पाकिस्तान की सत्ता इमरान खान ने खो दी है! सत्ता गंवा चुके पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान पूरे मुल्क में घूम-घूमकर लगातार जनसभाएं कर रहे हैं और लाखों की भीड़ के सामने निशाना साध रहे हैं। उनके निशाने पर है पाकिस्तान की सेना, शहबाज शरीफ की सरकार, पाकिस्तान का चुनाव आयोग और न्यायपालिका। रैलियों में बेबाक इमरान को अंजाम की कोई परवाह नहीं है और इसीलिए वह दिल खोलकर भारत की तारीफ कर रहे हैं। भारी भरकम भीड़ इमरान का हौसला बढ़ा रही है जो उनके दावों पर भरोसा कर रही है कि देश में मौजूदा संकट का असली कारण क्षेत्र में अमेरिका के हितों की रक्षा के लिए ‘भ्रष्ट’ नेताओं को सेना का समर्थन है। इमरान के खिलाफ कई मामले भी दर्ज किए गए हैं जिन पर सुनवाई के लिए गुरुवार को वह अदालत के सामने पेश हुए थे जहां उन्हें जमानत मिल गई।पाकिस्तान में तैनात रह चुके आईबी के पूर्व अधिकारी अविनाश मोहनाने के इकोनॉमिक टाइम्स में छपे लेख के मुताबिक, इसमें कोई संदेह नहीं है कि इमरान खान बदहाल अर्थव्यवस्था, गंभीर असमानताएं और राजनीतिक उथल-पुथल से पैदा हुए भीड़ के गुस्से और अंसतोष का अपने राजनीतिक विरोधियों और सेना में उनके समर्थकों के खिलाफ सही इस्तेमाल करने में कामयाब हुए हैं। इमरान के प्रति जनता के समर्थन ने सेना और उनके राजनीतिक विरोधियों को चौंका दिया है जो सोच रहे थे कि सत्ता से बाहर होने के बाद वह धीरे-धीरे ‘गायब’ हो जाएंगे।
आर्थिक संकट ने पाकिस्तान को इतनी बुरी तरह जकड़ रखा है कि लोग भूल गए हैं कि खुद इमरान खान भी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद से सत्ता में आए थे। लोग इतना त्रस्त हो चुके हैं कि वह इमरान से सत्ता में रहने के दौरान खराब प्रदर्शन या 2018 के आम चुनावों के दौरान किए उनके ‘नया पाकिस्तान’ के वादे को लेकर कोई सवाल नहीं पूछ रहे हैं। हाल के दिनों में पाकिस्तान की सेना की छवि को भी गहरा नुकसान हुआ है जो पहले इमरान और अब शहबाज के पीछे खड़ी है। इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ से जुड़े कई सोशल मीडिया अकाउंट न सिर्फ पाकिस्तानी सेना को निशाना बना रहे हैं बल्कि सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा और आईएसआई चीफ नदीम अंजुम को भी आड़े हाथों ले रहे हैं।
लेख के मुताबिक अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाने के बाद इमरान खान ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया को दिए कई इंटरव्यू में अमेरिकी नीतियों की खुलकर आलोचना की थी जिसने सेना को उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी से हटाने के लिए मजबूर कर दिया। दशकों से अमेरिका के रणनीतिक और आर्थिक हितों के अधीन रहने वाला पाकिस्तान ‘सुपरपावर’ को नाराज नहीं कर सकता। पाकिस्तानी सेना को कई कारणों से अमेरिकी समर्थन की जरूरत है। डिफ़ॉल्ट होने से बचने के लिए आईएमएफ का बेलआउट पैकेज हो या एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से बाहर निकलना, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए सैन्य और खुफिया मदद हो या भारत जैसे शक्तिशाली पड़ोसी से सतर्कता, हर मोड़ पर पाकिस्तानी सेना को अमेरिका का समर्थन चाहिए।
अविनाश मोहनाने लिखते हैं, अब जब इमरान खान सत्ता से बाहर हैं तब वह और अधिक खतरनाक हो चुके हैं, सेना के लिए भी और अमेरिका के लिए भी। पाकिस्तानी सेना के लिए चिंता की बात यह है कि बड़ी संख्या में इमरान समर्थक पूर्व सैनिक हैं और उनके परिवार के सदस्य पंजाब से हैं जो सेना की भर्ती का प्रमुख क्षेत्र है। पाकिस्तानी सेना अमेरिका को नाराज नहीं कर सकती इसलिए इमरान को दोबारा कुर्सी सौंपना कोई विकल्प नहीं है।
अमेरिका को भी इसी मौके का इंतजार था क्योंकि अब वह पाकिस्तान में चीन के वर्चस्व को कम कर सकता है और अफगानिस्तान में पैदा होने वाले संभावित खतरों से निपटने के लिए देश का इस्तेमाल कर सकता है। पाकिस्तान की सेना के लिए अर्थव्यवस्था अकेली चुनौती नहीं है। बलूच विद्रोह से लेकर टीटीपी, सेना को लगातार नुकसान पहुंचा रहे हैं। ‘बेलगाम’ हो चुके इमरान खान पर ‘लगाम’ लगाने के लिए पाकिस्तान की सरकार, चुनाव आयोग और न्यायपालिका ने अपनी कमर कस ली है। आतंकवाद विरोधी कानून के तहत मामले दर्ज करके, अदालत की अवमानना और विदेशों से प्राप्त धन का खुलासा करने में विफलता के लिए नोटिस जारी कर इमरान की बयानबाजी को रोकने की कोशिश की जा रही है।
अगर इमरान नहीं रुके तो सेना उनके खिलाफ कठोर कदम उठा सकती है। उनके खिलाफ चाहें किसी भी तरह के कदम उठाए जाएं पाकिस्तान को राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता का सामना करना पड़ सकता है। अस्थिरता चरमपंथ को बढ़ावा देती है और यह न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि पूरी दुनिया के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है। असल चिंता की बात यह है कि इसका कोई त्वरित समाधान हमारे पास नहीं है।