पर्यावरण आज हमारे जीवन के लिए बहुत ही ज्यादा जरूरी विषय बन गया है! क्योंकि वायु प्रदूषण और ऐसे कई प्रकार के प्रदूषण हमारे जीवन को तहस-नहस करने में लगे हुए हैं! गांधी जी का मानना था कि पृथ्वी, वायु, भूमि तथा जल हमारे पूर्वजों से प्राप्त सम्पत्तियां नहीं हैं। वे हमारे बच्चों की धरोहरें हैं। वे जैसी हमें मिली हैं वैसी ही उन्हें भावी पीढ़ियों को सौंपना होगा। वन्य जीवन, वनों में कम हो रहा है किन्तु वह शहरों में बढ़ रहा है।
युगपुरुष महात्मा गांधी ने कभी भी अपने भाषणों या लेखों में पर्यावरण संरक्षण का उल्लेख नहीं किया। शायद इसलिए भी कि उनके समय में पर्यावरण असंतुलन से उपजी चिंताओं को मान्यता नहीं दी जाती थी। फिर भी वह पृथ्वी या प्रकृति के प्रति मानवीय आचरण से जिस तरह मानव समाज को आगाह करते थे, वह उनकी अद्भुत दूरदृष्टि ही थी। गांधी जी को ही विश्व का पहला पर्यावरणविद माना जाता है! गांधी जी ने हिमालय के महत्व को भी उसी समय रेखांकित कर प्रकृति से अनावश्यक छेड़छाड़ न करने की नसीहत दे दी थी।
देखा जाए तो विश्व में पर्यावरण को लेकर हलचल तब शुरू हुई जब विश्व बिरादरी का ध्यान बढ़ते वैश्विक तापमान के खतरे की ओर गया। इस दिशा में विश्व के अनेक जागरूक राष्ट्र एकजुट होकर प्रयास करने को सहमत हुए।
वर्ष 1972 में स्वीडन के शहर स्टाकहोम में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विश्व का पहला अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें 119 देशों ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यू.एन.ई.पी) का प्रारंभ ‘एक धरती’ के सिद्धांत को लेकर किया और एक ‘पर्यावरण संरक्षण का घोषणा पत्र’ तैयार किया जो ‘स्टाकहोम घोषणा’ के नाम से जाना जाता है।
इसी समय, संपूर्ण विश्व में एक तिथि 5 जून को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के रूप में मनाने की भी स्वीकृति हुई। दरअसल ये सम्मेलन गांधी द्वारा पर्यावरण और इसके प्रभावों के बारे में उठाई गई चिंताओं की तुलना में बहुत बाद में बुलाए गए थे। भारत में भी पर्यावरण की रक्षा के लिए चिपको जैसे प्रमुख आंदोलनों के प्रणेता चंडी प्रसाद भट्ट और उसे व्यापक प्रचार देने वाले सुंदर लाल बहुगुणा और बाबा आमटे तथा मेधा पाटकर ने गांधी से ही प्रेरणा ली।
पर्यावरण, शहरीकरण और मशीनीकरण के बारे में गांधी जी की चिंता उनके भाषणों, लेखन और श्रमिकों के लिए उनके संदेशों में स्पष्ट थी। यह ध्यान देने योग्य है कि वह दृष्टि और व्यवहार में दुनिया के शुरुआती पर्यावरणविद् थे। चण्डी प्रसाद भट्ट और सुन्दर लाल बहुगुणा को भी गांधीवाद ने ही तो प्रेरित किया था।
गांधी जी ने आधुनिक पर्यावरणविदों से बहुत पहले दुनिया को बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण की समस्याओं के बारे में आगाह किया था। गांधी जी ने कल्पना की थी कि मशीनीकरण से न केवल औद्योगीकरण, बड़े पैमाने पर शहरीकरण, बेरोजगारी होगी, बल्कि पर्यावरण का विनाश भी होगा। एक सदी पूर्व 1909 में लिखी गई उनकी पुस्तक, ‘‘हिंद स्वराज’’ ने पर्यावरण के विनाश और ग्रह के लिए खतरे के रूप में दुनिया के सामने आने वाले खतरों की चेतावनी दी थी।
ऐतिहासिक रिकॉर्ड के रूप में, गांधी जी पर्यावरण प्रदूषण और मानव स्वास्थ्य के लिए इसके परिणामों से पूरी तरह अवगत थे। वह विशेष रूप से उद्योग में काम करने की भयावह परिस्थितियों के बारे में चिंतित थे, जिसमें श्रमिकों को दूषित, जहरीली हवा में सांस लेने के लिए मजबूर किया जाता था। उन्होंने 5 मई, 1906 को इंडियन ओपिनियन में उन चिंताओं को व्यक्त किया और कहा था कि ‘‘आजकल, खुली हवा की आवश्यकता के बारे में प्रबुद्ध लोगों में सराहना बढ़ रही है।’’
गांधीजी का दृष्टिकोण, पर्यावरण के प्रति व्यापक था। उन्होंने देशवासियों से, तकनीकों के अंधानुकरण के विरुद्ध, जागरूक होने का आह्वान किया था। उनका मानना था कि पश्चिम के जीवन स्तर की नकल करने से, पर्यावरण का संकट पनप सकता है। कहते थे कि यदि विश्व के अन्य देश भी आधुनिक तकनीकों के मौजूदा स्वरूप को स्वीकार करेंगे तो पृथ्वी के संसाधन नष्ट हो जायेंगे। इसीलिए उन्होंने कहा था कि पृथ्वी पर मानव की आवश्यकता पूर्ति के लिए पर्याप्त संसाधन हैं मगर उसकी हवस के लिए नहीं। मतलब यह कि प्रकृति के साथ जीना सीखों और उसके साथ बेवजह छेड़छाड़ मत करो।
गांधी जी का मानना था कि पृथ्वी, वायु, भूमि तथा जल हमारे पूर्वजों से प्राप्त सम्पत्तियां नहीं हैं। वे हमारे बच्चों की धरोहरें हैं। वे जैसी हमें मिली हैं वैसी ही उन्हें भावी पीढ़ियों को सौंपना होगा।
वन्य जीवन, वनों में कम हो रहा है किन्तु वह शहरों में बढ़ रहा है। 1909 की शुरुआत में ही उन्होंने अपनी पुस्तक ‘‘हिंद स्वराज’’ में मानव जाति को अप्रतिबंधित उद्योगवाद और भौतिकवाद के प्रति आगाह किया था। वह नहीं चाहते थे कि भारत इस संबंध में पश्चिम का अनुसरण करे और चेतावनी दी कि यदि भारत अपनी विशाल आबादी के साथ पश्चिम की नकल करने की कोशिश करता है तो पृथ्वी के संसाधन पर्याप्त नहीं होंगे।
उन्होंने 1909 में भी तर्क दिया कि औद्योगीकरण और मशीनों का लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हालांकि वह मशीनों के विरोध में नहीं थे। उन्होंने निश्चित रूप से बड़े पैमाने पर मशीनरी के उपयोग का विरोध किया। उन्होंने नदियों और अन्य जल निकायों को प्रदूषित करने के लिए लोगों की आलोचना की। उन्होंने धुएं और शोर से हवा को प्रदूषित करने के लिए मिलों और कारखानों की आलोचना की। इन सभी कारणों से कहा जा सकता है कि गांधीजी ही वह पहले व्यक्ति थे जिन्हें विश्व का पहला पर्यावरणविद माना जाता है!