Sunday, December 22, 2024
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आखिर कब सुधरेगा भारत का सिस्टम?

यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर भारत का सिस्टम कब सुधरेगा! सेना में भर्ती होकर देश के लिए कुर्बान होने का जज्बा रखते थे, आपने ‘अग्रिवीर योजना’ लाकर हमारे दिल को चोट पहुंचाई, हम चुप रहे। कभी रेलवे का एग्जाम लीक हुआ, कभी यूपी पुलिस भर्ती का पेपर लीक हुआ, लेकिन हम अपनी किस्मत का दोष समझकर चुप बैठ गए। परंतु सिस्टम हमारे पीछे हाथ धोकर पड़ गया है। देश की बड़ी परीक्षा नीट का भी पेपर लीक हो जाता है। हम सड़कों पर उतरे, सिस्टम से लड़े और सीबीआई जांच शुरू हो गई। सिस्टम से लड़ते-लड़ते थक चुके हैं। लेकिन कमजोर नहीं हुए हैं। हमें फिर से संघर्ष करना है। सिस्टम को सुधारने के लिए सिस्टम में आना है। प्लीज हमें बख्श दो, आज देश के हर छात्र और नौजवान के दिल और जुबान से बस ये ही अपील निकल रही होगी। दरअसल अब मामला बहुत आगे निकल गया है। देश के युवाओं की जान पर बन आई है। आईएएस और आईपीएस बनकर देश को सुधारने का सपना देखने वाले छात्र कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में डूबकर मर रहे हैं। बिजली के खंभों का कंरट उन्हें मौत की नींद सुला रहा है। किसी के पिता खेती करते हैं, किसी के पिता मामूली सी नौकरी करते हैं, किसी के पिता मजदूरी करते हैं… लेकिन आपको इस बात से कहां फर्क पड़ता है। आपको तो बस सियासत करनी है। दिल्ली के राजेंद्र नगर इलाके में भारी बारिश होती है। कोचिंग सेंटर के बेसेमेंट में बनी लाइब्रेरी में अचानक फोर्स से सीवर का पानी घुस जाता है। 10 मिनट के अंदर गंदे पानी की भेंट तीन नौजवानों के सपने चढ़ जाते हैं। और शासन और प्रशासन दावा करता है कि जांच शुरू हो गई है। दोषियों को छोड़ा नहीं जाएगा। खबरों में पढ़ते हैं दिल्ली सरकार मे मंत्री आतिशी ने मुख्य सचिव नरेश कुमार को इस घटना की जांच करने और 24 घंटे के भीतर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया। अरे भाई , ये इतना सारा ज्ञान घटना के बाद क्यों आता है। दिल्ली सरकार कहती है केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है। केंद्र सरकार के प्रतिनिधि कहते हैं दिल्ली सरकार चोर है। बारिश से पहले सीवरेज ठीक नहीं कराए। उधर कोचिंग सेंटर का मालिक बस अपने फायदे के बारे में सोचता है और बच्चों को मौत के मुंह में बिठाकर देश का सबसे बड़ा अफसर बनाने के सपने दिखाता है। दरअसल सरकारी नौकरी की तैयारी करने वाले बच्चे मिडिल क्लास से ताल्लुक रखते हैं। अगर वो किसी हादसे के शिकार हो भी जाते हैं, तो क्या फर्क पड़ता है। बस अपने घर का बच्चा इन चक्करों में ना फंसे। ये ही सोच है जो युवाओं की मौत का कारण बन रही है।

दिल्ली के करोल बाग मेट्रो स्टेशन पर भारी पुलिस बल तैनात है। ओल्ड राजेंद्र नगर में शनिवार को एक कोचिंग संस्थान के बेसमेंट में पानी भर जाने से हुई 3 छात्रों की मौत के विरोध में प्रदर्शन करने के लिए एकत्र हुए छात्रों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। न्यूज चैनल और न्यूज वेबसाइट्स पर अब ऐसी ही खबरें देखने को मिल रही है। दरअसल एक सिस्टम के आगे बेबस छात्र कितना संघर्ष करेगा। कभी पेपर लीक हो जाता है तो वह सड़कों पर उतरकर पुलिस के डंडे खाता है। कभी अग्निवीर स्कीम के विरोध में वो सिस्टम से लड़ता है। अब अपने जीवन के लिए सरकार से गुहार लगा रहा है। लेकिन सरकार सुनने को तैयार नहीं है। युवा आज की तारीख में राजनीति का केंद्र बिंदु बन गए हैं। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, हर कोई युवाओं के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेक रहा है। छात्रों और नौजवानों की हालत रोजाना खराब होती जा रही है। जब कोई युवा खिलाड़ी देश के लिए मेडल जीतता है तो पूरे देश को उस पर गर्व होता है। लेकिन जब वहीं नौजवान गटर के पानी की भेंट चढ़ जाता है तो सिस्टम मौन हो जाता है।

बीते 2-3 सालों से देश का युवा सड़क पर है। उसकी मेहनत पर सिस्टम पानी फेर रहा है। दुनिया में भारत सबसे ज्यादा युवा आबादी वाला देश है। लेकिन वो युवा आबादी बहुत मजबूर है। बीटेक, बीबीए, एमबीए और एमटेक करने के बाद भी उसके पास प्राइवेट नौकरी तक नहीं है। उसके बावजूद भारत का युवा हिम्मत वाला है। वह लगातार संघर्ष कर रहा है। रात दिन एक करके अपनी तकदीर बदलना चाहता है। लेकिन उसे अब संघर्ष भी नहीं करने दिया जा रहा है। जीवनभर की कमाई जुटाकर मां-बाप अपने बच्चों को बड़ा आदमी बनाना चाहते हैं। लेकिन देश की राजधानी में ही जब सपने पानी में डूबकर खत्म हो रहे हैं तो देश के अन्य राज्यों का क्या हाल होगा। पूरी दुनिया एआई के दौर में पहुंच गई है। लेकिन दुर्भाग्य है कि आज भी भारत का सिस्टम ‘जमी जमाई व्यवस्था‘ से बाहर नहीं आना चाहता है। तीन घरों के चिराग डूबकर मर जाते हैं, और सरकार इस बात की जांच करती है कि पानी आखिर बेसमेंट तक कैसे पहुंचा। यहां गलती सरकार की है, सिस्टम की है या कोचिंग सेंटर मालिक की, इसका पता चल भी जाए तो क्या होगा। असल मुद्दा तो ये है कि युवाओं को जो बिना अपराध के हर रोज सजा मिल रही है, इसका स्थायी हल कैसे खोजा जाए। अभी भी मौका है संभला जा सकता है। अगर देर हो गई तो हर रोज किसी सीवर या नाली में टूटते सपनों की सिसकियां ही सुनाई देंगी।

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