कौन है मजीदी? जो जाना चाहते है अपने घर!

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हमारे देश में कई अफगानी छात्र बसेरा लिए हुए हैं! आजादी की कीमत एक गुलाम से बेहतर कोई नहीं जानता, रोटी की अहमियत भूखे से बेहतर किसे पता होगी, पढ़ाई की कीमत खिड़की से झांक रहा स्कूल के बाहर खड़ा कोई बच्चा ही बता सकता है। जो चीजें हमारे-आपके लिए मूलभूत सुविधाएं हैं इस वक्त एक मुल्क के लिए वे ‘उपलब्धियां‘ हैं जिनके लिए जान तक लेने-देने की नौबत आ चुकी है। बात अफगानिस्तान की हो रही है और इसलिए हो रही है क्योंकि तालिबान के दूसरे ‘कब्जा काल’ को एक साल हो चुका है। 15 अगस्त को जब भारत अपनी आजादी के 75 साल का जश्न मना रहा था तब उसी के एक पड़ोसी दोस्त को गुलामी की जंजीरों में जकड़े एक साल हो गया। एक साल में तालिबान ने अफगानिस्तान की हवा को किस तरह बदला है यह जानने के लिए नवभारत टाइम्स ऑनलाइन से एक अफगान छात्र से बात की जो लखनऊ में पढ़ाई कर रहा है। इस बातचीत में एक गुस्सा, निराशा, दुख और डर छिपा हुआ था जिसे तालिबान ने पिछले एक साल में अफगानों के दिल में बोया है।

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के रहने वाले जवात मजीदी लखनऊ में रहते हैं। वह लखनऊ यूनिवर्सिटी से पढ़ाई कर रहे हैं और एमबीए पूरा कर चुके हैं। उनका इरादा अब पीएचडी करने का है। फिलहाल इसके लिए उन्होंने विषय का चुनाव नहीं किया है लेकिन वह अफगानिस्तान में उच्च शिक्षा से संबंधित किसी विषय पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह करीब डेढ़-दो साल से घर नहीं गए हैं और वीडियो कॉल के जरिए अपने परिवार से संपर्क करते हैं। उन्हें अपने मुल्क और परिवार की याद आती है। मजीदी के परिवार में उनके माता-पिता और दो भाइयों की पत्नियां और बेटियां हैं। लेकिन भाई कहां हैं? इस सवाल पर मजीदी घबरा जाते हैं।

तालिबान से डर लगता है?

उनके भाई पिछली सरकार के लिए काम करते थे जिन्हें तालिबान के आने के बाद देश छोड़कर भागना पड़ा। सुरक्षा कारणों से मजीदी ने उनकी लोकेशन नहीं बताई। ‘क्या आपको तालिबान से डर लगता है?’ सवाल के जवाब में मजीदी ने कहा कि मैं तालिबान से नहीं डरता। मैं लोगों को बताना चाहता हूं कि अफगानिस्तान में क्या हो रहा है और इसके लिए कौन जिम्मेदार है। यही बताने मैं यहां आया हूं। जब तालिबान देश में आया हमारे सभी नेता अफगानिस्तान को छोड़कर भाग गए। एक साल में तालिबान ने अफगानिस्तान में नरसंहार, गृह युद्ध, विस्फोट, यौन शोषण, बलात्कार जैसे अपराधों को अंजाम दिया है। तालिबान ने एक साल में जो किया है उसी का नतीजा है कि उसे अभी तक मान्यता नहीं मिली है।

हॉस्टल में मजीदी के साथ कई अफगान छात्र रहते हैं लेकिन तालिबान के डर से कोई सामने आने के लिए तैयार नहीं हुआ। दरअसल उन्हें अपने लिए नहीं बल्कि अफगानिस्तान में रह रहे अपने परिजनों के लिए डर लग रहा है लेकिन मजीदी ने यह रिस्क लिया। अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति बताते हुए मजीदी निराश हो गए। उन्होंने कहा कि महिलाएं बदतर हालत में हैं। लेकिन अफसोस कोई मानवाधिकार संगठन उनके साथ नहीं खड़ा है। वे (तालिबानी) लड़कियों से जबरन शादी कर रहे हैं जिस वजह से लोगों को अपना घर, परिवार और देश छोड़कर भागना पड़ रहा है। क्या अफगानिस्तान में भी कोई तालिबान का साथ दे रहा है? मजीदी ने पाकिस्तान के सीमा रेखा पर रहने वाले लोगों पर शक जताया।

कई बार पाकिस्तान के ऑफर को ठुकरा चुके और भारतीय दूतावास की ओर से दी गई स्कॉरलशिप पर लखनऊ में पढ़ रहे मजीदी भारत को बहुत पसंद करते हैं। उन्होंने कहा, ‘भारत सबसे अच्छा देश है। वह हमेशा हमारी मदद करता है, उच्च शिक्षा में हमारा साथ देता है और हमेशा हमारे देश, हमारे लोगों को इलाज और शिक्षा जैसी तमाम चीजों में सहायता पहुंचाता है। मैं इसके लिए भारत की प्रशंसा करता हूं।’ मजीदी कभी पाकिस्तान नहीं गए और न कभी जाना चाहते हैं। पड़ोसी मुल्क के बारे में वह ‘सबसे बड़ा शैतान’ (अफगान लहजे में) शब्द का इस्तेमाल करते हैं।

मजीदी हिंदी उतनी अच्छी नहीं बोल पाते लेकिन हिंदी फिल्में देखते हैं। थ्री ईडियट्स उनकी पसंदीदा फिल्म है और संजय दत्त व प्रियंका चोपड़ा उनके पसंदीदा कलाकार हैं। मजीदी को फुटबॉल और बॉक्सिंग बेहद पसंद है और क्रिस्टियानो रोनाल्डो उनके फेवरेट खिलाड़ी हैं। अफगान छात्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बड़े प्रशंसक हैं। वह कहते हैं कि इतनी बड़ी आबादी को वह जिस तरह मैनेज करते हैं वह वाकई काबिल-ए-तारीफ है। मजीदी ने बताया कि आने वाले कुछ दिनों में वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिल सकते हैं। उन्हें सीएम योगी बेहद पसंद हैं क्योंकि ‘वह पहले दिन से खुलकर तालिबान का विरोध कर रहे हैं।’ लेकिन जब मजीदी से पूछा कि उनके सबसे पसंदीदा भारतीय राजनेता कौन हैं तो दो सेकेंड रुककर मुस्कुराहट के साथ उन्होंने उत्तर दिया- महात्मा गांधी।