Tuesday, February 11, 2025
HomeIndian Newsरघुराम राजन ने नेताओं को नौकरी के लिए क्यों किया आगाह?

रघुराम राजन ने नेताओं को नौकरी के लिए क्यों किया आगाह?

श्रीलंका में आई आर्थिक मंदी के बारे में तो आपने सुना ही होगा! अर्थजगत के जेम्‍स बॉन्‍ड रघुराम राजन ने आगाह किया है। उन्‍होंने शीर्ष नेताओं को रोजगार के अवसर तैयार करने के लिए जोर देने की नसीहत दी है। वह मानते हैं कि इसे लेकर ध्‍यान भटकाना सही नहीं साबित होगा। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर ने श्रीलंका का जिक्र किया है। उन्‍होंने इस देश का उदाहरण देते हुए सबक लेने की सलाह दी है। उन्‍होंने बताया है कि आजादी के 75 सालों में हमने क्‍या कुछ पाया है। कहां अब भी गुंजाइश बची है। आगे का रास्‍ता तय करने के लिए हमें किस दिशा में बढ़ना होगा। अपने इस लेख में उन्‍होंने सिर्फ रोजगार की बात ही नहीं की है। अलबत्‍ता, कुछ सामाजिक मुद्दे भी उठाए हैं। उन्‍होंने कहा कि आर्थिक आजादी देश के लिए बेहद जरूरी है। यह तभी मिल सकती है जब युवाओं को आसानी से रोजगार मिलेगा। उन्‍होंने उदार लोकतंत्र के महत्‍व पर भी रोशनी डाली है। साथ ही बताया है कि क्‍यों आजादी के परवानों ने अपनी जान देकर स्‍वाधीनता की लड़ाई लड़ी। उनके मुताबिक, पूरी तरह से स्‍वतंत्रता अभी एक खास वर्ग को मिली हुई है।पूर्व आरबीआई गर्वनर ने लिखा, भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त हुए 75 साल हो चुके हैं। जश्न मनाने के लिए निश्चित रूप से बहुत कुछ है। हालांकि, यह पिछले कामों का जायजा लेने का भी समय है। इससे भविष्‍य के लिए रास्‍ता बनाने में मदद मिलेगी। असल में स्वतंत्र होने के लिए हमें और क्या करना होगा? यह भी देखना है! उन्‍होंने पार्टिशन का संदर्भ दिया। कहा कि आजादी के साथ विभाजन के दंगे बड़ी त्रासदी थी। ये यादें अमिट रहेंगी। तब यह स्पष्ट नहीं था कि भारत एक लोकतांत्रिक देश के रूप में जीवित रहेगा। यह भी साफ नहीं था कि अलग-अलग राज्यों के लोग राष्ट्रीय एकता की सामूहिक भावना को महसूस कर सकेंगे या नहीं।

लोकतंत्र को सेफ्टी वॉल्‍व

रघुराम राजन ने लिखा कि भारतीय लोकतंत्र ने धर्म, जाति, भाषा और सामाजिक-आर्थिक पहचानों को लांघकर यहां तक का सफर तय किया। आजादी के समय ज्‍यादातर नागरिक गरीब और अनपढ़ थे। आर्थिक और सामाजिक रूप से असमानता थी। राजनीतिक स्वतंत्रता को एलीट या समृद्ध वर्ग सबसे ज्‍यादा महत्व देता था। इनमें से ज्‍यादातर लोगों को अंग्रेजों के औपनिवेशिक प्रशासन के बाद खाली हुई कुर्सियों को भरना था। तमाम दुश्‍वारियों के बावजूद भारत एक लोकतंत्र के तौर पर अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहा। इसका श्रेय पुराने नेताओं को जाता है। उन्‍होंने लोकतांत्रिक आचार-व्‍यवहार को अपनाया। इन्‍हें परंपरा में तब्‍दील किया।

रघुराम राजन ने उदार लोकतंत्र को सेफ्टी वॉल्‍व बताया है। इसने इतने बड़े देश में अलग-अलग तरह के आक्रोश को निकलने में मदद की। इसके चलते ज्‍यादातर लड़ाइयां सड़कों के बजाय अखबारों, बैलट बॉक्‍स और संसद के जरिये लड़ी गईं। इसने हर भारतीय की आवाज को शासन-प्रशासन में जगह दी। पहले ऐसा नहीं था। तब प्रभावीशाली लोगों की आवाज ही सुनी जाती थी।

रघुराम राजन के अनुसार, आजादी का मतलब होता है कि हर किसी के पास बुनियादी चीजें जरूर हों। इनमें रोटी, कपड़ा, मकान, स्‍वास्थ और शिक्षा शामिल हैं। आजादी के बाद से भारत ने लंबा सफर तय किया है। आज कोई भूख से नहीं मारता और तकरीबन सभी बच्‍चे स्‍कूल जाते हैं। यह और बात है कि सुधार की अब भी जरूरत है। कुपोषण बच्‍चों में अब भी मौजूद है। यह उनके विकास में बाधा है। गरीब बच्‍चे पढ़ाई-लिखाई के एक आवश्‍यक लेवल से कहीं पीछे हैं। यह राष्‍ट्रीय आपदा है।

पूर्व आरबीआई गवर्नर ने कहा है कि निश्चित तौर पर असल आर्थिक आजादी तब मिल सकती है जब ज्‍यादातर लोग आसानी से नौकरी पा सकेंगे। इस सेक्‍टर में बहुत कुछ करने की जरूरत है। उनके मुताबिक, हर भारतीय को धार्मिक आजादी मिली हुई है। वह जिस धर्म को चाहे उसका पालन कर सकता है। विभाजन की त्रासदी को कोई भूल नहीं सकता। इसके मद्देनजर कुछ पार्टियों के लिए अल्पसंख्‍यकों की आवाज उठाकर उनका वोट बटोरना सुविधाजनक रहा है। यह भी समझना चाहिए कि बड़ी अल्‍पसंख्‍यक आबादी को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का कोई प्रयास आक्रोश पैदा करेगा। यह लोकतंत्र बर्दाश्‍त नहीं कर सकता है। श्रीलंका मिसाल है। यह हमारे नेताओं के लिए चेतावनी भी है। इसने दिखाया है कि अगर नेता रोजगार के मौके बनाने के बजाय अल्‍पसंख्‍यकों को टारगेट करने पर लगे रहे तो क्‍या हो सकता है। हमारे स्‍वतंत्रता सेनानियों ने आजादी की लड़ाई इसलिए लड़ी ताकि वे खुलकर बोल सकें। आलोचना कर सकें। जेल जाने के डर के बिना विरोध दर्ज कर सकें। हालांकि, जो यात्रा हमने तय की है उस पर फख्र करने की जरूरत है।

राजन ने असामनता को बड़ा मसला बताया। इसमें आर्थिक और सामाजिक दोनों शामिल हैं। उनके मुताबिक, इसकी जड़ में सार्वजनिक वस्‍तुओं की पहुंच में असमानता है। इनमें शिक्षा और हेल्‍थकेयर शामिल है। लेकिन, यह इसके आगे भी जाती है। मध्‍यवर्ग की भी कई महिलाओं को बाहर जाकर काम करने की इजाजत नहीं मिलती है। कई बार इसकी वजह असुरक्षा होती है।

राजन ने लिखा, अंग्रेजों के जमाने के कानून आज भी मौजूद हैं। सत्ता में आने पर उदारवादी नेताओं ने भी इसका इस्‍तेमाल किया है। इसका सबसे ज्‍यादा असर आम प्रदर्शनकारी या एक्ट‍िविस्‍ट पर पड़ता है। उसके पास ऊंचे अधिकारियों तक पहुंच नहीं होती है। वे नामचीन वकीलों की सेवाएं नहीं ले पाते हैं। सरकार को भी इसका नुकसान होता है। अयोग्‍य और आलसी कर्मचारी किसी अंकुश के बगैर काम करते रहते हैं।

Disclaimer:

Mojo Patrakar may publish content sourced from external third-party providers. While we make every reasonable effort to verify the accuracy, reliability, and completeness of this information, Mojo Patrakar does not guarantee or endorse the views, opinions, conclusions, or authenticity of content provided by these third-party entities. Such content is presented solely for informational purposes, and it is not intended to substitute professional advice or to serve as a comprehensive basis for decision-making.

Mojo Patrakar expressly disclaims any liability for errors, omissions, or inaccuracies that may arise from third-party content, as well as any reliance readers may place upon it. Users are strongly encouraged to conduct independent verification and consult with qualified professionals as necessary before making any decisions based on information obtained through Mojo Patrakar.

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments