुंडे के लिए यह बंगला कितना लाभदायक सिद्ध हुआ। यह रिसर्च का विषय है क्योंकि इस कालखंड में मुंडे का एक महिला डांसर के साथ नजदीकी संबंध होने का आरोप लगाया। जो पूरे राज्य में चर्चा का विषय बना। इसके अलावा मुख्यमंत्री मनोहर जोशी के साथ मुंडे का चार साल तक शीतयुद्ध चला। रामटेक सब के लिए अच्छा है। यह कहते-कहते साल 1999 में गोपीनाथ मुंडे को सत्ता और रामटेक छोड़ना पड़ा।

कांग्रेस- एनसीपी की अगली सरकार के दौरान रामटेक बंगला तत्कालीन उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल को अलॉट किया गया था। हालांकि तेलगी स्टैम्प घोटाले में छगन भुजबल को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। उस मामले में भुजबल भले ही बच गए थे लेकिन उन्हें खासी परेशानियों का सामना करना पड़ा। रामटेक बंगले में रहते हुए विलासराव देशमुख को साल 1995 लातूर में विधानसभा चुनाव के दौरान पराजय का सामना करना पड़ा था। जिसके बाद उन्होंने रामटेक छोड़ना पड़ा था। हालांकि अगले ही साल 1996 में उन्हें आधे वोट की वजह से विधानपरिषद चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था। तब देखमुख को राजनीतिक पुनर्वसन करने में चार लग गए थे।

अघाड़ी सरकार जाने के बाद छगन भुजबल की जगह रामटेक बंगला एकनाथ खडसे को मिला। मुख्यमंत्री के बाद सरकार में खडसे सरकार दूसरे सबसे वजनदार मंत्री थे। लेकिन डेढ़ साल के भीतर ही उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से यह बंगला और मंत्री पद दोनों छोड़ना पड़ा। सूत्रों की माने तो मंत्री पद जाने के कुछ दिन पहले ही एकनाथ खडसे ने रामटेक पर वास्तु दोष की पूजा भी करवाई थी लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ।

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