जब संविधान में शपथ को लेकर बनाए गए नियम?

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संविधान में भी शपथ को लेकर कई नियम बनाए गए है! पहले संशोधन के फलस्वरूप एक बहुत महत्वपूर्ण संविधानिक प्रश्न उठता है और वह यह है कि क्या मंत्रियों को सदस्यों की हैसियत से नहीं बल्कि मंत्रियों की हैसियत से, एच्चे हृदय से काम करना चाहिये या नहीं। सभा कृपा करके यह देखें कि घोषणाओं के आठ प्रपत्र हैं। संघ के मंत्रियों के सम्बन्ध में दो पत्र हैं। प्रपत्र 1 और प्रपत्र 21 पहली शपथ पद- शपथ है और दूसरी शपथ गोपनीयता शपथ है। इसके अतिरिक्त राज्यों के मंत्रियों के सम्बन्ध में भी दो प्रपत्र हैं, अर्थात् प्रपत्र 5 और प्रपत्र 6, जिनमें से एक पद शपथ के सम्बन्ध में और दूसरा गोपनीयता – शपथ के सम्बन्ध में है। इन सभी दशाओं में मंत्रियों को अपने कर्त्तव्यों का पालन करने के लिये “सत्यनिष्ठा” से शपथ लेनी है अथवा प्रतिज्ञान करना है और यह आवश्यक नहीं है कि वह यह बच्चे हृदय से कर। यह विचार किया जा सकता है कि “सच्चे हृदय से” शब्दों को निकाल देने से वर्तमान प्रथा में कोई अन्तर नहीं आयेगा। माननीय सदस्यों से मेरा अनुरोध है कि संसद के सदस्यों तथा न्यायाधीशों के लिये जो शपथों के प्रपत्र रखे गये हैं। उन पर विचार किया जाये। संसद के सदस्यों को जो घोषणा करनी होगी वह प्रपत्र 3 में दी गई है। यह शपथ इसी प्रकार की है। मैं जानना चाहता हूं कि क्या “सच्चे हृदय से काम करना” शब्दावली स्वतन्त्र भारत के किसी मंत्री के सम्बन्ध में प्रयोग में नहीं आ सकती? मैं जानता हूं कि मंत्रियों को राजनयिक होना चाहिए, चतुर होना चाहिए, किन्तु यह नहीं जानता था कि चूंकि उन्हें राजनयिक होना चाहिए इसलिए उन्हें सच्चे हृदय से काम करने की आवश्यकता नहीं।उन्हें “सत्यनिष्ठा से तथा सच्चे हृदय से ” घोषणा करनी है। न्यायाधीशों ने जो प्रतिज्ञान करना है वह प्रपत्र 4 उल्लिखित है। उन्होंने भी यह घोषणा करनी कि वे अपने कर्तव्य का पालन “सत्यनिष्ठा तथा सच्चे हृदय से” करेंगे। इसके अतिरिक्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को प्रपत्र 8 के अधीन यह घोषणा करनी है कि वे अपने कर्तव्यों का पालन “सत्यनिष्ठा और सच्चे हृदय से करेंगे।

शब्दावलियों को बहुत समझ बुझ कर चुना गया है। एक शब्दावली संसद के सदस्यों तथा राज्यों के विधान मंडलों के सदस्यों और संघ न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के सदस्यों के लिए है, जिन्हें अपने कर्तव्यों का पालन “सत्यनिष्ठा और सच्चे हृदय” से करना है किन्तु संघ के तथा राज्य के मंत्रियों पर यह शब्दावली लागू नहीं होती। मैं यह जानना चाहता हूं कि मंत्रियों के सम्बन्ध ये शब्द जान बूझ कर नहीं रहने दिए गए हैं अथवा अनजाने। संसद के तथा राज्यों के विधान मंडलों के सदस्यों और न्यायाधीशों के सम्बन्ध में जिस सावधानी से “सच्चे हृदय से” शब्दों को रखा गया है उससे ज्ञात होता है कि अन्य स्थलों से ये शब्द जान बूझकर निकाल दिए गए हैं। मैं इस सभा के सदस्यों से जानना चाहता हूं कि क्या उनका विचार यह है कि जब तक वे विधान मंडल के सदस्य बने रहेंगे तब तक वे अपने कर्तव्यों का पालन सत्यनिष्ठा से तथा “सच्चे सदस्य से” करेंगे किन्तु जैसे ही वे मंत्रिमंडल की गद्दियों पर आरूढ़ होंगे, उनको “सच्चे हृदय से काम करने की आवश्यकता नहीं रह जायेगी। क्या विचार यही है?

यदि बात यही है तो यह आधुनिक विचार-धारा के अनुरूप ही है। वास्तव में मंत्रियों को सच्चे हृदय से काम करने की आवश्यकता है। उन्हें तो कपटी होने की आवश्यकता है। मैं कह सकता हूं कि कुछ व्यक्तियों का कपट भी सद्गुण समझा जाता है। राधा ने श्रीकृष्ण को सम्बोधित करते हुए कहा था: “निपट कपट तुम श्याम।” श्याम तुम कपटी हो। यह प्रेम की पराकाष्ठा है। क्या हम भी अपने मंत्रियों को ‘निपट कपट तुम श्याम’ कह कर संबोधित करेंगे और यह कहेंगे आप हमारे प्रभु हैं किन्तु निपट कपटी हैं?” यह शपथ इसी प्रकार की है। मैं जानना चाहता हूं कि क्या “सच्चे हृदय से काम करना” शब्दावली स्वतन्त्र भारत के किसी मंत्री के सम्बन्ध में प्रयोग में नहीं आ सकती? मैं जानता हूं कि मंत्रियों को राजनयिक होना चाहिए, चतुर होना चाहिए, बता दे कि  प. बंगाल से मुस्लिम सदस्य नजीरुद्दीन अहमद ने प्रस्ताव रखा कि शपथ में ‘सत्यनिष्ठा से शपथ’ के साथ-साथ ‘सच्चे हृदय से शपथ’ लिए जाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि सदस्य शपथ लेते हुए यह कहें कि सत्यनिष्ठा और सच्चे हृदय से शपथ लेता/लेती हूं। उन्होंने अपना विचार रखते हुए कहा, ‘अध्यक्ष महोदय, मैं यह प्रस्ताव उपस्थित करता हूं कि, “संशोधनों पर संशोधनों की सूची 1 पांचवा सप्ताह के संशोधन संख्या 56 के सम्बन्ध में, तृतीय अनुसूची में घोषणाओं के प्रपत्र 1 में,सत्य निष्ठा से’ शब्दों के पश्चात् और सच्चे हृदय से शब्द रखे जाएं। किन्तु यह नहीं जानता था कि चूंकि उन्हें राजनयिक होना चाहिए इसलिए उन्हें सच्चे हृदय से काम करने की आवश्यकता नहीं।