Thursday, September 19, 2024
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जब अशांति के साथ हुई नई संसद की पहली शुरुआत!

हाल ही में नई संसद की पहली शुरुआत अशांति के साथ हुई है! प्रोटेम स्पीकर भर्तृहरी मेहताब ने लोकसभा अध्यक्ष के रूप में ओम बिरला के चयन की घोषणा की तो राहुल गांधी बधाई देने पहुंच गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राहुल को आते देख इशारे से कहा- आइए। राहुल पहुंचे तो पहले बिरला और फिर मोदी से हाथ मिलाया। तब तक संसदीय कार्य मंत्री की हैसियत से किरेन रिजिजू भी आए और तीनों ने मिलकर ओम बिरला को अध्यक्ष के आसन तक पहुंचाया। वहां भर्तृहरि मेहताब ने उनका स्वागत किया और उनके लिए आसन छोड़ दिया। फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी और आखिर में किरेन रिजिजू ने अध्यक्ष का अभिवादन किया। तब ऐसा लगा जैसे अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बीच बातचीत टूटने के बाद राहुल गांधी का पीएम मोदी का नाम ले-लेकर हमले से सत्ता पक्ष और विपक्ष में जो खाई पैदा हुई, वो पट चुकी है। लेकिन कुछ ही समय बाद ऐसी स्थिति बन गई जिससे लगा कि क्या संसद में शांति की उम्मीद की भी जा सकती है? हुआ ये कि आसन पर विराजमान होते ही लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सदन के नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सदन में विपक्ष के नेता राहुल गांधी एवं विभिन्न दलों के प्रमुख सांसदों का आह्वान किया। प्रधानमंत्री के 10 मिनट से ज्यादा के बधाई भाषण के बाद राहुल गांधी, अखिलेश यादव समेत कई विपक्षी सांसदों ने संक्षेप में अध्यक्ष को बधाई दी। राहुल गांधी ने पहले वाक्य में बिरला को बधाई तो दी, लेकिन तुरंत यह भी कहने लगे कि अध्यक्ष महोदय को विपक्ष को भारतीयों की आवाज सदन में पहुंचाने का पर्याप्त मौका देना चाहिए। अखिलेश यादव ने भी ‘बहुत-बहुत बधाई’ देकर राहुल गांधी की अपील का ही समर्थन किया। बल्कि अखिलेश ने तो यहां तक कहा कि आपका अंकुश विपक्ष पर तो रहता ही है, सत्ता पक्ष पर भी रहे। बधाई की औपचारिकता पूरी होने के बाद अध्यक्ष ओम बिरला ने अपना एक वक्तव्य दिया और सदन का माहौल तुरंत बदल गया।

दरअसल, लोकसभा अध्यक्ष ने अपने पहले वक्तव्य में 50 साल पहले तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा देश पर थोपे गए आपातकाल की जोरदार निंदा की। उन्होंने लंबे-चौड़े वक्तव्य में कई बार ‘कांग्रेस’ और ‘काला दिन’ का जिक्र किया। इस पर कांग्रेस पार्टी के सांसद खड़े हो गए और शोर करने लगे। हालांकि, उन्हें अपने गठबंधन साथियों से ही समर्थन नहीं मिला। सपा, टीडीपी और टीएमसी संसद ने आपातकाल पर अध्यक्ष के वक्तव्य का समर्थन किया और अपनी सीट पर बैठे रहे। शोर-शराबे के बीच लोकसभा अध्यक्ष ने अपना वक्तव्य पूरा किया और तुरंत अगले दिन गुरुवार के लिए सदन की कार्यवाही स्थगित करने की घोषणा कर दी। थोड़ी देर पहले जिस सदन में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच ‘सब चंगा सी’ जैसा माहौल दिखा था, वह तुरंत बदल गया और शोर-शराबे और हंगामे से सदन गूंज उठा।

सदन की कार्यवाही स्थगित होने के बाद सत्ता पक्ष के सांसदों ने संसद के मकर द्वार पर तख्ती-पट्टी लेकर आपातकाल के खिलाफ नारेबाजी की। उन्होंने आपातकाल के लिए कांग्रेस पार्टी से माफी की मांग की। बैनरों में तरह-तरह के नारे लिखे थे। एक नारा था- आपातकाल को न हम भूलेंगे, न माफ करेंगे और ना फिर कभी ऐसा होने देंगे। मोदी सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों समेत सत्ता पक्ष के सांसदों ने जो बैनर थाम रखे थे, उनमें ‘कुछ चीजें कभी नहीं बदलतीं’, ‘तानाशाही की मानसिकता कांग्रेस की असलियत है’ जैसे नारे लिखे हुए थे। सभी ने नारे लगाए, ‘माफी मांगो, माफी मांगो, इमर्जेंसी के लिए माफी मांगो।’

दरअसल, संपूर्ण विपक्ष और खासकर कांग्रेस पार्टी ने चुनावों में ‘संविधान बचाओ’ का खूब नारा लगाया। विपक्ष ने मतदाताओं के मन में भय पैदा करने की कोशिश की कि अगर मोदी सरकार सत्ता में लौटी तो संविधान बदलकर आरक्षण खत्म कर देगी। इसका खासकर उत्तर प्रदेश में खासा असर हुआ और बीजेपी की सीटें आधी हो गईं। इससे उत्साहित विपक्ष और खासकर राहुल गांधी संवाददाता सम्मेलनों से लेकर संसद तक संविधान की प्रतियां लहराने लगे। राहुल गांधी समेत तमाम विपक्षी सासंदों ने पद की शपथ लेते वक्त संविधान की प्रति हाथ में थामे रखी। इस पर सत्ता पक्ष को जवाब देना था। फिर 25 जून की तारीख भी आई। यह वही तारीख थी जब 50 वर्ष पहले इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने देश में आपातकाल लागू किया था। बीजेपी ने ‘संविधान की रट’ के जवाब में कांग्रेस को आपातकाल से घेरा। सवाल है कि क्या अब विपक्ष संविधान पर सरकार को घेरना छोड़ेगी? अगर नहीं तो क्या संसद में शांति की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए?

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