Monday, December 23, 2024
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जब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से एक मुख्यमंत्री ने लिया पंगा!

कहानी एक ऐसी घटना की जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से मुख्यमंत्री ने पंगा ले लिया था! 2 दिसंबर, 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रधानमंत्री बनने के अगले ही दिन इस बात पर विचार करने के लिए एक बैठक बुलाई गई कि पूर्व पीएम राजीव गांधी और उनके परिवार को एसपीजी सुरक्षा दी जाए या नहीं। तब कैबिनेट सचिव रहे टीएन शेषन ने सलाह दी कि राजीव गांधी को एसपीजी कैटेगरी की सिक्योरिटी दी जानी चाहिए। मगर, वीपी सिंह सरकार ने राजीव गांधी को सुरक्षा नहीं दी। इसी के साथ शेषन को कैबिनेट सचिव की जगह योजना आयोग का सदस्य बना दिया गया। 1990 में जब वीपी सिंह की सरकार गिर गई तब नए पीएम बने चंद्रशेखर ने उन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त बनने का प्रस्ताव भेजा। इसी के साथ देश में चुनाव सुधार की नई इबारत लिखी गई। जब टीएन शेषन को मुख्य चुनाव आयुक्त का प्रस्ताव मिला तो उन्होंने इसे फौरन लपका नहीं। उन्होंने इस बारे में पूर्व पीएम राजीव गांधी, पूर्व राष्ट्रपति आर वेंकटरमण और कांची के शंकराचार्य से इस बारे में सलाह ली। तीनों ने अपनी सहमति दे दी। शंकराचार्य ने कहा कि ये सम्मानजनक पद है। इसे लेना चाहिए।

टीएन शेषन चुनाव आयुक्त बनने से पहले पर्यावरण मंत्रालय में सचिव थे। उनके काम से खुश होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें सुरक्षा सचिव बना दिया। वो सुरक्षा सचिव से ज्यादा सिक्योरिटी एक्सपर्ट की तरह बन गए। एक बार उन्होंने राजीव गांधी मुंह से ये कहते हुए बिस्किट खींच लिया कि प्रधानमंत्री को वो कोई चीज नहीं खानी चाहिए, जिसकी पहले से जांच नहीं की गई हो। शेषन ने 2 अगस्त, 1993 को 17 पेज का आदेश जारी किया था। जिसमें उन्होंने कहा था कि जब तक सरकार चुनाव आयोग की शक्तियों को मान्यता नहीं देती, तब तक देश में कोई भी चुनाव नहीं कराया जाएगा।आईडेंटिटी कार्ड से चुनाव कराने की शुरुआत की तो तत्कालीन सरकार इसके विरोध में थी। तब शेषन ने रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपुल्स एक्ट के नियम-37 के तहत चुनाव रोकने की धमकी दी। आखिरकार कोर्ट ने मामला सुलझाया और फोटो आईडेंटिटी कार्ड जारी होने लगे। उनकी इस मांग पर सरकार को आखिरकार झुकना पड़ा। उनका कहना था कि मुझसे पहले मुख्य चुनाव आयुक्त कानून मंत्री के दफ्तर के बाहर बैठ कर मुलाकात के लिए इंतजार करना पड़ता था। उन्होंने अपने समय में चाहे वो प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव हों या बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव सबसे पंगा लिया।

शेषन बूथ कैप्चरिंग और बैलेट पेपर लूटने पर रोक लगाने में काफी हद तक कामयाब रहे। उन्होंने फर्जी वोटर आईडी बनाने पर रोक लगाई। इसके लिए फोटो आईडेंटिटी कार्ड जारी करवाए। पात्रता पूरी करने वालों को ही आईडी जारी करवाना शुरू किया। चुनाव आयोग की मशीनरी को ऑटोनॉमस करने का काम किया। रिश्वत रोकने, शराब बांटने, वोटर्स को लालच देने जैसे कामों को रोकने के लिए ऐसा किया गया। प्रत्याशियों के खर्चे की लिमिट तय की। लाउडस्पीकर से प्रचार करने पर पहले लिखित में अनुमित लेने को अनिवार्य किया।जब शेषन ने फोटो आईडेंटिटी कार्ड से चुनाव कराने की शुरुआत की तो तत्कालीन सरकार इसके विरोध में थी। तब शेषन ने रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपुल्स एक्ट के नियम-37 के तहत चुनाव रोकने की धमकी दी। आखिरकार कोर्ट ने मामला सुलझाया और फोटो आईडेंटिटी कार्ड जारी होने लगे।

चुनाव करारने के दौरान जरा सी लापरवाही पर आज चुनाव आयोग अफसरों के ट्रांसफर कर देता है। यह परिपाटी भी टीनए शेषन ही लेकर आए थे। उनके समय में लापरवाही बरतने या आचरण के विरुद्ध काम करने पर सीनियर पुलिस अधिकारियों से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों तक का ट्रांसफर कर दिया जाता था। नवंबर, 2022 की बात है, जब सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग में नियुक्तियों को लेकर पांच जजों की संविधान पीठ में सुनवाई चल रही थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, अब तक कई मुख्य चुनाव आयुक्त रहे हैं, मगर टीएन शेषन जैसा कोई कभी-कभार ही होता है। जब तक सरकार चुनाव आयोग की शक्तियों को मान्यता नहीं देती, तब तक देश में कोई भी चुनाव नहीं कराया जाएगा। उनकी इस मांग पर सरकार को आखिरकार झुकना पड़ा। उनका कहना था कि मुझसे पहले मुख्य चुनाव आयुक्त कानून मंत्री के दफ्तर के बाहर बैठ कर मुलाकात के लिए इंतजार करना पड़ता था।हम नहीं चाहते कि कोई उन्हें ध्वस्त करे। तीन लोगों मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्तों के नाज़ुक कंधों पर बड़ी शक्ति निहित है। हमें CEC के पद के लिए सबसे योग्य व्यक्ति खोजना होगा।

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