एक समय ऐसा भी था जब अटल बिहारी वाजपेई फिलीस्तीन को अपना दोस्त मानते थे! इजरायल के बनने की कहानी तब शुरू होती है, जब प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1917 में तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य की हार के बाद ब्रिटेन ने फिलिस्तीन पर कब्जा कर लिया। उस समय फिलिस्तीन में अरब मुस्लिम बहुसंख्यक तो यहूदी अल्पसंख्यक रूप में यहां पर रहते थे। उससे भी पहले ब्रिटेन का एक यहूदी नेता चीम वीजमैन ने 1907 में फिलिस्तीन के जाफा शहर में एक कंपनी बनाई। यहीं से यहूदियों के लिए फिलिस्तीन में जमीन खरीदने का सिलसिला शुरू हुआ। विरोध के बाद भी दुनिया भर से यहां यहूदी बसने के लिए आने लगे। हाल ही में फिलिस्तीन की सदस्यता को संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में भारी समर्थन मिला। भारत ने बीते शुक्रवार को UNGA के प्रस्ताव के मसौदे के पक्ष में मतदान किया। 1947 के समय जब भारत की आजादी की नींव रखी जा रही थी, उसी वक्त अंग्रेज भी फिलिस्तीन की समस्या को जस का तस छोड़कर चले गए। तब संयुक्त राष्ट्र संघ ने फिलिस्तीन को दो हिस्सों में बांटने को लेकर वोटिंग कराई। उस वक्त भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने फिलिस्तीन को बांटने का विरोध किया था। नेहरू अंग्रेजों की दो राष्ट्र के सिद्धांत के विरोधी थे। हालांकि, भारत के विभाजन के समय उन्होंने इस बात का ख्याल नहीं रखा। उस वक्त संयुक्त राष्ट्र में बहुमत से फिलिस्तीन को बांट दिया गया। फिलिस्तीन को दुनिया के नक्शे में स्थापित करने का काम किया उग्रवादी संगठन हमास के लीडर यासिर अराफात ने, जिनका दुनिया लोहा मानती थी। इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में भी फिलिस्तीन के साथ भारत के संबंध बेहतर रहे।
यासिर अराफात के मुख्य राजनीतिक सलाहकार हनी हसन के अनुसार, अराफात जहां भी जाते, वहां बैठने से पहले हर उस एंगल से सोचते कि कहां से उन पर गोली चलाई जा सकती थी। वो अचानक बैठने की जगह बदल लेते। वो एक जगह स्थिर होकर नहीं रहते थे। वो दाढ़ी भी नहीं बनाते थे।फिलस्तीन में अरब लोगों की बहुलता है और ज्यादातर आबादी मुस्लिम है। वहां की आबादी 20 लाख से ज्यादा है। 1947 फिलस्तीन को यहूदी और अरब राज्य यानी इजरायल और फिलीस्तीन में बांटने के बाद 6 मार्च, 1948 को अरब और यहूदियों के बीच पहली लड़ाई हुई।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, अराफात हमेशा अपनी कमर में पिस्टल लटकाकर चलते थे। जब उन्हें पहली बार संयुक्त राष्ट्र में भाषण देने का मौका मिला तो उन्हें सभागार में जाने से रोक दिया गया। बात इस पर बनी कि कि वो अपनी खाकी वर्दी पर पिस्टल रखने वाला कवर लगाए रहेंगे, मगर उनमें कोई पिस्टल नहीं होगी। माकपा नेता सीताराम येचुरी ने भी काहिरा में अराफात से मुलाकात का जिक्र किया था। वो मुझसे गले मिले और कहा कि ऐसे तो आपकी कमर से कोई भी पिस्टल निकाल सकता है। आपको अलर्ट रहना चाहिए। इस पर उन्होंने कहा कि मेरी पिस्टल में गोली नहीं होती है। मगर मैं इसे इसलिए रखता हूं, ताकि कोई मुझ पर गोली चलाने से पहले सौ बार सोचे।
1983 में भारत में जब गुटनिरपेक्ष देशों का शिखर सम्मेलन हुआ तो हमास के लीडर यासिर अराफात इस बात पर खफा हो गए कि उनसे पहले जॉर्डन के शाह को भाषण क्यों देने दिया गया। उस सम्मेलन में सेक्रेटरी जनरल रहे भारत के पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने अपनी किताब में इसका जिक्र करते हुए कहा है कि मुझे पता चला कि अराफात बहुत नाराज हैं और तुरंत ही फ्लाइट से वापस जाना चाहते हैं। मैंने इंदिरा जी को फ़ोन किया और कहा कि आप फौरन क्यूबा के राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो के साथ विज्ञान भवन आइए। कास्त्रो साहब ने आते ही अराफात से पूछा कि क्या आप इंदिरा को अपना दोस्त मानते हैं? तब अराफात ने कहा-मैं उन्हें दोस्त नहीं, अपनी बड़ी बहन मानता हूं। तब कास्त्रो ने कहा-छोटे भाई की तरह बात मानो और सम्मेलन में हिस्सा लो। अराफात मान गए।
जब-जब इजरायल और फिलीस्तीन के बीच जंग छिड़ती है तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का 46 साल पुराना वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो जाता है। दरअसल, वायरल वीडियो 1977 में जनता पार्टी की विजय रैली का है, जिसमें वाजपेयी फिलिस्तीन का खुलकर समर्थन कर रहे हैं। वह कहते हैं कि मध्य पूर्व के बारे में यह स्थिति साफ है कि अरबों की जिस जमीन पर इजरायल कब्जा करके बैठा है, वो जमीन उसको खाली करना होगी।
बीते साल अक्टूबर में इजरायल और हमास में जंग के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास से फोन पर बात की थी और गाजा के अल-अहली अस्पताल में हुए विस्फोट में जान गंवाने वाले लोगों के प्रति संवेदना जताई थी। फरवरी में लोकसभा में सरकार ने फिलिस्तीन के प्रति बदले रुख के चलते हुए सवालों पर जवाब दिया। जिसमें कहा गया कि फिलिस्तीन के प्रति भारत की नीति दीर्घकालिक और अपरिवर्तित रही है। हमने एक संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य फिलिस्तीन राष्ट्र की स्थापना के लिए बातचीत के माध्यम से दो राष्ट्र समाधान का समर्थन किया है, जो सुरक्षित एवं मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर इजरायल के साथ मिलकर शांतिपूर्ण रूप से रह रहा हो।