आज हम आपको बताएंगे की आर्मी चीफ का पद संभालते ही किन बातों पर फोकस होना चाहिए! रविवार दोपहर बाद इंडियन आर्मी को नया चीफ मिल जाएगा। मौजूदा वाइस चीफ लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी नए आर्मी चीफ का पद संभालेंगे। वे ऐसे वक्त में आर्मी चीफ का पद संभाल रहे हैं जब लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर चीन से निपटने से लेकर जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से निपटने की चुनौतियां बढ़ी हैं। सेना के मॉर्डनाइजेशन के साथ ही अग्निवीर के तौर पर एक बड़े मसले का हल निकालना भी बाकी है। 2022 में सेना में भर्ती की प्रक्रिया बदली और अग्निपथ स्कीम के तहत अग्निवीरों की भर्ती हो रही है। अभी तक के प्रावधान के हिसाब से चार साल पूरा होने से पहले 25 पर्सेंट अग्निवीरों को परमानेंट होने का विकल्प दिया जाएगा, उस वक्त तक जनरल द्विवेदी ही आर्मी चीफ रहेंगे। अग्निपथ में बदलाव को लेकर आर्मी के भीतर स्टडी तो चल ही रही है लेकिन इसके साथ ही यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा भी बन गया है। खासकर इस बार केंद्र सरकार का जो स्वरूप है और विपक्ष के नंबर हैं उससे यह मसला गरम है और आगे इसके और गरमाने के आसार है। ऐसे में सेना की जरूरतों और मनोबल का ध्यान रखते हुए आर्मी चीफ के तौर पर जनरल द्विवेदी को मजबूत स्टैंड लेना होगा।
जम्मू-कश्मीर में घाटी में दहशत फैलाने की आतंकवादियों की साजिश जारी है, लेकिन अब साथ ही कई सालों से शांत रहे जम्मू के इलाकों में भी आतंकी गतिविधि बढ़ी है। लगातार कई वारदातों को आतंकी अंजाम दे चुके हैं और सेना ने अपने कई सैनिकों को खोया है। यह सवाल उठ रहा है कि इंटेलिजेंस क्यों फेल हो रहा है और ह्यमून इंटेलिजेंस क्यों इतना कमजोर हुआ है कि आतंकियों के मंसूबों की वक्त रहते भनक तक नहीं मिल पा रही है। नए आर्मी चीफ के सामने इंटेलिजेंस को मजबूत कर यह भरोसा कायम करने की चुनौती होगी कि आतंकियों की साजिशों को पहले भांपकर उन्हें नाकाम करने की क्षमता सेना में है।
ईस्टर्न लद्दाख में एलएसी पर चार साल से गतिरोध जारी है। सैनिकों की वहां लगातार तैनाती है, जिससे LAC भी एक तरह से LOC बन गई है। सिर्फ ईस्टर्न लद्दाख में ही LAC पर नहीं बल्कि ईस्टर्न सेक्टर में भी LAC पर सैनिकों की तैनाती पहले के मुकाबले बढ़ी है। जम्मू- कश्मीर में आतंकी काबू से बाहर हो रहे हैं। मणिपुर में हालात खराब हैं। इन सब चुनौतियों के बीच सेना को सैनिकों की संख्या भी घटानी है। सरकार की तरफ से सैनिकों की संख्या कम करने का टारगेट है और चुनौतियों चारों तरफ हैं। नॉर्दन बॉर्डर तो प्राथमिकता रहेगी ही लेकिन वेस्टर्न फ्रंट पर भी ढिलाई नहीं बरती जा सकती है। ऐसे में मैनपावर मैनेजमेंट नए चीफ के सामने एक बड़ी चुनौती होगी कि कैसे सभी फ्रंट की जरूरतें पूरी की जाए।
सेना में अभी कुछ क्रिटिकल एम्युनिशन की कमी है। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए कई सैन्य उपकरणों के इंपोर्ट पर बैन लगाया गया है और वे खरीद स्वदेशी कंपनियों से ही करनी हैं। ऐसे में सेना को वक्त पर सभी जरूरी उपकरण मिल सकें यह एक बड़ा टास्क है। क्योंकि कई बार डीआरडीओ की तरफ से सेना की जरूरत के हिसाब से प्रोडक्ट का प्रोटोटाइप तो तैयार हो जाता है लेकिन एक्चुअल फंक्शनल प्रोडक्ट मिलने में देरी होती रहती हैं। यह भी चुनौती होगी कि कैसे स्वदेशी इंडस्ट्री को सुविधा मुहैया कराएं कि वे सेना की जरूरत के हिसाब से और उनके मानकों पर फिट बैठने वाले प्रॉडक्ट तैयार करें। युद्ध के बदलते तरीके के साथ ही नए उपकरणों के साथ ही नई तरह की ट्रेनिंग बिना देरी किए देना भी एक चुनौती रहेगी। पाकिस्तान की बुरी आर्थिक स्थिति के बावजूद पाकिस्तान भी तेज रफ्तार से अपनी सेना का आधुनिकीकरण कर रहा है।
चीन ने कुछ वक्त पहले ही अपनी स्ट्रैटजिक सपोर्ट फोर्स को रीस्ट्रक्चर किया है उसके तहत आने वाले तीन डिपार्मेंट साइबर, स्पेस और इंफो सपोर्ट फोर्स को सीधे सेंट्रल मिलिट्री कमिशन (सीएमसी) के तहत ले आए हैँ। जिससे उनकी बेहतर मॉनिटरिंग होगी और वह ज्यादा प्रभावशाली होंगे। इससे भारत के लिए थ्रेट परसेप्शन बढ़ेगा। भारतीय सेना में भी रीस्ट्रक्चरिंग की प्रक्रिया चल रही है। ऐसे में यह देखना जरूरी होगा कि क्या बदलते थ्रेट परसेप्शन के हिसाब से सेना खुद को कितनी तेजी से तैयार कर रही है। नए थ्रेट के लिए नए उपकरण के साथ ही नई स्ट्रैटजी और नई तरह की ट्रेनिंग… इन सब में भारतीय सेना पीछे ना छूटे।