जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस को हुआ था प्यार !

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एक ऐसा समय जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस को प्यार हुआ था! यह बात तब की है जब आजाद हिंद फौज के नेता सुभाष चंद्र बोस ऑस्ट्रिया में थे, जहां वह भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े अनुभवों पर एक किताब लिख रहे थे-द इंडियन स्ट्रगल। वह रोज कुछ न कुछ लिखते। मगर, वो चाहते थे कि कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाए जो रोज उनकी बातों को तेजी से लिख सके। अपने इसी मकसद को पूरा करने के दौरान सुभाष चंद्र बोस की मुलाकात एक खूबसूरत ऑस्ट्रियाई लड़की से हुई, जिसे वो पहली ही नजर में दिल दे बैठे। सुभाष के प्रेम संबंध इस देश में पनपे, जिसका नतीजा दोनों की शादी में हुआ। सुभाष चंद्र बोस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हीरो रहे हैं, जो इस वक्त ऑस्ट्रिया के दो दिवसीय दौरे पर हैं। किसी प्रधानमंत्री की यह 40 साल में यह पहला ऑस्ट्रिया दौरा है। इससे पहले 1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस देश की यात्रा की थी। 1930 की बात है जब सुभाष चंद्र बोस कारावास में ही थे कि चुनाव में उन्हें कोलकाता का महापौर चुना गया। इसलिए सरकार उन्हें रिहा करने पर मजबूर हो गई। 1932 में सुभाष को फिर से कारावास हुआ। इस बार उन्हें अल्मोड़ा जेल में रखा गया। अल्मोड़ा जेल में उनकी तबियत फिर से खराब हो गई। तब डॉक्टरों की सलाह पर सुभाष को यूरोप जाना पड़ा। 1933 से लेकर 1936 तक सुभाष यूरोप में ही रहे। इस दौरान वह इटली के नेता मुसोलिनी से मिले, जिन्होंने भारत की आजादी में मदद करने की बात कही। आयरलैंड के नेता डी वलेरा सुभाष के अच्छे दोस्त बन गए। जिन दिनों सुभाष यूरोप में थे उन्हीं दिनों जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू का ऑस्ट्रिया में निधन हो गया। सुभाष ने वहां जाकर जवाहरलाल नेहरू को सांत्वना भी दी। 1934 में वह इलाज के लिए ऑस्ट्रिया रुके थे, जब ऑस्टियाई लड़की एमिली से उनकी मुलाकात हुई।

सुभाष चंद्र बोस जब ऑस्ट्रिया लड़की एमिली शेंकल से एक इंटरव्यू के दौरान चंद मिनटों की मुलाकात में सुभाष उसे अपना दिल बैठे थे। सुभाष उस वक्त अपनी किताब ‘द इंडियन स्ट्रगल’ किताब उनकी इसी लिखने की आदत का नतीजा थी। हालांकि, अपनी इस किताब को लिखने के लिए उन्हें किसी टाइपिस्ट की जरूरत थी, जो तेजी से उनकी बातों को लिख सके। जब यह काम शुरू हुआ तो उस वक्त सुभाष ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में थे। वहां उनके एक दोस्त डॉ. माथुर ने इस काम में मदद की और दो लोगों को सुभाष के पास टाइपिस्ट की नौकरी के लिए भेज दिया। इनमें से एक थी 23 साल की खूबसूरत ऑस्ट्रियाई लड़की एमिली शेंकल, जिसे 37 साल के सुभाष पहली ही नजर में दिल दे बैठे थे। इसी दौरान दोनों के बीच प्यार पनपा।

सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई शरत चंद्र बोस के पोते सौगत बोस की किताब ‘हिज मैजेस्टी अपोनेंट- सुभाष चंद्र बोस एंड इंडियाज स्ट्रगल अगेंस्ट एंपायर’ में लिखा है कि एमिली से मुलाकात के बाद सुभाष में बड़ा बदलाव आया। 26 जनवरी, 1910 को ऑस्ट्रिया के एक कैथोलिक परिवार में जन्मी एमिली कहती हैं’ सुभाष ने मुझे प्रपोज किया और हमारे रिश्ते रोमांटिक होते गए। 1934 से मार्च 1936 के बीच ऑस्ट्रिया और चेकेस्लोवाकिया में रहने के दौरान हमारे रिश्तों में गहराई आनी लगी।’

एमिली के पिता को शुरुआत में अपनी बेटी का किसी भारतीय के यहां काम करना या उससे रिश्ता रखना बेहद नागवार गुजरा था। हालांकि, जब उनकी मुलाकात सुभाष से हुई तो वह भी उनके करिश्माई व्यक्तित्व के मुरीद हो गए। सुभाष ने एमिली को कई पत्र लिखा था, जिसे एमिली ने खुद शरत चंद्र बोस के बेटे शिशिर कुमार बोस की पत्नी कृष्णा बोस को सौंपा था। इन्हीं पत्रों में कुछ लवलेटर भी थे, जिनसे सुभाष और एमिली के रोमांटिक रिश्ते की बात जाहिर होती है। 1910 को जन्मी एमिली के साथ सुभाष चंद्र बोस ने 12 साल बिताए थे। दोनों का प्यार अटूट था।

सुभाष ने एमिली को 5 मार्च, 1936 को एक लेटर लिखा था। इस पत्र में वह कहते हैं-‘माई डार्लिंग, जैसे वक्त आने पर बर्फीला पहाड़ भी पिघल जाता है, वैसे ही मेरी भावनाएं भी हैं। …मुझे नहीं मालूम कि आने वाले समय में क्या होगा…संभव हो कि मुझे पूरी जिंदगी जेल में बितानी पड़े। मुझे गोली मार दी जाए या फांसी दे दी जाए। मैं तुम्हें कभी देख नहीं पाऊं, मगर मेरा यकीन करो, तुम हमेशा मेरे दिल में राज करोगी। मेरी सोच और मेरे सपनों में रहोगी। इस जन्म में हम नहीं मिल पाए तो अगले जन्म में मैं तुम्हारे साथ रहूंगा।’

बाद में सांसद रहीं और शरत चंद्र बोस के बेटे शिशिर कुमार बोस की पत्नी कृष्णा बोस ने सुभाष और एमिली की प्रेम कहानी पर ‘ए ट्रू लव स्टोरी- एमिली एंड सुभाष’ लिखी थी। सुभाष और एमिली का साथ 1945 तक महज 12 साल का ही रहा। दोनों को 29 नवंबर, 1942 एक बेटी हुई, जिसका नाम दोनों ने इटली के क्रांतिकारी नेता गैरीबाल्डी की ब्राजीली मूल की पत्नी अनीता गैरीबाल्डी के सम्मान में रखा, जो गुरिल्ला युद्ध में माहिर थीं।

सुभाष बर्लिन में रिबेन ट्रोप जैसे जर्मन नेताओं से मिले। उन्होंने जर्मनी में भारतीय स्वतन्त्रता संगठन और आजाद हिंद रेडियो की स्थापना की। इसी दौरान सुभाष नेताजी के नाम से जाने जाने लगे। जर्मन सरकार के एक मन्त्री एडॅम फॉन ट्रॉट सुभाष के अच्छे दोस्त बन गए। 29 मई 1942 के दिन सुभाष जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर से मिले। उन्होंने हिटलर से उनकी आत्मकथा में लिखे गए उस अंश को निकालने को कहा, जिसमें भारतीयों की बुराई की गई थी।

पीएम मोदी ने इसी साल 23 जनवरी को पराक्रम दिवस के अवसर पर महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस को श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर हम उनके जीवन और साहस का सम्मान करते हैं। देश की स्वतंत्रता के लिए उनका अटूट समर्पण आज भी प्रेरित करता है। सरकार ने साल 2021 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्‍मदिन 23 जनवरी को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया था। सुभाष ने जब विदेश में आजाद हिंद फौज सरकार बनाई तो उन्होंने यह चर्चित नारा दिया था कि तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।