Saturday, May 10, 2025
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कौन थे लांस नायक चंद्रशेखर?

38 साल पहले देश में कुछ ऐसा हुआ जिसने सभी को हिला कर रख दिया! 38 साल बाद लांस नायक चंद्रशेखर अपने घर पहुंच गए हैं। 29 मई 1984… वह तारीख थी जब सियाचिन ग्‍लेशियर से आखिरी बार उनकी खबर आई थी। वह ‘ऑपरेशन मेघदूत’ के तहत भेजी गई सर्च पार्टी का हिस्‍सा थे। यह सर्च सियाचिन में गश्‍त करते-करते बर्फीले तूफान की चपेट में आ गई। 12 सैनिकों के पार्थिव शरीर तो मिल गए, मगर लांस नायक चंद्रशेखर समेत बाकी का कुछ पता नहीं चला। अगले 38 साल परिवार आस लगाए इंतजार करता रहा। शायद ईश्‍वर ने सुन ली। पिछले दिनों राजस्‍थान राइफल्‍स की पैट्रोल पार्टी को लांस नायक चंद्रशेखर के अवशेष मिल गए।बुधवार को जब लांस नायक चंद्रशेखर के अवशेष उत्‍तराखंड के हल्‍द्वानी स्थित घर पहुंचे तो सेना अपने बहादुर जवान को विदा करने मौजूद थे। पूरे सैन्‍य सम्‍मान के साथ लांस नायक चंद्रशेखर को विदा किया गया। विजुअल्‍स बता रहे हैं कि चंद्रशेखर जैसा कोई नौजवान किस वजह से सेना में भर्ती होता है। यह भारतीय सेना है, अपने वीरों को कभी नहीं भूलती। उनके बलिदान का सम्‍मान करती है।

स्‍वतंत्रता दिवस के दिन भारतीय सेना की उत्‍तरी कमान ने कुछ तस्‍वीरें पोस्‍ट कीं। कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी समेत सभी रैंक लांस नायक चंद्रशेखर को सैल्‍यूट करते नजर आ रहे थे।

सियाचिन में गश्त कर रही RR की पैट्रोल पार्टी को अवशेष के साथ एक आर्मी डिस्क मिली। आर्मी डिस्‍क से ही लांस नायक चंद्रशेखर की पहचान हुई। हर भारतीय सैनिक को किसी भी मिशन में जाते वक्त एक आइडेंटिटी डिस्क पहनना पड़ता है। इसपर सैनिक का आर्मी नंबर लिखा होता है। लांस नायक चंद्रशेखर की डिस्‍क पर 4164584 लिखा है।

सेना के दस्‍तावेजों के अनुसार, अल्‍मोड़ा के रहने वाले चंद्रशेखर 1975 में भर्ती हुए थे। उत्‍तराखंड के मुख्‍यमंत्री पुष्‍कर सिंह धामी ने बुधवार को हल्‍द्वानी पहुंच लांस नायक को नमन किया।

लांस नायक चंद्रशेखर का परिवार हल्‍द्वानी की सरस्‍वती विहार कॉलोनी में रहता है। पत्‍नी शांति देवी ने बताया कि 1984 में उनकी शादी को नौ साल हो चुके थे। शांति की उम्र बस 28 साल थी। उनकी बड़ी बेटी चार साल की थी और छोटी बेटी डेढ़ साल की। अगले 38 साल तक परिवार नम आंखों से बस इंतजार ही करता रहा। अब जाकर वह इंतजार खत्‍म हुआ है। शांति देवी ने कहा कि उन्‍हें अपने पति पर गर्व है कि उन्‍होंने देश सेवा को प्राथमिकता दी।

ऑपरेशन मेघदूत… नाम सुनते ही जेहन में सियाचिन ग्‍लेशियर की छवि कौंधती है। 38 साल पहले, अपने पराक्रम के बूते भारतीय सेना ने सियाचिन को पाकिस्‍तान के हाथों में जाने से बचा लिया था। 1984 में जब पाकिस्तान ने सियाचिन ग्लेशियर पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश की, तो उसके इरादों की खबर मिलते ही भारतीय सेना सक्रिय हो गई थी। पाकिस्तानी सैनिकों के पहुंचने से पहले ही 13 अप्रैल 1984 को भारतीय सैनिक वहां पहुंच गए। 13 अप्रैल 1984 को बिलाफोंड ला में तिरंगा फहरा दिया गया। चार दिन के भीतर यानी 17 अप्रैल तक सभी अहम जगहों पर भारतीय सैनिक काबिज हो चुके थे। तब से अब तक वहां सैनिकों की तैनाती बनी हुई है। ‘ऑपरेशन मेघदूत’ के लिए कई बहादुर सैनिकों को सियाचिन भेजा गया था। 19 कुमाऊं रेजिमेंट के लांस नायक चंद्रशेखर भी उनमें से एक थे।

सियाचिन ग्‍लेशियर… जहां कभी-कभी तापमान -50 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाता है। 18,800+ फीट की ऊंचाई पर मौजूद 76 किलोमीटर लंबे इस ग्‍लेशियर पर हर साल 35 फीट बर्फबारी हो जाती है।

ऑपरेशन मेघदूत… नाम सुनते ही जेहन में सियाचिन ग्‍लेशियर की छवि कौंधती है। 38 साल पहले, अपने पराक्रम के बूते भारतीय सेना ने सियाचिन को पाकिस्‍तान के हाथों में जाने से बचा लिया था। 1984 में जब पाकिस्तान ने सियाचिन ग्लेशियर पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश की, तो उसके इरादों की खबर मिलते ही भारतीय सेना सक्रिय हो गई थी। पाकिस्तानी सैनिकों के पहुंचने से पहले ही 13 अप्रैल 1984 को भारतीय सैनिक वहां पहुंच गए। 13 अप्रैल 1984 को बिलाफोंड ला में तिरंगा फहरा दिया गया। चार दिन के भीतर यानी 17 अप्रैल तक सभी अहम जगहों पर भारतीय सैनिक काबिज हो चुके थे। तब से अब तक वहां सैनिकों की तैनाती बनी हुई है। ‘ऑपरेशन मेघदूत’ के लिए कई बहादुर सैनिकों को सियाचिन भेजा गया था। 19 कुमाऊं रेजिमेंट के लांस नायक चंद्रशेखर भी उनमें से एक थे।

जहां कभी-कभी तापमान -50 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाता है। 18,800+ फीट की ऊंचाई पर मौजूद 76 किलोमीटर लंबे इस ग्‍लेशियर पर हर साल 35 फीट बर्फबारी हो जाती है। बर्फीले तूफान कब आ जाएं, कुछ पता नहीं। हल्‍की-फुल्‍की आंधी तो हर वक्‍त चलती ही रहती है।बर्फीले तूफान कब आ जाएं, कुछ पता नहीं। हल्‍की-फुल्‍की आंधी तो हर वक्‍त चलती ही रहती है।

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