जब राजा कामाख्या नारायण सिंह ने प्रधानमंत्री नेहरू को दी थी चुनौती!

0
250

एक ऐसा समय जब राजा कामाख्या नारायण सिंह ने प्रधानमंत्री नेहरू को चुनौती दी थी! ब्रिटिश हुकूमत की समाप्ति के पहले के पहले ही बिहार में गैर कांग्रेस राजनीतिक दल की बुनियाद रखी जा चुकी थी। ये बुनियाद देश के सबसे छोटे राजघारानों में से एक रामगढ़ रियासत के तत्कालीन राजा कामाख्या नारायण सिंह ने 1946 में ही रखने का काम किया था। हालांकि आजादी की लड़ाई के दौरान राजा कामाख्या नारायण सिंह ने कांग्रेस पार्टी को बढ़चढ़ कर मदद की। रामगढ़ में 1942 में कांग्रेस अधिवेशन करवाने में भी उनकी प्रमुख भूमिका रही। महात्मा गांधी के आह्वान पर अपना राज उन्हें समर्पित करने की पेशकश तक कर डाली थी। लेकिन आजादी के पहले एक ऐसी घटना हुई, जिससे राजा कामाख्या नारायण सिंह का कांग्रेस से मोहभंग हो गया। इस संबंध में जानकार बताते है कि आजादी को आजादी मिलने के पहले राजा कामाख्या नारायण सिंह नई दिल्ली में पंडित नेहरू से मिलने गए थे, लेकिन पं. नेहरू उस दौरान किसी अन्य कार्यक्रम में व्यस्त रहने के कारण कामाख्या नारायण सिंह से नहीं मिल पाएं। ये बात राजा कामाख्या नारायण सिंह को इस तरह से चुभ गई कि उन्होंने पं. नेहरू के साथ ही पूरे कांग्रेस नेतृत्व को ही चुनौती दे डाली। पं. नेहरू के व्यवहार से कांग्रेस से मोहभंग हो जाने के बाद राजा कामख्या नारायण सिंह ने वापस लौट कर 1946 में सक्रिय राजनीति में कदम रखने का फैसला लिया। राजा बहादुर कामाख्या नारायण सिंह ने देश में पहली बार देश में ‘छोटानागपुर संतालपरगना जनता पार्टी’ का संगठन खड़ा किया। 1952 के प्रथम आम चुनाव की जब शुरुआत हुई, तब पंडित जवाहर लाल नेहरु ने रांची के मोरहाबादी मैदान में अपने भाषण में कामाख्या बाबू की पार्टी को जमींदारों की पार्टी करार दिया। पं. नेहरू ने जनता से इस पार्टी को वोट नहीं देने की अपील की गई। इसके बावजूद उनकी पार्टी के 11 उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल रहे। 1957 में के विधानसभा चुनाव में भी राजा रामगढ़ की पार्टी को बिहार के छोटानागपुर-संताल परगना इलाके में अच्छी सफलता मिली। जबकि 1960 तक उनकी पार्टी के 7 सांसद हो गए और 50 विधायक हो गए। इसके तहत बिहार विधानसभा में उन्हें नेता प्रतिपक्ष का दर्जा मिल गया। 1967-68 में बिहार में विपक्ष की सरकार बनाने में भी राजा रामगढ़ की बड़ी भूमिका रही।

राजा रामगढ़ का उस वक्त ऐसा प्रभाव था कि वे एक ही बार में चार स्थानों से विधायक निर्वाचित हुआ करते थे। छोटानागपुर-संथाल परगना प्रमंडल में उनके परिवार के ही भाई कुंवर बसंत नारायण सिंह, माता शशांक मंजरी देवी, पत्नी ललिता राजलक्ष्मी, पुत्र टिकैत इंद्र जितेंद्र नारायण सिंह कई बार सांसद और विधायक बने।1952 के प्रथम आम चुनाव की जब शुरुआत हुई, तब पंडित जवाहर लाल नेहरु ने रांची के मोरहाबादी मैदान में अपने भाषण में कामाख्या बाबू की पार्टी को जमींदारों की पार्टी करार दिया। पं. नेहरू ने जनता से इस पार्टी को वोट नहीं देने की अपील की गई। इसके बावजूद उनकी पार्टी के 11 उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल रहे। 1957 में के विधानसभा चुनाव में भी राजा रामगढ़ की पार्टी को बिहार के छोटानागपुर-संताल परगना इलाके में अच्छी सफलता मिली। जबकि 1960 तक उनकी पार्टी के 7 सांसद हो गए और 50 विधायक हो गए। इसके तहत बिहार विधानसभा में उन्हें नेता प्रतिपक्ष का दर्जा मिल गया। 1967-68 में बिहार में विपक्ष की सरकार बनाने में भी राजा रामगढ़ की बड़ी भूमिका रही। पहली बार बिहार में गैर कांग्रेसी सरकार गठन होने पर राजा रामगढ़ कामाख्या नारायण सिंह, कुंवर बसंत नारायण सिंह और ललिता राजलक्ष्मी बिहार सरकार में मंत्री बने।

पुराने हजारीबाग जिले यानी चतरा, हजारीबाग, कोडरमा, गिरिडीह, बोकारो और रामगढ़ में ये जिस किसी को भी चुनाव में खड़ा कर देते थे, वे जीतते रहे।1952 के प्रथम आम चुनाव की जब शुरुआत हुई, तब पंडित जवाहर लाल नेहरु ने रांची के मोरहाबादी मैदान में अपने भाषण में कामाख्या बाबू की पार्टी को जमींदारों की पार्टी करार दिया। पं. नेहरू ने जनता से इस पार्टी को वोट नहीं देने की अपील की गई। इसके बावजूद उनकी पार्टी के 11 उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल रहे। 1957 में के विधानसभा चुनाव में भी राजा रामगढ़ की पार्टी को बिहार के छोटानागपुर-संताल परगना इलाके में अच्छी सफलता मिली। जबकि 1960 तक उनकी पार्टी के 7 सांसद हो गए और 50 विधायक हो गए। इसके तहत बिहार विधानसभा में उन्हें नेता प्रतिपक्ष का दर्जा मिल गया। 1967-68 में बिहार में विपक्ष की सरकार बनाने में भी राजा रामगढ़ की बड़ी भूमिका रही। जिस समय कांग्रेस की तूती बोलती थी, उसके दिग्गज नेता कामाख्या नारायण सिंह के विरूद्ध कैंप करते, फिर भी कांग्रेस इस क्षेत्र में चुनाव नहीं जीत पाती थी। उनका प्रभाव इतना था कि उनकी पार्टी के उम्मीदवार धनबाद और आरा छपरा से भी चुनाव जीतते थे।