आज हम आपको बताएंगे कि बांग्लादेश के प्रति विदेश मंत्री एस जयशंकर का अगला कदम क्या होगा! नरेंद्र मोदी सरकार ने रूस-युक्रेन युद्ध के दौरान पश्चिम के दबाव में न आकर अपनी विदेश नीति की तारीफ अपने विरोधियों से भी करवा ली। विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बेबाक जवाबों ने पश्चिम को हैरान किया तो दुनियाभर में भारत की छवि मजबूत की। लेकिन अब पड़ोसी बांग्लादेश में बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। बांग्लादेश में शेख हसीना प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर भारत आ चुकी हैं और वहां अंतरिम सरकार के गठन की कवायद चल रही है। इस बीच बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय पर आफत आ गई है। करीब 1.30 करोड़ की आबादी वाले हिंदुओं के खिलाफ खौफनाक हिंसा हो रही है। उनके घरों, मंदिरों एवं अन्य संपत्तियों पर हमले हो रहे हैं। ऐसे में भारत के सामने दोहरी चुनौती आन पड़ी है। सवाल है कि आखिर भारत बांग्लादेश में अपने हितों का संरक्षण कैसे करे और वहां के हिंदुओं की जान-माल की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित करे? बांग्लादेश में भारत की बड़े परेशानी विदेशी ताकतों के हस्तक्षेप के कारण पैदा हुई है। वहां चीन और पाकिस्तान ने भारत समर्थक शेख हसीना को सत्ता से हटाने की साजिश रची और दोनों छात्र आंदोलन की आड़ में अराजकता फैलाकर अपने मकसद में कामयाब रहे। हसीना भले कई अन्य मोर्चों पर असफल साबित रही हों, लेकिन उन्होंने इस्लामी कट्टपंथियों और भारत विरोधी ताकतों को नियंत्रित रखकर क्षेत्रीय स्थिरता जरूर सुनिश्चित की। अब कहा जा रहा है कि हसीना की पार्टी अवामी लीग को अंतरिम सरकार से दूर रखा जाएगा जबकि विपक्षी बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और प्रतिबंधित जमात ए इस्लामी सरकार की अगुवाई करेंगे।
जमात का पाकिस्तान के साथ गहरा गठजोड़ है और वह आईएसआई के समर्थन से हिंदू विरोधी अभियान चलता है जबकि बीएनपी भारत विरोधी मानसिकता से ओतप्रोत है। जमात का सत्ता में आना बांग्लादेशी हिंदुओं के लिए खतरे की घंटी है तो बीएनपी के सरकार में शामिल होने से भारत-बांग्लादेश संबंधों में खटास आने की आशंका पैदा कर रही है। जमात और बीएनपी की ही साजिश है कि जुलाई की शुरुआत हुए छात्र आंदोलन को अगस्त आते-आते तख्तापलट विद्रोह का स्वरूप दे दिया गया।
नई परिस्थितियों में भारत यह जरूर उम्मीद करेगा कि बांग्लादेश की आर्मी अंतरिम सरकार को नियंत्रण में रखेगी। शेख हसीना के शासन में बांग्लादेश राजनीतिक स्थायित्व के दौर में था जिसका भारत को सीधा फायदा पहुंचा। भारत ने तब बांग्लादेश के विकास में बड़ी भूमिका निभाई जिसका हमें फायदा अपने पूर्वोत्तर क्षेत्र में बहुत हद तक शांति कायम रख पाने में मिला। भारत-बांग्लादेश के बीच ऊर्जा और संपर्क साधनों पर साझेदारी तेजी से आगे बढ़ रही थी। इससे बांग्लादेश से लगी 4 हजार किलोमीटर की सीमा पर कमोबेश शांति कायम रही और तस्करी जैसी समस्या पर रोक लगी रही। अब भारत को चिंता सता रही है कि अंतरिम सरकार में बांग्लादेश इन मसलों पर कैसा व्यवहार करेगा।
भारत के लिए एक बड़ी चिंता की बात है कि कहीं कनाडा की तरह बांग्लादेश भारत विरोधी विदेशी तत्वों का अड्डा न बन जाए। 2021 में जब अफगानिस्तान में तख्तापलट हुआ और तालिबान की सत्ता आ गई तब भी भारत के सामने ऐसी ही विकट परिस्थिति पैदा हो गई थी। हालांकि, अब वहां कम से कम भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम नहीं दिया जा रहा है। अब बांग्लादेश में आतंकवादी, कट्टरपंथी तत्वों के उभार की पूरी आशंका है। जून महीने में मोदी-हसीना की मुलाकात हुई थी तो बांग्लादेश में कट्टरपंथी तत्वों पर लगाम लगाए रखने के उपायों की चर्चा हुई थी। दोनों ने बंग्लादेश के सशस्त्र बलों के आधुनिकीरण के लिए रक्षा औद्योगिक गलियारे की संभावना तलाशने की जरूरत पर बल दिया था।
भारत की एक बड़ी चिंता बांग्लादेश की नई शासन व्यवस्था में चीन की भूमिका को लेकर होगी। हसीना के शासन में चीन के साथ मजबूत आर्थिक संबंधों के बावजूद बांग्लादेश ने कभी भारत के हितों की अनदेखी नहीं की। चीन ने तीस्ता प्रॉजेक्ट में काफी दिलचस्पी दिखाई, बावजूद इसके हसीना ने यह प्रॉजेक्ट भारत को सौंपने का मन बनाया था। भारत और बांग्लादेश के बीच व्यापारिक संबंध भी नए स्तर को छू रहे थे। बांग्लादेश ने भारतीय अपतटीय गश्ती पोत खरीदने के साथ-साथ अपने मिग-29 विमानों और एमआई-17 हेलिकॉप्टरों के स्पेयर पार्ट्स की खरीद की बातचीत भी भारत के साथ आगे बढ़ा रहा था। एक महीना पहले ही बांग्लादेश ने कोलकाता स्थित जीआरएसई के साथ 800 टन वजनी उन्नत समुद्री पोत बनाने की डील की थी।