हाल ही में चीन ने मालदीव को अपने कर्ज जाल में फंसा लिया है! चीन के गुलाम मोहम्मद मुइज्जू ने मालदीव का राष्ट्रपति बनते ही शी जिनपिंग के प्रति अपनी वफादारी दिखानी शुरू कर दी थी। पद पर बैठते ही वे माले को दशकों के पुराने दोस्त भारत से दूर करते हुए चीन के करीब ले जाने लगे। हिंद महासागर में रणनीतिक महत्व वाले मालदीव के इस कदम से भारत के साथ ही अमेरिका में भी चिंता के सुर उठे। लेकिन मालदीव और चीन की इस दोस्ती में अब तक सिर्फ फायदा सिर्फ बीजिंग का ही दिखाई दे रहा है। इसके बदले माले को चीन से भारी भरकम कर्ज का बोझ मिला है। इसके पहले अब्दुल्ला यामीन की सरकार के समय मालदीव पहली बार चीन के लालच में आया था और आज वह उसके कर्ज जाल में पूरी तरह फंस गया है। मालदीव 2024 में चीन के बेल्ड एंड रोड इनिशिएटिव (भारतीय सैनिक मालदीव में भारत द्वारा दिए गए हेलीकॉप्टरों और डोर्नियर विमान के संचालन में सहायता के लिए थे, लेकिन मुइज्जू ने इसे विदेशी सैनिकों की मौजूदगी बताकर प्रचारित किया। इसी 9 मई को भारतीय सैनिकों का आखिरी दल मालदीव से बाहर आ गया। इसकी जगह भारत ने नागरिक तैनाती की है।) प्रोजेक्ट का हिस्सा बना था। तब से मालदीव चीनी बैंकों से 1.4 अरब डॉलर का कर्ज ले चुका है। यानी मालदीव का कुल कर्ज का 20 प्रतिशत (1/5) हिस्सा अकेले से चीन से लिया हुआ है। इसके चलते अब मालदीव को चीन की हर बात पर झुके रहना मजबूरी बनती जा रही है। मालदीव को दिए कर्जों के दम पर ही अब चीन के जासूसी जहाज मालदीव के बंदरगाह पर रुकने लगे हैं। हाल ही में चीनी जासूसी जहाज कुछ दिनों के अंतर पर दो बार मालदीव के बंदरगाह पर पहुंचा था।
मालदीव को अपने पक्ष में करना चीन के लिए फायदे का सौदा है। मालदीव हिंद महासागर में सबसे व्यस्त समुद्री व्यापार मार्गों में एक पर स्थित है, जिसके माध्यम से 80 प्रतिशत चीनी तेल का आयात होता है। विश्लेषकों का मानना है कि बीजिंग माले में मैत्रीपूर्ण क्षेत्रीय सैन्य उपस्थिति चाहता है, जिससे फारस की खाड़ी में तेल तक उसकी पहुंच को सुरक्षित रखने में मदद मिल सके। मुइज्जू सरकार के आने के बाद चीन और मालदीव के बीच हुए सैन्य समझौते को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। इस समझौते के तहत चीन मालदीव की सेना को प्रशिक्षित करेगा।
2023 में हुए मालदीव के राष्ट्रपति चुनाव में मुइज्जू ने ‘इंडिया आउट’ का नारा दिया था। अप्रैल 2024 में हुए संसदीय चुनाव में मुइज्जू की पार्टी ने भारी बहुमत के साथ उनका चीन समर्थक एजेंडा और मजबूत हो गया। राष्ट्रपति बनने के बाद मुइज्जू ने मालदीव में आपदा और राहत में मदद के लिए तैनात भारतीय सैन्य अधिकारियों की वापसी पर जोर दिया। भारतीय सैनिक मालदीव में भारत द्वारा दिए गए हेलीकॉप्टरों और डोर्नियर विमान के संचालन में सहायता के लिए थे, लेकिन मुइज्जू ने इसे विदेशी सैनिकों की मौजूदगी बताकर प्रचारित किया। इसी 9 मई को भारतीय सैनिकों का आखिरी दल मालदीव से बाहर आ गया। इसकी जगह भारत ने नागरिक तैनाती की है।
हालांकि, अब मुइज्जू को चीन का कर्ज जाल समझ आने लगा है। इसी महीने मालदीव के विदेश मंत्री मूसा जमीर भारत पहुंचे थे और कर्ज चुकाने में राहत की मांग की थी, जिसे नई दिल्ली ने मंजूर कर लिया है। बता दें कि इसके बदले माले को चीन से भारी भरकम कर्ज का बोझ मिला है। इसके पहले अब्दुल्ला यामीन की सरकार के समय मालदीव पहली बार चीन के लालच में आया था और आज वह उसके कर्ज जाल में पूरी तरह फंस गया है। मालदीव 2024 में चीन के बेल्ड एंड रोड इनिशिएटिव प्रोजेक्ट का हिस्सा बना था। तब से मालदीव चीनी बैंकों से 1.4 अरब डॉलर का कर्ज ले चुका है। बीजिंग माले में मैत्रीपूर्ण क्षेत्रीय सैन्य उपस्थिति चाहता है, जिससे फारस की खाड़ी में तेल तक उसकी पहुंच को सुरक्षित रखने में मदद मिल सके। इसी 9 मई को भारतीय सैनिकों का आखिरी दल मालदीव से बाहर आ गया। इसकी जगह भारत ने नागरिक तैनाती की है।मुइज्जू सरकार के आने के बाद चीन और मालदीव के बीच हुए सैन्य समझौते को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।इसके उलट मालदीव में चीन के राजदूत ने पिछले सप्ताह ही बयान दिया कि बीजिंग का माले के कर्ज पुनर्गठन का कोई इरादा नहीं है।