हाल ही में भारत UN की बैठक में शामिल हो गया है! दोहा में अफगानिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र के तीसरे सम्मेलन में भारत समेत 25 देशों ने शिरकत की। एक जुलाई को खत्म हुए इस दो दिवसीय सम्मेलन में पहली बार तालिबान के अधिकारी भी शामिल हुए। तालिबान अंतरराष्ट्रीय समुदाय से काबुल में अपनी हुकूमत की मान्यता चाहता है। लेकिन महिलाओं की शिक्षा और नौकरी पर लगाए गए प्रतिबंधों को हटाने को तैयार नहीं है। मई 2023 और फरवरी 2024 में हुई पिछली बैठकों में तालिबान शामिल नहीं हुआ था। इस सम्मेलन में अफगान महिलाओं को शामिल नहीं किए जाने पर मानवाधिकार संगठनों ने कड़ी आलोचना की है। भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान डिवीजन के संयुक्त सचिव जेपी सिंह ने किया। भारत, तालिबान के साथ बेहद एहतियात से आगे बढ़ रहा है। भारत, अफगानिस्तान में मानवीय सहायता पहुंचाने और अपनी सुरक्षा जरूरतों के लिए तालिबान के साथ मिलकर काम कर रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि सभी पक्षों को एक-दूसरे पर भरोसा बनाने की जरूरत है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बातचीत ईमानदारी और सिद्धांतों पर आधारित होनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र चार्टर और विभिन्न मानवाधिकार संधियों के सिद्धांत जिनका अफगानिस्तान एक पक्षकार है।लेकिन वह ऐसा कुछ नहीं करना चाहता जिससे लगे कि वह काबुल में तालिबान सरकार को आधिकारिक मान्यता देने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। भारत सरकार अफगानिस्तान की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र की बातचीत के पिछले दौरों में भी शामिल हुई थी।
भारत का मानना है कि अफगानिस्तान से सटे देश होने के नाते, इसमें उसके जायज आर्थिक और सुरक्षा हित शामिल हैं। भारत ने अफगानिस्तान में 3 बिलियन डॉलर से ज्यादा का निवेश किया है। भारत इस समय पूरे देश के सभी 34 प्रांतों में पानी, संपर्क, कृषि, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में 490 परियोजनाओं पर काम कर रहा है। इस बैठक का उद्देश्य तालिबान को मान्यता दिलाना नहीं था, बल्कि अफगान लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के तरीके तलाशना था। संयुक्त राष्ट्र और अन्य देशों ने इस बातचीत के जरिए तालिबान को यह समझाने की कोशिश की गई कि मानवाधिकार और नागरिक अधिकार काबुल शासन के लिए कोई आंतरिक मामला नहीं हो सकते। अफगानिस्तान ने अतीत में ऐसे मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय संधियों पर हस्ताक्षर किए हैं। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि तालिबान जोर देकर कहता रहा है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय महिलाओं और बच्चों के साथ काबुल के व्यवहार से परे देखे। वो राजनीतिक और प्रगतिशील संबंध बनाने के उनके प्रयासों का जवाब दे।
राजनीतिक मामलों के लिए संयुक्त राष्ट्र अंडर सेकेट्री जनरल रोजमेरी डिकारलो ने बैठक के बाद कहा कि मानवाधिकार, खासकर अफगान महिलाओं और लड़कियों के अधिकार, और समाज के सभी वर्गों को शामिल करना, आगे भी सभी चर्चाओं का अभिन्न अंग रहेगा। उन्होंने यह भी कहा कि सभी पक्षों को एक-दूसरे पर भरोसा बनाने की जरूरत है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बातचीत ईमानदारी और सिद्धांतों पर आधारित होनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र चार्टर और विभिन्न मानवाधिकार संधियों के सिद्धांत जिनका अफगानिस्तान एक पक्षकार है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, तालिबान ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के उस आह्वान को सुना जिसमें कहा गया था कि सार्वजनिक जीवन के सभी पहलुओं में महिलाओं और नागरिक समाज को शामिल किया जाए, भारत, अफगानिस्तान में मानवीय सहायता पहुंचाने और अपनी सुरक्षा जरूरतों के लिए तालिबान के साथ मिलकर काम कर रहा है। लेकिन वह ऐसा कुछ नहीं करना चाहता जिससे लगे कि वह काबुल में तालिबान सरकार को आधिकारिक मान्यता देने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। भारत सरकार अफगानिस्तान की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र की बातचीत के पिछले दौरों में भी शामिल हुई थी।भले ही वे दोहा वार्ता में उनकी भागीदारी की अनुमति न दें। बता दें कि भारत इस समय पूरे देश के सभी 34 प्रांतों में पानी, संपर्क, कृषि, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में 490 परियोजनाओं पर काम कर रहा है। इस बैठक का उद्देश्य तालिबान को मान्यता दिलाना नहीं था, बल्कि अफगान लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के तरीके तलाशना था। संयुक्त राष्ट्र और अन्य देशों ने इस बातचीत के जरिए तालिबान को यह समझाने की कोशिश की गई कि मानवाधिकार और नागरिक अधिकार काबुल शासन के लिए कोई आंतरिक मामला नहीं हो सकते। तालिबान के मुताबिक, बैठक में एक बड़ी उपलब्धि यह रही कि इस बात पर सहमति बनी कि सभी देश अफगानिस्तान का समर्थन करना चाहते हैं। बैंकिंग और आर्थिक गतिविधियों पर लगे प्रतिबंधों को हटाने का भी वादा किया गया।